Begin typing your search above and press return to search.
शिक्षा

फर्जीवाड़ा: उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पीआरओ को बना दिया पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर

Janjwar Desk
7 March 2021 9:54 PM IST
फर्जीवाड़ा: उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पीआरओ को बना दिया पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर
x
कुलपति के करीबी पीआरओ राकेश रयाल को सारे नियम-कानूनों को ताक पर रख कर पत्रकारिता विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया है। जबकि एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए सीधी भर्ती में कम से कम आठ साल असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करना न्यूनतम योग्यता है।

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी, नैनीताल में हाल में हुई प्रोफेसरों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं। ज़्यादातर मामलों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैं। सबसे सनसनीखेज मामला विश्वविद्यालय के जन संपर्क अधिकारी (पीआरओ) को प्रोफेसर बनाने का है। इन नियुक्तियों के सिलसिले में आरक्षण रोस्टर में खिलवाड़ करने को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

कुलपति के करीबी पीआरओ राकेश रयाल को सारे नियम-कानूनों को ताक पर रख कर पत्रकारिता विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया है। जबकि एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए सीधी भर्ती में कम से कम आठ साल असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करना न्यूनतम योग्यता है। सामान्य दशा में एक असिस्टेंट प्रोफेसर 12 साल बाद प्रोन्नत होकर एसोसिएट प्रोफेसर बनता है। आवेदन की तारीख तक रयाल को सिर्फ पांच साल पीआरओ का अनुभव था। उससे पहले वह मुक्त विश्वविद्यालय में ढाई साल के लिए अकादमिक सहायक के तौर पर काम करते थे। गढ़वाल विश्वविद्यालय में गेस्ट क्लास लेने के अलावा उनके पास कोई अनुभव नहीं है।


अपनी योग्य़ता के हिसाब से रयाल असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के काबिल भी नहीं हैं। उन्होंने असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए जरूरी यूजीसी की राष्ट्रीय दक्षता परीक्षा (नेट) को भी पास नहीं किया है। रयाल ने पीएचडी 2012 में हासिल की है। रयाल की यह पीएचडी भी असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के मानदंड पूरे नहीं करती है। इसके अलावा जब पीआरओ के पद पर रयाल की नियुक्ति हुई थी तब भी उस प्रक्रिया पर अनियमितताओं के आरोप लगे थे।

विश्ववियाद्लय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के अनुसार राकेश रयाल के पांच साल पीआरओ का अनुभव किसी लिहाज से असिस्टेंट प्रोफेसर के समकक्ष नहीं है। यूजीसी ग्रेड पे के हिसाब से पदों के श्रेणिक्रम का निर्धारण करती है। इस लिहाज से असिस्टेंट प्रोफेसर का न्यूनतम ग्रेड पे 6000 रुपये है जबकि पीआरओ का ग्रेड पे 5400 रुपये है। यही वजह है कि इस ग्रेड पे से कम पर काम करने वाले संविदा शिक्षकों को भी एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए योग्य नहीं माना जाता है। अकादमिक सहायकों की गिनती तो किसी भी लिहाज से असिस्टेंट प्रोफेसरों के बराबर नहीं होती। चौंकाने वाली बात ये भी है कि रयाल को प्रार्थनापत्रों की छंटनी करने वाली स्क्रीनिंग (विशेषज्ञ) कमेटी ने इस पद के योग्य नहीं पाया था लेकिन कुलपति ने सारे नियमों को ताक पर रख कर रयाल को इंटरव्यू के लिए बुलाकर उनका सलेक्शन करवा लिया।

हैरानी की बात ये भी है कि इस पद पर तेरह साल से कानपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे और विभागाध्यक्ष की भूमिका निभा रहे डॉक्टर जीतेंद्र डबराल को स्क्रीनिंग कमेटी ने कुलपति के निर्देश पर बाहर कर दिया। डबराल ने कुलाधिपति यानी राज्यपाल को पत्र लिखकर चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी की तरफ इशारा किया और इसे रद्द करने की मांग की। राज्यपाल की तरफ़ से विश्वविद्लाय से जवाब मांगे जाने पर विश्वविद्यालय ने जीतेंद्र डबराल को भी मनमाने तरीके से औपचारिकता पूरा करने के लिए इंटरव्यू के लिए बुला लिया।


डबराल पूरे फ़र्जीवाड़े को भांपकर इंटरव्यू में नहीं आते और इस पूरी प्रक्रिया को रद्द करने की अपनी मांग दोहराते हैं। उन्होंने एक पत्र लिखकर विश्वविद्यालय की कार्य परिषद से भी नियमानुसार इन नियुक्तियों को रोकने की मांग की। फर्जीवाड़े का पता इस बात से भी पता चलता है कि डबराल ने सभी उम्मीदवारों की योग्यता के संबंध में जब विश्वविद्लाय से आरटीआई के तहत दस्तावेज मांगे तो विश्वविद्लाय लगातार उन्हें सूचना देने से टालता रहा।

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओमप्रकाश नेगी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता हैं। रयाल कांग्रेस सरकार के दौर में कांग्रेस कार्यकर्ता थे। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में वह आरएसएस वाले हो गए। अपने शातिराने से रयाल ने जरूरी योग्यता ना होने के बाद भी कुलपति की मदद से एसोसिएट प्रोफेसर का पद हथिया लिया। इस फर्जीवाड़े की ख़बर रयाल की नियुक्ति से कई महीने पहले राज्यपाल के पास पहुंच गई थी। राज्यपाल ने इस सिलसिले में विश्वविद्लाय से जवाब भी मांगा लेकिन उनकी चिंता को दरकिनार करते हुए राकेश रयाल समेत उन्हीं लोगों की नियुक्ति कर दी गई जिनके नाम पहले ही राज्यपाल के पास पहुंच गये थे।

राकेश रयाल की नियुक्ति उत्तराखंड में उच्च शिक्षा में हो रहे फर्जीवाड़े का एक ज्वलंत उदाहरण है। रयाल के अलावा वर्तमान कुलपति ने पच्चीस और पदों पर नियुक्तियां की हैं सभी में उन्होंने अपने चहेतों या आरएसएस के कार्यकर्ताओं को भर्ती किया है। इन नियुक्तियों में आरक्षण के रोस्टर से खिलवाड़ किया गया और महिला आरक्षण पूरी तरह गायब कर दिया गया। इससे पहले विज्ञापित पदों में पत्रकारिता विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर का पद उत्तराखंड की महिला अभ्यर्थी के लिए आरक्षित था। लेकिन नये विज्ञापन में महिला आरक्षण गायब कर सीट पत्रकारिता के बजाय पीआर के लिए घोषित कर दी गई। जिससे पीआरओ की एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति को सही ठहराया जा सके।

कुलपति ने आरक्षण के नियमों में खिलवाड़ करते हुए जिन सीटों पर उनके अनारक्षित उम्मीदवार थे उन्हें अनारक्षित कर दिया और जहां उनके आरक्षित उम्मीदवार थे उन्हें आरक्षित कर दिया गया। इस सिलसिले में पहले से ही एक मुकदमा नैनीताल हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए सभी नवनियुक्त प्रोफेसरों की नियुक्ति सशर्त दी गई है। जिसमें कोर्ट के निर्देशानुसार लिखा गया है कि इन नियुक्तियों की वैधता कोर्ट के आदेश पर निर्भर करती है। कुलपति और विश्वविद्लाय प्रशासन लगातार हाईकोर्ट में मुकदमे को टालने की कोशिश कर रहे हैं। इस रणनीति के तहत उनके वकील सुनवाई की तारीख पर अदालत में हाजिर ना होने का बहाना ढूंढ लेते हैं।

अगर वर्तमान कुलपति के कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों की निष्पक्ष जांच हो तो कई लोग सलाखों के पीछे नजर आ सकते हैं। रयाल को भी इस फर्जीवाड़े का एहसास है इसलिए उन्होंने डर के मारे पीआरओ के पद से छुट्टी लेकर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर ज्वाइन किया है। विश्वविद्यालय की परिनियमावली में आंतरिक रूप से छुट्टी लेकर नए पद पर आने की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन कुलपति ने फिर से नियमों को ताप पर रखकर उन्हें आंतरिक छुट्टी भी दे रखी है। अब रयाल प्रोफेसर और पीआरओ काम एक साथ कर रहे हैं। उनकी पांच उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है।

Next Story

विविध