New Education Policy 2022 : कई राज्यों में बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के लिए हो रहे मजबूर, 10वीं स्तर पर ड्रॉपआउट दर में बढ़ोतरी
New Education Policy 2022 : कई राज्यों में बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के लिए हो रहे मजबूर, 10वीं स्तर पर ड्रॉपआउट दर में बढ़ोतरी
New Education Policy 2022 : देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में माध्यमिक यानी 10वीं के स्तर पर छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने (ड्रॉपआउट) की दर राष्ट्रीय औसत (14.6 प्रतिशत) से अधिक है। बता दें कि इनमें झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, नगालैंड आदि शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इन राज्यों को विशेष कदम उठाने का सुझाव दिया है।
छात्रों का बीच में पढ़ाई छोड़ना चिंताजनक
जानकारी के लिए आपको बता दें कि समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की वर्ष 2022-23 की कार्ययोजना संबंधी बैठकों के दस्तावेजों से यह जानकारी मिली है। ये बैठकें अलग-अलग राज्यों के साथ अप्रैल से जुलाई के बीच हुईं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लक्षित वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 प्रतिशत सकल नामांकन दर (जीईआर) हासिल करना चाहती है। बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ने को इसमें बाधा मान रही है।
कहां कितना ड्रॉप आउट दर
बता दें कि वर्ष 2020-21 में बिहार में स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 21.4 प्रतिशत था। गुजरात में 23.3 प्रतिशत था। मध्य प्रदेश में 23.8 प्रतिशत था। ओडिशा में 16.04 प्रतिशत था। झारखंड में 16.6 प्रतिशत था। ड्रॉपआउट दर त्रिपुरा में 26 प्रतिशत और कर्नाटक में 16.6 प्रतिशत दर्ज की गई। वहीं असम में वर्ष 2020-21 में माध्यमिक स्तर पर 19 जिलों में ड्रॉपआउट दर 30 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई जबकि नगालैंड में आठ जिलों में यह दर 30 प्रतिशत से अधिक रही।
वहीं आंध्र प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर वर्ष 2019-20 में ड्रॉपआउट दर 37.6 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 8.7 प्रतिशत रह गई। केरल में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 7.1 प्रतिशत, उत्तराखंड में 8.41 प्रतिशत और गोवा में 10.17 प्रतिशत दर्ज की गई।
यूपी में 12.5 प्रतिशत बच्चों ने बीच में छोड़ी पढ़ाई
दस्तावेजों के मुताबिक, वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर 12.5 प्रतिशत छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी, जिसमें लड़कों का औसत 11.9 प्रतिशत और लड़कियों का 13.2 प्रतिशत है। वहीं, पश्चिम बंगाल में 10 जिलों में माध्यमिक स्कूली स्तर पर ड्रॉपआउट दर 15 प्रतिशत से अधिक है।
दिल्ली में ड्रॉपआउट की संख्या
दस्तावेजों के अनुसार संबंधित अवधि में दिल्ली में स्कूलों में दाखिला लेने वाले विशेष जरूरत वाले बच्चों (सीडब्ल्यूएसएन) की अनुमानित संख्या 61,051 थी, जिनमें से 67.5 प्रतिशत ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी या उनकी पहचान नहीं की जा सकी। बोर्ड ने दिल्ली में स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर बच्चों को मुख्यधारा में लाने का कार्य त्वरित आधार पर पूरा करने को कहा है।
इन कारणों से लड़कियों ने छोड़ी बीच में पढ़ाई
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के हाल के एक सर्वेक्षण में लड़कियों के बीच में स्कूल छोड़ने के कारणों में कहा गया है कि 33 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई घरेलू कार्य करने और 25 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई शादी के कारण छूट गई है। इसके मुताबिक कई जगहों पर यह भी पाया गया कि बच्चों ने स्कूल छोड़ने के बाद परिजनों के साथ मजदूरी या लोगों के घरों में सफाई करने का काम शुरू कर दिया।