नियम कायदों से ‘मुक्त’ उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, उठने लगी है भ्रष्टाचारी आरोपी कुलपति ओमप्रकाश नेगी को बर्खास्त करने की मांग
सलीम मलिक की रिपोर्ट
हल्द्वानी। अपनी स्थापना के साल से ही नकारात्मक चर्चाओं में रहा उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय अब एक बार फिर कुलपति के भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाओं में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काडर रहे (एक टीवी कार्यक्रम में खुद का कबूलनामा) ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति ओमप्रकाश नेगी पर यूनिवर्सिटी में संघी टोले के लोगों की नियुक्तियों के साथ ही भ्रष्टाचार के तमाम इल्जाम तो हैं ही। एक नया इल्जाम यह भी है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तर्ज पर राज्य की सभी यूनिवर्सिटी में कुलपति का कार्यकाल 70 साल (अभी यह सीमा 65 साल है) की उम्र तक किए जाने के लिए भी वह लॉबिंग कर रहे हैं, जिससे अगले दो महीने में 65 साल (रिटायरमेंट की उम्र) के हो रहे ओमप्रकाश नेगी के भ्रष्टाचार का सिलसिला अगले पांच साल तक और निर्बाध रूप से चल सके।
मगर कुलपति की इस लॉबिंग की राह में भाकपा माले ढाल बनकर खड़ी हो गई है। माले ने कुलपति को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करने और उनके बर्खास्त न होने तक यूनिवर्सिटी में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 साल नहीं करने की मांग की है। भाकपा माले जिला सचिव डॉ. कैलाश पाण्डेय ने उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी को भ्रष्टाचार से मुक्त करने और इस भ्रष्टाचार के लिए ज़िम्मेदार कुलपति ओम प्रकाश नेगी को बर्खास्त कर मुक्त विश्वविद्यालय में हुए भर्ती घोटालों की न्यायिक जांच की मांग को लेकर राज्य के राज्यपाल जो कि उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं, को ज्ञापन भी भेजा है।
मुक्त विश्वविद्यालय का इतिहास
हल्द्वानी के उत्तराखंड मुक्त विश्विद्यालय की स्थापना साल 2005 में की गई थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना उत्तराखण्ड विधानसभा के एक अधिनियम से 31 अक्टूबर 2005 को हुई थी, जिसका उद्देश्य शिक्षा का लोकतांत्रीकरण करना था, ताकि जनसंख्या के एक बड़े भाग तक व्यावसायिक शिक्षा की पहुँच हो सके। उत्तराखंड का यह इकलौता ‘मुक्त विश्वविद्यालय’ था, लेकिन अपनी स्थापना के समय से ही यह विश्वविद्यालय अपनी अकादमिक विशेषताओं के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और चहेतों को नौकरियों की बंदरबांट के लिए जाना जाने लगा। कई किस्से-कहानियां मीडिया की सुर्खियां बने, लेकिन स्थाई ऑपरेशन के अभाव में यह बीमारी बदस्तूर बनी रही। मौजूदा कुलपति ओम प्रकाश नेगी ने फरवरी 2019 में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया था। यूनिवर्सिटी में आते ही इनके तमाम ऐसे कारनामे शुरू हो गए, जो घपले की श्रेणी में आते हैं।
यह हैं कुलपति पर आरोप
मौजूदा कुलपति ओमप्रकाश नेगी पर लग रहे आरोपों की वैसे तो लंबी फेहरिस्त है, लेकिन मुख्य इल्जाम यह हैं। नेगी का पहला मुख्य कारनामा आरएसएस कार्यकर्ताओं को विश्वविद्यालय में भर्ती करने के लिए धड़ाधड़ नियुक्तियों की शुरुआत करना रहा। सबसे पहले असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर (एआरडी) के 8 पदों पर भर्ती की गई। इन सभी पदों पर बीजेपी.आरएसएस और अधिकारियों के क़रीबी लोगों की भर्ती की गई।
हैरान करने वाली बात यह है कि देहरादून से संचालित एक न्यूज वेबसाइट ने नियुक्तियों से पहले ही धांधली कर चयनित होने वाले उम्मीदवारों के नाम प्रकाशित कर दिये थे। इन पदों के लिए बड़ी संख्या में सामान्य अभ्यर्थियों ने आवेदन किये थे। कुलपति का अगला कारनामा अध्यापकों के 37 पदों की भर्ती के लिए आरक्षण रोस्टर में खिलवाड़ करने का था, जिसमें उन्होंने अपनी सुविधानुसार सीटों को आरक्षित और अनारक्षित किया। कहने की जरूरत नहीं इन पदों के लिए भी सैकड़ों उम्मीदवारों ने आवेदन किये थे। इतना ही नहीं, कुलपति का महिला विरोधी चेहरा भी उस समय नुमाया हुआ, जब उन्होंने राज्य में लागू महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण को भी आपराधिक तौर पर लागू नहीं किया गया।
इस सिलसिले में मीडिया में कई रिपोर्ट आने और कुलाधिपति कार्यालय के पास सूचना होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके साथ ही 25 अध्यापकों की नियुक्ति से 7 महीने पहले ही कुलाधिपति महोदय के पास 9 लोगों के नियुक्ति की साजिश की शिकायत डॉ. राजेश कुमार सिंह की तरफ़ से पहुंच गयी थी। आश्चर्यजनक तौर पर 7 महीने बाद एक राष्ट्रीय स्तर की चयन प्रक्रिया में उन्हीं 9 लोगों का चयन हो गया।
कुलाधिपति कार्यालय इस सिलसिले में औपचारिकता निभाते हुए सरकार और विश्वविद्यालय से जवाब मांगता है, लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने में कोई रुचि नहीं दिखाता है। भ्रष्टाचार की अनदेखी करने पर कुलाधिपति कार्यालय की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कुलपति ओम प्रकाश नेगी पर एक बड़ा इल्जाम यह भी है कि उन्होंने बिना ज़रूरी योग्यता के कई लोगों की नियुक्ति की है। इसमें असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर बिना नेट-पीएचडी, एसोसिएट प्रोफेसर पर बिना 8 साल असिस्टेंट प्रोफेसर के अनुभव के और प्रोफेसर पद पर बिना पर्याप्त योग्यता के नियुक्तियां की गई हैं।
अभ्यर्थियों के चयन के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी की सिफ़ारिशों की अनदेखी कर एक फर्जी शिकायत निवारण समिति बनाकर कुलपति ने अयोग्य व्यक्तियों को ख़ुद योग्य घोषित करवा कर उनका चयन करवा लिया गया। तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक और पीआरओ को भी भ्रष्टाचार में शामिल होने के ईनाम के तौर पर नियम तोड़कर प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया।
विश्वविद्यालय में असिस्टेंट डायरेक्टर (आईटी) और शोध अधिकारियों के पद पर भी आरएसएस के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई है। सिस्टम मैनेजर के पद पर नियुक्त गिरिजा शंकर जोशी मुख्यमंत्री के एनजीओ के सचिव हैं और लंबे अरसे से उनके सहयोगी रहे हैं। एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में उनका चयन करवा दिया गया और विश्वविद्यालय में तैनाती के दिन से ही उन्हें मुख्यमंत्री ऑफिर अटैच कर दिया गया। ओम प्रकाश नेगी ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर विश्वविद्यालय में हमेशा के लिए धारा 144 लगा रखी है।
हरिद्वार के सामाजिक कार्यकर्ता सच्चिदानंद डबराल ने राज्य सरकार और कुलाधिपति कार्यालय को भर्ती घोटाले की विस्तृत सूचना देकर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन उस पर कभी कार्रवाई नहीं की गई। इस तरह कुलपति ने अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर फ़र्जी भर्ती कर राज्य के हज़ारों बेरोजगार युवाओं का हक़ मारा है। युवाओं ने विश्वविद्यालय की नियुक्तियों के लिए आवेदन तो किया, लेकिन भर्ती घोटाले की वजह से उन्हें कोई मौका नहीं मिला। इंटरनेट में बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं और रिश्तेदारों के नामों की लिस्ट कई बार वायरल हो चुकी है, लेकिन कोई अवैध तौर पर नियुक्त इन इन लोगों का बाल भी बांका नहीं कर पाया है।
माले ने भेजा कुलाधिपति को ज्ञापन
अब इस मामले में सीपीआईएम ;मालेद्ध ने कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रदेश के राज्यपाल को भी ज्ञापन भेजा है। माले के डिस्ट्रिक्ट सैकेट्री डॉ. कैलाश पाण्डे ने यह ज्ञापन भेजकर कहा है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ;यूओयूद्ध के कुलपति ओम प्रकाश नेगी ने अपने कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों में अपने पद का पूर्णतः दुरुपयोग करते हुए भ्रष्ट तरीक़े से प्रदेश के युवाओं और महिलाओं का हक़ मारकर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भर्ती की है। इसके अलावा उन्होंने कार्यपरिषद से मनमाने निर्णय पास कर विश्वविद्यालय के करोड़ों रुपये के कॉरपस फंड का भी गलत तरीके से मनमाना इस्तेमाल किया है।
उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। कुलाधिपति कार्यालय के पास नेगी के भ्रष्टाचार की कई शिकायतें पहुंचने और उनके रिटायरमेंट की उम्र क़रीब होने के बावजूद उन्हें राजनीतिक दबाव में दोबारा कुलपति नियुक्त किया गया, जबकि इस पद के लिए क़रीब ढाई सौ प्रोफेसरों ने आवेदन किया था।
इस मामले में कैलाश पाण्डे का कहना है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है। सिर्फ़ पंतनगर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वहां केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र 70 साल है। अब ओम प्रकाश नेगी राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र 70 साल करने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं, जिससे वे 65 साल की उम्र पूरी होने के बाद भी कुलपति के पद पर बने रह सकें। उन्हें 65 साल होने में सिर्फ़ 2 महीने शेष हैं।
राज्यपाल को भेजे गए ज्ञापन में कैलाश पाण्डे ने ओम प्रकाश नेगी के भ्रष्टाचार का पूरा विवरण देते हुए कहा है कि कुलपति ओम प्रकाश नेगी को उच्च स्तरीय राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए वे लगातार मनमानी करते जा रहे हैं। इसलिए राज्य सरकार की किसी भी जांच का इस मामले में कोई मतलब नहीं बनता।
यह है माले की मांग
कुलपति के भ्रष्टाचार और मनमानी को देखते हुए भाकपा माले ने उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी को तुरंत बर्खास्त कर उन पर भ्रष्टाचार का मुक़दमा दर्ज करने, नेगी के बर्खास्त होने तक किसी भी हालत में उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 साल न किए जाने, ओम प्रकाश नेगी और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों की जांच करने और मुक़दमा चलने तक उनकी पेंशन पर रोक लगाने, नेगी के कार्यकाल की समस्त अनियमितताओं की जांच हाईकोर्ट में कार्यरत जज के नेतृत्व में सीबीआई जांच करवाये जाने, लिखित परीक्षाओँ में प्रश्नपत्र आउट करने के आरोपों की जांच करने, धांधली कर की गई सभी भर्तियां रद्द करने और दस्तावेज़ों में हेरफेर कर नियुक्ति पाने वालों पर भी मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।
न जांच हुई, न जांच रिपोर्ट आई
प्रदेश के राज्यपाल को भेजे गए पत्र में कैलाश पाण्डे लिखते हैं कि ‘कुलाधिपति महोदय, मैं इस आशा में ये पत्र आपको प्रेषित कर रहा हूं कि उत्तराखण्ड के माननीय राज्यपाल और उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलाधिपति होने के नाते आप किसी भी दबाव से मुक्त होकर उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे। महोदय, यह भी गौरतलब है कि पूर्व कुलाधिपति महोदय ने उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में धांधली पर जांच बिठाने की बात मीडिया में थी, लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही होना तो दूर अभी तक कोई जांच रिपोर्ट भी सामने नहीं आई है। अतः महोदय से अनुरोध है कि उक्त मांगों पर ध्यान देते हुए उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का कष्ट करें।’