पूर्व आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल की पुस्तक में प्रभारी वित्तमंत्री रहे पीयूष गोयल की नीतियों पर सवाल
जनज्वार। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल की नई किताब ओवरड्राफ्ट - सेविंग द इंडियन सेवर आने वाली है। इस किताब में आरबीआइ चीफ के रूप में अपने कामकाज और सरकार से संबंधों पर इशारा किया है। उर्जित पटेल ने बिना किसी के नाम का उल्लेख किए लिखा है कि उनका मतभेद दिवालिया मामलों को लेकर सरकार के फैसलों से शुरू हुआ। उनके अनुसार, उन फैसलों में काफी नरमी थी।
टाइम्स न्यूज नेटवर्क की खबर के अनुसार, उर्जित पटेल ने हालांकि किसी का नाम नहीं लिखा है लेकिन 2018 के जिस वक्त की वे बात कर रहे हैं उस समय पीयूष गोयल देश के कार्यवाहक वित्तमंत्री थे। यह 2018 से अगस्त 2018 तक के बीच की बात है।
उर्जित ने अपनी किताब में लिखा है कि 2018 के मध्य में दिवालिया मामलों के लिए नरमी वाले फैसले लिए गए। मई 2018 में वित्तमंत्री अरुण जेटली दिवालिया कानून की अगुवाई कर रहे थे, लेकिन बीमारी की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और इसके बाद पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया।
पीयूष गोयल ने इस दौरान मीडिया से सकुर्लर में नरमी लाने की बात कही और कहा कि किसी भी लोन को 90 दिनों के अंदर एनपीए नहीं कहा जा सकता है। इसके बाद उर्जित पटेल ने अपना कार्यकाल खत्म होने से आठ महीने पहले इस्तीफा दे दिया।
उर्जित पटेल ने अपनी किताब में आरबीआइ के स्वामित्व में सरकार की प्रधानता और निर्देशों के आधार पर कर्ज देने में फाइनेंशियल सेक्टर की दिक्कतों को गिनाया है। उन्होंने सरकार और पब्लिक सेक्टर बैंकों के बीच के अंतर को कम करने पर भी चेताया है और कहा है कि इससे सरकार का कर्ज और बढ सकता है।
पटेल ने रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को बेल आउट करने के लिए सरकार की ओर से आरंभ किए गए एसबीआइ-एलआइसी फंड को लाने पर भी चिंता जतायी और इसे पैसा ट्रांसफर करने जैसा ही बताया।
पूर्व आरबीआइ चीफ एलआइसी और आइडीबीआइ बैंक खरीदे जाने के खिलफ भी। इसकी घोषणा अगस्त 2018 मेें की गई थी। उनकी पुस्तक में उनके कार्यकाल में लागू की गई नोटबंदी का जिक्र नहीं है और न ही भारतीय रिजर्व बैंक और इसके बोर्ड या वित्त मंत्रालय के बीच के रिश्तों को लेकर कुछ कहा गया है।
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