देश की शान JNU में पहली बार जाति का जहर घोलने के पीछे कौन, जानें दुनिया भर में क्यों चर्चित है ये संस्थान
देश की शान JNU में पहली बार जाति का जहर घोलने के पीछे कौन, जानें दुनिया भर में क्यों चर्चित है ये संस्थान
JNU Controversy : दुनियाभर में चर्चित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( JNU ) को वामपंथ का गढ़ माना जाता है, लेकिन पिछले कई सालों से कभी फीस, बोलने की आजादी, सीएए और एनआरसी बिल, पूजा और आस्था, बीफ दिवस, विजय दिवस, टुकड़े-टुकड़े गैंग व विचारधारा की लड़ाई को लेकर लगातार खबरों में है। बीती रात पहली आर ऐसा हुआ जब जेएनयू ( JNU row ) के गौरवशाली इतिहास में जाति का जहर घोलने का काम किया गया है। हालांकि, इस मसले पर जांच के आदेश दे दिए गए हैं, लेकिन अहम सवाल ये है कि जेएनयू को दुनियाभर में बदनाम करने की इस सोची समझी साजिश के पीछे कौन हैं?
कौन है जो रह-रहकर जेएनयू ( Jawaharlal Nehru University ) में असंतोष को हवा देता रहता है। आखिर जेएनयू को बदनाम करने के पीछे उसका क्या मकसद हो सकता है। जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन और छात्र संघों ने इस मामले की गंभीरता से जांच की मांग की है। जेएनयू की वीसी ने जांच का आदेश जारी करते हुए ताजा घटना को गंभीर चिंता का विषय करार दिया है।
तमाम विवादों के बावजूद खास बात यह यहै कि यहां लेफ्ट के अलावा निर्दलीय, फ्री थिंकर, समाजवादी और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोग भी छात्रसंघ (Student Union) में चुने गए हैं। इसके साथ ही कई देशी और विदेशी हस्तियां यहां से पढ़ाई कर निकली। राष्ट्रपति, पीएम, मंत्री, नोबेल लॉरेट, चर्चित नौकरशाह देने का श्रेय भी जेएनयू को है। अपनी इसी खासितय की वजह से 53 बरस पहले बना दिल्ली का जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय आज भी दुनिया के तमाम विकसित देशों की सूची में इतनी काबलियत रखता है कि उसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। ये ऐसा इकलौता ऐसा विश्विद्यालय है जिसने इस देश को नोबेल पुरस्कार विजेता दिए हैं तो सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर भी दिया है। देश के वर्तमान में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इसी JNU से निकलकर ही राजनीति का वो पाठ पढ़ा है जो सत्ता की ताकत अपने हाथों में लाने का गुर सिखाता है। यह संस्थान आज भी देश की ऐसी शान बना हुआ है जिसके लिए अब भी न जाने कितने युवाओं का ये सपना होता है कि उन्हें किसी भी तरह से JNU में एडमिशन मिल जाए।
5 दशक में जाति के मसले पर कभी नहीं हुआ विवाद
भारत में वामपंथी रुझान वाले छात्रों का इसे मक्का भी माना जाता है। इसे वामपंथी विचारधारा के सबसे कारगर केंद्र की तरह ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। पिछले कुछ सालों में आरएसएस के आनुषंगिक संगठन विद्यार्थी परिषद ने भी अपनी पैंठ बनाई है। संभवत: उसी ताकत ने अब दो छात्र-संगठनों के बीच कुत्ते-बिल्ली का ऐसा बैर कर दिया है कि पूरा परिसर और वहां पढ़ने वाले छात्र शुक्र मनाते हैं कि अब यहां कोई हंगामा न हो। इस तरह का विवाद दुनिया के बहुतेरे देशों में भारत के लिए किसी काले दाग से कम नही है। ताजा मामले को ही ले लें तो यह जेएनयू के छात्रों को किसी धर्म में नहीं बल्कि जातियों में बांटने की ऐसी शरारत है जिसे कोई भी सभ्य व उदारवादी इंसान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह ऐसे विवाद का बीजारोपण है जिसे पिछले पांच दशकों में न कभी किसी ने सुना और न ही कभी अपनी आंखों से देखा होगा। पिछले सात-आठ साल में दो अलग विचार धाराओं वाले संगठनों के बीच झगड़े तो खूब हुए लेकिन इस बार इसमें जातियों का तड़का किसने लगाया और किस मकसद से लगाया गया ये तो जांच का विषय है। जांच तो बैठा दी गई है लेकिन पता नहीं कि पुलिस की तहकीकात किसी नतीजे पर पहुंचकर दोषियों को पकड़ भी पायेगी कि नहीं? इस बार जो बवाल खड़ा किया गया है वो कुछ ज्यादा गंभीर इसलिए है कि इस बार हिंदुओं की कुछ खास जातियों को निशाना बनाते हुए पूरे कैंपस के माहौल को खराब कर दिया गया है।
ये है विवाद की जड़
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (School of International Studies) के सेकंड और थर्ड फ्लोर पर दीवारों पर लिखी जाति सूचक बातें सामने आई। जेएनयू (JNU ) परिसर की कई इमारतों की दीवारों पर लाल रंग से ब्राह्मणों कैंपस छोड़ों, ब्राह्मणों-बनियों हम तुम्हारे लिए आ रहे हैं। तुम्हें बख्शा नहीं जाएगा, शाखा लौट जाओ। जैसी धमकियां लिखी गई हैं। मामला सामने आने के बाद इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही हैं। यह आपत्तिजनक बातें न सिर्फ क्लास रूम के बाहर दीवारों पर लिखी गई है बल्कि कई फैकल्टी के दरवाजे पर भी लिखी गई हैं। जाहिर है कि ये विवाद दो विपरीत विचारधारा वाले संगठनों के बीच एक नई रंजिश बनेगा जिसका अंजाम क्या होगा ये कोई भी नहीं जानता।
ये हैं जेएनयू का नाम रौशन करने वाले सितारे
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, विदेश मंत्री डॉ.एस जयशंकर, सांसद और पूर्व मंत्री मेनका गांधी, लिबिया के पूर्व प्रधानमंत्री अली जैदान, अब्दूल सैतार मुराद मिनिस्टर ऑफ इकोनॉमी अफगानिस्तान, बाबूराम भट्टाराई नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री, योगेंद्र यादव चुनाव विशेषज्ञ, सीताराम येचुरी- सीपीआई एम नेता, अहमद बिन सैफ अल नहयान चेयरमेन एतिहाद एयरवेज, अभिजीत बनर्जी नोबल पुरस्कार विजेता, आलोक जोशी- पूर्व रॉ चीफ, राज्यसभा सांसद रहे एनसीपी के महासचिव डीपी त्रिपाठी, बसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया, दलित नेता उदित राज और कांग्रेस के युवा नेता अशोक तंवर, अरविदं गुप्ता, डायरेक्टर विवेकानंद फाउंडेशन, अमिताभ कांत सीईओ नीति आयोग, सैयद आसिफ इब्राहिम पूर्व आईबी चीफ ने भी जेएनयू से पढ़ाई की है।
Jawaharlal Nehru University : क्यों है जेएनयू खास
देश की टॉप 10 यूनिवर्सिटीज में जेएनयू का नाम 3 नंबर पर आता है। देश के कई छात्र जेएनयू में एडमिशन और पढ़ाई का सपना देखते हैं। जेएनयू यानी जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 1969 में संसद में अधिनियम बनाया गया था, जिसे 22 दिसंबर 1966 को देश की संसद में पास किया गया। जेएनयू सेना के उन जवानों को भी डिग्री प्रदान करता है, जो एनडीए के तहत सेना में गए थे। इसे देश का सबसे सस्ता विश्वविद्यालय कहा जाता है। सरकार हर साल जेएनयू को 244 करोड रुपए खर्च के लिए देती है। जेएनयू में एक स्टूडेंट पर करीब 3 लाख रुपए से ज्यादा सालाना खर्च आता है। जेएनयू की स्थापना का उदेश्य कई विषयों पर अध्ययन और रिसर्च को लेकर हुआ था। 9 फरवरी 2016 को जेएनयू के छात्रों ने 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर कार्यक्रम आयोजित किया था। इस घटना ने कन्हैया कुमार उमर खालिद को सामने लाया तो सीएसएस और एनआरसी न शरजिल इमाम को दिया। ये बात अलग है कि तीनों विवादों में रहे और देशद्रोह का आरोप झेल रहे हैं।