Fake Degrees Probe : यूपी सरकार द्वारा हुई डिग्री घोटाले की जांच में दो विश्वविद्यालय के वीसी का नाम आया सामने
एसआईटी जांच में (दाएं) प्रो रजनीश कुमार शुक्ला और (बाएं) प्रो गंगाधर पांडा का नाम सामने आया है।
Fake Degrees Probe : उत्तर प्रदेश में डिग्री घोटाला करके सरकारी नौकरियां पाने का मामला सामने आया है। यूपी सरकार द्वारा 'डिग्री घोटाला नेटवर्क' (Fake Degree Network) की जांच की जा रही है। बता दें कि यह जांच उत्तर प्रदेश में फर्जी डिग्री के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की नौकरी पाने और अन्य सरकारी नौकरी पाने के आरोपों की हो रही है। इस घोटाले की जांच एसआईटी की टीम कर रही है। एसआईटी की जांच में कुल 19 लोगों का नाम सामने आया है। इन 19 लोगों में 2 विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर का भी नाम है। बता दें कि इनमें से एक आरोपी केंद्रीय विश्वविद्यालय के वीसी है।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में डिग्री घोटाले की जांच
डिग्री घोटाले (Fake Degrees Probe) में एसआईटी की टीम वाराणसी में स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से जुड़ी अनियमितताओं के मामले पर कार्यवाही कर रही है। बता दें कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन आता है। कथित तौर पर इस विश्वविद्यालय में कई लोगों को डिग्रियां बांट दी गई। डिग्रियों में छेड़छाड़ कर नंबर भी बढ़ाए गए और इन फर्जी डिग्रियों के सहारे कई लोगों को सरकारी विभागों में नौकरी दी गई।
दो विश्वविद्यालयों के वीसी सवालों के घेरे में है
मामले की जांच में दो विभिन्न विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर पर डिग्री घोटाले का आरोप लगा है। इनमें एक केंद्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के वर्तमान वीसी रजनीश कुमार शुक्ल का नाम है। वहीं दूसरे आरोपी झारखंड के कोल्हान विश्वविद्यालय के मौजूदा वीसी प्रोफेसर गंगाधर पांडे का नाम शामिल है। यह दोनों आरोपी वाराणसी में स्थित संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के पुराने अधिकारी रह चुके हैं। बता दें कि विश्वविद्यालय में 2004 से लेकर 2014 के बीच हुए कथित अनियमितताओं की जांच की जा रही है।
एसआईटी द्वारा की गई जांच
कथित आरोपों के बाद इस मामले की जांच राज्य सरकार ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को सौंप दी थी। एसआईटी की टीम ने एक बड़ा खुलासा किया है। एसआईटी की जांच में पता चला कि डिग्री घोटाले में देश के दो यूनिवर्सिटी के वर्तमान नामचीन वीसी शामिल है। इसके साथ ही एसआईटी को अन्य 19 लोगों के खिलाफ फर्जी डिग्री घोटाले के नेटवर्क में शामिल होने के सबूत मिले हैं। 18 नवंबर 2020 में एसआईटी ने जांच के संबंध में अपने 99 पेज की रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें कहा गया था कि 2004 से लेकर 2014 के बीच विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रारों, परीक्षा नियंत्रकों और संपूर्णानंद के सिस्टम मैनेजरों ने धोखाधड़ी करते हुए बड़ी संख्या में फेक डिग्री बांटी हैं और इन डिग्रियों से कई लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
एसआईटी ने विश्वविद्यालय में 9 रजिस्ट्रार/परीक्षा नियंत्रकों में प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ल और प्रोफेसर गंगाधर पांडे का नाम बताते हुए कहा कि इन लोगों ने अपने कर्तव्यों का पूर्ण रुप से पालन नहीं किया है और सत्यापन विभाग ने धोखाधड़ी से बहुत फर्जी डिग्रियां बेची हैं। इसके साथ ही परीक्षा विभाग ने रिकॉर्ड से भी छेड़छाड़ की है।
उत्तर प्रदेश के गृह मंत्रालय ने विश्वविद्यालय को लिखा था पत्र
मार्च 2021 में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को उत्तर प्रदेश के गृह मंत्रालय ने पत्र लिखकर कहा कि उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी (अनुशासन और अपील) नियम 1999 के तहत रिपोर्ट में नामांकित लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने का निर्णय लिया गया है। इसके साथ ही गृह विभाग ने आगे की कार्यवाही के लिए नामित आरोपियों के वर्तमान नौकरी की जानकारी मांगी और इस विश्वविद्यालय में कार्य कर रहे 10 अन्य लोगों के खिलाफ कार्यवाही करने को कहा था लेकिन संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
एसआईटी ने बयान दर्ज कराने का दिया था नोटिस
'द इंडियन एक्सप्रेस' में छपी रिपोर्ट के अनुसार 2 सितंबर 2021 को एसआईटी ने केंद्र सरकार द्वारा संचालित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के वाइस चांसलर रजनीश शुक्ल को उनका बयान दर्ज करने के लिए नोटिस भेजा था। रिपोर्ट में बताया गया कि एसआईटी द्वारा नोटिस जारी किए जाने को लेकर प्रोफेसर शुक्ला ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात की। जिसमें उन्होंने कहा कि 'मैंने एसआईटी के आदेश को चुनौती दी है। 2020 की रिपोर्ट को अंतिम नहीं कहा जा सकता। सच्चाई यह है कि रजिस्ट्रार के रूप में मैं ही सबसे पहले इस पर कार्य करने वालों में शामिल था क्योंकि विश्वविद्यालय को तत्कालीन राज्य सरकार से धोखाधड़ी के मामले में शिकायतें मिलती रहती थीं।'
प्रोफेसर रजनीश शुक्ल ने बताया कि मैंने पिछले महीने एसआईटी को एक हलफनामे के रूप में अपना बयान जमा किया था। मेरे एफआईआर के आधार पर ही विश्वविद्यालय के दो पदाधिकारियों को जेल भेजा गया था। शुक्ल का कहना है कि एसआईटी को अपनी रिपोर्ट तैयार करने से पहले मेरा बयान दर्ज करना चाहिए था।
इस मामले में प्रोफेसर गंगाधर पांडे ने बताया कि 'जब रिपोर्ट तैयार की जा रही थी तब एसआईटी ने मेरा बयान दर्ज कर लिया था। मैंने यह स्पष्ट कर दिया था कि दस्तावेज मेरे पास केवल औपचारिकता के तौर पर आते थे। किसी भी मामले में मुझे रिपोर्ट को लेकर यूपी सरकार या विश्वविद्यालयों से कोई सूचना नहीं मिली। मैं वीसी के रूप में अपना कर्तव्य पूरे समर्पण के साथ निभा रहा हूं।'
एसआईटी की जांच रिपोर्ट
एसआईटी द्वारा इस मामले में यूपी के 69 जिलों में कार्यरत 5597 शिक्षकों की डिग्रियों की जांच की गई। जिसमें संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा जारी 1086 डिग्री को फर्जी पाया गया। एसआईटी के अनुसार लगभग 207 डिग्रियों में धोखाधड़ी हुई है।
डिग्री घोटाले की जांच में एसआईटी ने कहा कि 'जिन लोगों ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से फर्जी डिग्री हासिल की। उन्हें माध्यमिक शिक्षा, उच्च माध्यमिक शिक्षा और अन्य सरकारी विभागों में भी नौकरी मिली होगी और इसके लिए संबंधित विभागों द्वारा विस्तृत जांच की आवश्यकता है। परीक्षा विभाग के रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की गई है। बड़े पैमाने पर रिकॉर्ड भी नष्ट कर दिए गए हैं। जो कि एक गंभीर असंवैधानिक अपराध है।' 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार एसआईटी अधिकारी विजय कुमार सिंह ने रजनीश शुक्ल के बयान पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है।
प्रो शुक्ल और प्रो पांडे का कॉलेज में कार्यकाल
प्रोफेसर रजनीश शुक्ल वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 23 मार्च से लेकर 18 दिसंबर 2011 तक कार्यवाहक रजिस्ट्रार थे। वहीं प्रोफेसर गंगाधर पांडे ने 11 फरवरी 2009 से 6 अगस्त 2010 तक विश्वविद्यालय में कार्यवाहक रजिस्ट्रार का पद संभाला था। बता दें कि प्रोफेसर शुक्ल भारतीय समाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की समिति के सदस्य भी है। वे तुलनात्मक दर्शन और धर्म के प्रोफेसर है। प्रोफेसर शुक्ल ने पहले भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव के रूप में भी कार्य किया है।