Begin typing your search above and press return to search.
शिक्षा

15 साल बाद रामनगर में AISA की दस्तक, सम्मेलन में कार्यकारिणी का गठन कर दोहराया छात्रहितों की लड़ाई का संकल्प

Janjwar Desk
27 Nov 2022 3:49 PM GMT
15 साल बाद रामनगर में AISA की दस्तक, सम्मेलन में कार्यकारिणी का गठन कर दोहराया छात्रहितों की लड़ाई का संकल्प
x

15 साल बाद रामनगर में AISA की दस्तक, सम्मेलन में कार्यकारिणी का गठन कर दोहराया छात्रहितों की लड़ाई का संकल्प

मोदी सरकार के 8 सालों बाद स्थिति यह है कि नौकरी करने के काबिल लोगों में से बहुत कम संख्या को ही अस्थाई किस्म का रोजगार मिल सका है। सेना तक में ठेका प्रथा लागू कर अग्निवीर भर्ती किये जा रहे हैं। अब नयी शिक्षा नीति के नाम पर पूरी शिक्षा व्यवस्था को भी ठेके पर देने की तैयारी कर ली गयी है...

रामनगर। रामनगर हल्द्वानी सहित तराई के कई महाविद्यालयों में क्रांतिकारी छात्र राजनीति की धार पैनी करने वाले छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने पन्द्रह साल बाद फिर छात्र राजनीति में जोरदार दस्तक दे दी है। रविवार 27 नवंबर को रामनगर के व्यापार भवन में संगठन के नगर सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें नई शिक्षा नीति को छात्र विरोधी बताते हुए कई प्रस्ताव पारित कर छात्र संघर्षों को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ नगर कार्यकारिणी का गठन किया गया।

रविवार 27 नवम्बर को आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) का यह नगर सम्मेलन नई शिक्षा नीति को छात्र विरोधी व निजीकरण हितैषी करार देते हुए "आ गए यहां जवां कदम" व "इस लिए राह संघर्ष की हम चुनें" जैसे क्रांतिकारी गीतों से शुरू हुआ। सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि कुमाऊं विश्वविद्यालय कार्यपरिषद सदस्य एडवोकेट कैलाश जोशी ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने वाला पहला राज्य होने का दावा कर रही है पर हमारे स्कूलों, महाविद्यालयों की जमीनी हालात बद से बदतर होती जा रही है। शिक्षकों के सैकड़ों पद रिक्त हैं। शिक्षण संस्थानों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। सरकार नई शिक्षा नीति की आड़ में असल में न केवल शिक्षा के निजीकरण को तेज कर रही है बल्कि पाठ्यक्रमों में अंधविश्वास, रूढ़िवादिता को बढ़ावा देकर भारतीय संविधान की मूलभूत संरचना की ही धज्जियां उड़ा रही है।

सेमेस्टर के नाम पर महाविद्यालयी शिक्षा में बिना पढ़ाये ही परीक्षा की तैयारियां शुरू कर दी गयी है। हमें ऐसी शिक्षा नीति के लिए संघर्ष तेज करना होगा जो न केवल निःशुल्क सरकारी व्यवस्था हो बल्कि भारतीय संविधान के तहत समता, समानता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को मजबूत करती हो। सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि पूर्व आइसा नेता रहे डॉ. कैलाश पांडेय ने कहा कि शिक्षा और रोजगार को लेकर केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों ने छात्र युवाओं को ठगने का ही काम किया है। 2014 में मोदी यह कहते हुए सत्ता में आये थे कि हर वर्ष 2 करोड़ लोगों को नोकरियाँ देंगें, परंतु अब पता लग रहा है कि यह सिर्फ चुनावी जुमला मात्र था।

मोदी सरकार के 8 सालों बाद स्थिति यह है कि नौकरी करने के काबिल लोगों में से बहुत कम संख्या को ही अस्थाई किस्म का रोजगार मिल सका है। सेना तक में ठेका प्रथा लागू कर अग्निवीर भर्ती किये जा रहे हैं। अब नयी शिक्षा नीति के नाम पर पूरी शिक्षा व्यवस्था को भी ठेके पर देने की तैयारी कर ली गयी है, इसीलिए एनईपी को बिना संसद के पटल पर रखे लागू किया जा रहा है।

एडवोकेट विक्रम मावड़ी ने संगठन के इतिहास से परिचय कराते हुए कहा कि अपनी स्थापना के वर्ष 1990 से ही आइसा ने छात्र नौजवानों के बुनियादी सवालों पर जुझारू पहलकदमी लेते हुए अपनी क्रांतिकारी छवि बनाई है। उत्तराखण्ड में भी आइसा का संघर्षों का इतिहास रहा है। आइसा ने फीस वृद्धि, पुस्तकालय, कैम्पस लोकतन्त्र, करप्शन व महिलाओं की सम्मानजनक सुरक्षित जिंदगी के सवालों पर हमेशा संघर्ष किया है।

सम्मेलन में हुआ 13 सदस्यीय नगर कमेटी का गठन

रविवार को आयोजित आइसा के इस सम्मेलन में सांगठनिक कामों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से 13 सदस्यीय नगर कमेटी का भी गठन किया गया। इस कमेटी में सुमित को अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष मुस्कान व ज्योति फर्त्याल,सचिव अर्जुन सिंह नेगी, उपसचिव रोहित खत्री, प्रचार सचिव मो. रिहान, तकनीकी संस्थान प्रभारी पीयूष को जिम्मेदारी दी गई, जबकि अन्य कार्यकारिणी सदस्यों में नेहा, रिंकी, आरज़ू सैफी, रेखा, उमेश कुमार को शामिल किया गया हैं। नगर सम्मेलन के अवसर पर अनीता, संजना, काजल, हिमानी, प्राची, दीपक, ज्योति, कोमल, भावना, आकांक्षा, खुशी बिष्ट, श्वेता नेगी, दीपक कडकोटी, जातिन राजपूत, अक्षित कुमार, शीतल कश्यप, आसिफ अली आदि छात्र छात्राओं ने सक्रिय रूप से भागीदारी की।

छात्रहितों का संकल्प दोहराया

आइसा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष सुमित ने छात्र हितों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का इरादा जाहिर करते हुए कहा कि आइसा के पास एक गौरवशाली संघर्ष की विरासत है। संगठन छात्र छात्राओं के हितों के लिए इसी संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा कटिबद्ध है। नयी नगर कमेटी छात्र छात्राओं को संगठित करने का कार्य करेगी। उन्होंने बिना पढ़ाई के सेमेस्टर परीक्षा के आयोजन को छात्र हित के खिलाफ बताते हुए कहा कि पहले पढ़ाई और फिर फिर परीक्षा करवाई जाये।

यह प्रस्ताव हुए पारित

नगर सम्मेलन के दौरान सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पारित किये गये। जिसमें मुख्यत: "सेमेस्टर परीक्षा कोर्स पूरा होने के बाद करवाने, सभी छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध करवायी जाने, बीएड कोर्स सेल्फ फाइनेंस के स्थान पर सामान्य फीस पर संचालित किये जाने व एनईपी को वापस लिये जाने से संबंधित थे।

रामनगर में पन्द्रह साल बाद हुई संगठन की वापसी

रविवार को सम्मेलन के माध्यम से छात्र संघर्षों को आगे बढ़ाने की आइसा की यह पहल रामनगर में पन्द्रह साल बाद हुई है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में आइसा का प्रभाव क्षेत्र व्यापक होने के कारण उसका प्रभाव उत्तराखंड के पर्वतीय व तराई क्षेत्रों में था। रामनगर महाविद्यालय में कई छात्र नेता इसके बैनर तले अध्यक्ष का चुनाव लड़कर विजयी हुए। लेकिन राज्य स्थापना के बाद आइसा का इस क्षेत्र में प्रभाव धीरे धीरे कम होना शुरू हो गया, जिस कारण लालकुआं के अलावा संगठन की तराई में कोई इकाई कार्यरत नहीं थी।

रामनगर में आइसा बैनर तले साल 2003 में छात्रसंघ अध्यक्ष बनने वाले डीएस नेगी इसके आखिरी सुल्तान साबित हुए। जबकि संगठन के बैनर तले जीतने वाले आखिरी प्रत्याशी जो साल 2005 में सचिव बने, चंदन बंगारी रहे। आइसा बैनर तले अध्यक्ष पद पर आखिरी चुनाव ललित उप्रेती ने साल 2006 में लड़ा था, लेकिन वह असफल हो गए थे। इसी चुनाव के बाद से रामनगर में भी आइसा के अवसान का युग शुरू हो गया था। जिसके पन्द्रह साल बाद अब फिर संगठन ने रामनगर महाविद्यालय में दस्तक दी है।

Next Story

विविध