हरियाणा में इस सत्र में प्राइवेट स्कूलों के 12.5 लाख बच्चों की छूटी पढ़ाई, सरकार ने दिये जांच के आदेश
(हरियाणा में नये शैक्षणिक सत्र में निजी स्कूलों के 12.5 लाख बच्चों की नहीं कोई जानकारी (फाइल फोटो))
जनज्वार हरियाणा। हरियाणा (Haryana) के निजी स्कूलों (Private School) में पढ़ने वाले 12.5 लाख बच्चों का कुछ भी पता नहीं चल पाने से हड़कंप है। सरकार इस मामले के सामने आने के बाद से स्कूली शिक्षा को लेकर चिंतित है। सरकारी अमला ये पता करने में जुटा है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों ने क्या पढ़ाई छोड़ दी।
दरअसल, राज्य के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले 12.5 लाख बच्चों ने नये शैक्षणिक सत्र (Academic Session) में अब तक दाखिला नहीं लिया है, जबकि नया सेशन शुरू हुए तीन महीने बीत चुके हैं। बच्चों की आगे की कक्षा में नामांकन (Admission) न होने को स्कूली शिक्षा निदेशालय ने गंभीरता से लेते हुए जिले के अधिकारियों को इस बारे में निर्देश भेजा है। इसमें यह आशंका जताई गई है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ाई छोड़ सकते हैं।
12.5 लाख बच्चों की नहीं कोई जानकारी
हरियाणा शिक्षा विभाग को प्राइवेट स्कूलों ने जो आंकड़ें दिये है, उसके मुताबिक, पिछले साल के 29.83 लाख छात्रों के मुकाबले 2021-22 के सत्र में 17.31 लाख छात्रों ने ही एडमिशन लिया है। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले 12.51 लाख बच्चों की मैनेजमेंट इंफोर्मेशन सिस्टम (MIS) पर जानकारी ही उपलब्ध भी नहीं है। बता दें कि हरियाणा में 14,500 सरकारी और 8900 प्राइवेट स्कूल हैं।
कोरोना महामारी और तंगी में छूटी पढ़ाई?
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक फीस को लेकर विवाद के कारण कुछ स्कूलों ने खुद ही बच्चों का दाखिला नहीं कराया है। इनमें से कुछ सरकारी स्कूलों में पढ़ने चले गये हैं। वहीं कई छात्र ऐसे हैं जिनके पास मोबाइल नहीं है, ऐसे में वो कोरोना महामारी के कारण हो रहे ऑनलाइन क्लास का हिस्सा नहीं बन सकते। यह भी बताया गया है कि बच्चों को बिना स्कूल पढ़ाई जारी रखने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कई रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमण (Corona Pandemic) के दौरान परिवार की आय पर असर पड़ा है।
फतेहापुर गांव के निजी स्कूल प्रबंधन के सदस्य राम मेहर का कहना है कि, लोगों का मानना है कि कोरोना के कारण इस साल भी स्कूल नहीं खुलेंगे। ऐसे में अभिभावकों ने बच्चों खास कर जूनियर क्लास के बच्चों का दाखिला नहीं कराया। कुछ निजी स्कूल के मालिकों का ये भी मानना है कि इस आंकड़ें में वैसे बच्चे भी है, वो प्रवासी हैं। और महामारी के दौरान अपने पैतृक गांव चले गये।
दूसरी वजह ये भी मानी जा रही है कि अभी कक्षा 8 से कम उम्र के बच्चों का एडमिशन इसलिए भी नहीं कराया गया है, क्योंकि अभी इनके स्कूल नहीं खुलेंगे। सरकारी स्कूलों के प्रति भी अभिभावक अधिक आकर्षित हो रहे हैं। बेहतर होती शिक्षा और पैसे की कमी उन्हें सरकारी स्कूलों की तरफ ले जा रही है।
जांच के आदेश
इधर इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का दाखिला नहीं होने से सरकारी अमले में हड़कंप है। राज्य के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने इस मामले में जांच के आदेश दिये हैं। इस पूरे मामले की जांच होगी।
बच्चों के बारे में पता लगाने के स्कूली शिक्षा निदेशालय के भेजे गए निर्देश में कहा गया है, "निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 12.51 लाख छात्रों का मैनेजमेंट इंफोर्मेशन सिस्टम (MIS) पर अपडेट नहीं किया गया है। इन 12.51 लाख छात्रों के डेटा को अपडेट करने के लिए निजी स्कूलों के प्रमुखों/प्रबंधन के साथ बैठकें करें, ताकि उनके ड्रॉपआउट (Drop Out) होने की आशंकाओं को कम किया जा सके।"
स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट पर विवाद
इधर, निजी स्कूल के फेडरेशन के हरियाणा प्रमुख कुलभूषण शर्मा का कहना है कि सरकारी स्कूल में स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट (School Leaving Certificate) नियम की धज्जियां उड़ाई जा रही है और बगैर सर्टिफिकेट के बच्चों का दाखिला लिया जा रहा है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने बताया कि, मौजूदा नियम के तहत कोई भी बच्चा स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट के बगैर किसी दूसरे स्कूल में एडमिशन नहीं ले सकता है, लेकिन सरकारी स्कूल ही इस प्रावधान का उल्लंघन कर रहे हैं। उनका दावा है सरकारी विद्यालयों में बगैर प्रमाणपत्र के दाखिला लिया जा रहा है।
कोरोना काल में निजी स्कूलों की खस्ता हालत और सरकारी मदद नहीं मिलने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के 15 महीनों में सरकार से सारी उम्मीदें खत्म हो गयी है।
बता दें कि, नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल एलांयस की निकाय, जो प्राइवेट स्कूल का बजट देखती है, उसने हाल ही में पंजाब और हरियाणा हईकोर्ट का रूख किया है। और स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट के मामले में दखल देने की मांग की है।