Prayagraj News: दलित प्रोफेसर का आरोप- इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाति देखकर मिलते है नंबर, दो साल बाद प्रशासन ने मांगे साक्ष्य
(इविवि में जातिगत आधार पर नंबर दिए जाने का आरोप)
Prayagraj News: उत्तर प्रदेश में लगातार जातीयता को लेकर मामले देखने को मिल रहे। वह पुलिस विभाग हो, पॉलिटिक्स हो, नौकरशाही हो या फिर शिक्षा विभाग, कोई भी डिपार्टमेंट जाति को लेकर संवेदनशील नजर नहीं आता। अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भी एक ऐसा ही मामला सामने आ रहा जिसमें एक असिस्टेंट प्रोफेसर को महज इसलिए प्रताड़ित किया जा रहा क्योंकि वह दलित कास्ट से ताल्लुक रखते हैं।
जानकारी के मुताबिक प्रोफेसर डॉ. विक्रम हरिजन ने तकरीबन दो साल पहले एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया था। प्रोफेसर का आरोप था कि यहां जातिगत आधार पर नंबर दिए जाते हैं। इस सहित प्रोफेसर विक्रम ने इविवि प्रशासन की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हुए विश्वविद्यालय में जातिवाद हावी होने जैसा आरोप भी लगाया था।
असिस्टेंट प्रोफेसर विक्रम का आरोप था कि विश्वविद्यालय में छात्र और शिक्षक जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। शोध करने वाले छात्र शोध निदेशक के अलावा किसी अन्य शिक्षक से मिल भी नहीं पाते हैं। सीनियर और जूनियर शिक्षकों में आपसी खींचतान रहता है। जिसके चलते शोध का स्तर भी गिर रहा है। इस बात को लेकर प्रोफेसर विक्रम ने कुलपति व अन्य से बात भी की थी और ऐसे मामलों का समाधान किए जाने को लेकर भी कहा था।
प्रोफेसर डॉ. विक्रम के इन आरोपों राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान में लेकर इविवि प्रशासन पूछा था कि अब तक इसपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जिसके बाद रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ला की तरफ से डॉ. विक्रम को नोटिस जारी किया गया है। इस नोटिस में पूछा गया है कि उन्होने जिस आधार पर यह आरोप लगाए हैं, वह सभी साक्ष्य लोकर इविवि प्रशासन को उससे अवगत कराएं।
इन आरोपों पर डॉ. विक्रम हरिजन ने जनज्वार से बातचीत करते हुए कहा कि, 'यह सभी आरोप जो उनने लगाए हैं वह छात्रों के अनुसार लगाए हैं। विश्वविद्यालय के तमाम छात्रों का कहना है कि उन्हें जाति के आधार पर नंबर दिए जाते हैं। उन्होने कहा कि एक सेमिनार के दोरान मेरा और मेरे मेहमानों का खाना रूकवा दिया गया तब पुलिस के हस्तक्षेप के बाद खाना मिल सका था। यह लोग तमाम तरह से मुझपर प्रेशर बनाने का प्रयास कर रहे हैं वह इसलिए की मैं छात्रों के हक की कोई बात न उठा सकूं।'