कार्बन कैप्चर को जलवायु समस्या का रामबाण इलाज बताने का भ्रम फैलाने के लिए टिकटॉक विज्ञापनों पर खर्च किया गया 1.8 मिलियन डॉलर
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एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में, क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉर्मेशन (सीएएडी) द्वारा किए गए एक व्यापक विश्लेषण ने जलवायु परिवर्तन समाधानों के बारे में प्रचलित विचारधारा में हेरफेर करने के लिए, वैश्विक स्तर पर फ़ौसिल फ्यूल उत्पादन और उपभोग का समर्थन करने वाले समूह द्वारा एक व्यापक और रणनीतिक अभियान चलाये जाने का खुलासा किया है।
दरअसल इन भ्रामक प्रयासों का फोकस जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) की क्षमता को "सिल्वर बुलेट" या रामबाण के रूप में बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है। यह अभूतपूर्व रिपोर्ट फ़ौसिल फ्यूल उद्योग की भ्रामक सोशल मीडिया अभियानों में भागीदारी की गहराई को उजागर करती है। सीसीएस को जलवायु परिवर्तन के लिए रामबाण के रूप में पेश करने के लिए फ़ौसिल फ्यूल कंपनियां कथित तौर पर ऑनलाइन विज्ञापन और जनसंपर्क प्रयासों में लाखों डॉलर का निवेश कर रही हैं।
इन कंपनियों द्वारा अपनाई गई रणनीति में, शेवरॉन सबसे आगे खड़ी मिलती है। इसके द्वारा सीसीएस और "रिन्यूबल गैसोलीन ब्लेन्ड" को बढ़ावा देने वाले टिकटॉक विज्ञापनों पर 1.8 मिलियन डॉलर खर्च किया गया है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कैसे ग्रीनवॉशिंग कंटेन्ट की मदद से सर्च इंजन परिणामों तक को अपने एजेंडे के अनुरूप बनाने में फ़ौसिल फ्यूल कंपनियों की भूमिका रही है। इसके अंतर्गत इंटरनेट पर प्रायोजित कंटेन्ट तक रखवाया गया है जिससे "कार्बन कैप्चर" के लिए Google सर्च करने पर जो टॉप नतीजे दिखें उनमें यह प्रायोजित कंटेन्ट दिखे, जिससे सार्वजनिक धारणा को विकृत किया जा सके।
इन अभियानों में भ्रामक संदेश देना एक केंद्रीय नीति है। फ़ौसिल फ्यूल कंपनियां अक्सर यह दावा करती हैं कि सीसीएस उन्हें एमिशन को कम किए बिना संचालन जारी रखने में सक्षम बनाता है। यह संदेश सीसीएस को जलवायु परिवर्तन के लिए सिल्वर बुलेट समाधान या रामबाण के रूप में स्थापित करने का एक स्पष्ट प्रयास है, लेकिन इस रिपोर्ट से इन दावों का खंडन होता है।
फ़र्जी समाधानों का पर्दाफाश
सीएएडी रिपोर्ट सीओपी28 के दौरान और उससे पहले झूठे समाधानों, विशेष रूप से सीसीएस, के आसपास की पैरवी या लौबीईंग गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। यह कंपनियों द्वारा प्रचलित विचारधारा को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति को उजागर करता है, जिसमें मुख्यधारा के दर्शकों के लिए प्रयोजित और 'ऑर्गेनिक' सामग्री दोनों का उपयोग किया जाता है।
हालांकि यह जांच मुख्य रूप से COP28 के दौरान गतिविधियों पर केंद्रित है, लेकिन यह एक चेतावनी भी देती है कि इस मुद्दे का विश्व स्तर पर अधिक व्यापक होना संभव है। जलवायु मुद्दे को पूरी तरह नकारने की घटती स्वीकार्यता का सामना कर रही जीवाश्म ईंधन लॉबी अपनी रणनीति का इस स्थिति के अनुरूप अनुकूलन कर रही है। और इस प्रयास के अंतर्गत, जलवायु परिवर्तन से इनकार करने के बजाय, यह लॉबी संकट को हल करने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में खुद को पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रही है, जिसमें सीसीएस को 'सिल्वर-बुलेट' समाधान के रूप में सामने रखा गया है।
फ़ौसिल फ्यूल के प्रयोग को लेकर सार्वजनिक सोच में हेरफेर
सीसीएस के संभावित रूप से विशिष्ट क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद, यह रिपोर्ट इसकी मदद से नेट ज़ीरो लक्ष्यों को कमजोर करने और तेल, जीवाश्म गैस और अन्य प्रदूषणकारी ईंधन में चल रहे निवेश को उचित ठहराने के लिए इसके दुरुपयोग को भी सामने लाती है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी और आईपीसीसी जैसे संगठनों की वैज्ञानिक सिफारिशों के सापेक्ष इस गलत विचारधारा का प्रसार चिंताजनक है, खासकर जब तमाम देश 2025 के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के अगले दौर के लिए तैयार हो रहे हैं।
रिपोर्ट में शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल, सऊदी अरामको, बीपी, एनब्रिज और शेल सहित फ़ौसिल फ्यूल उद्योग के प्रमुख नामों को भ्रामक अभियानों में योगदानकर्ताओं के रूप में दिखाया गया है। इस वजह से अब यह ज़रूरी हो गया है कि जलवायु समाधान के रूप में सीसीएस के निर्माण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के लिए इसके संभावित प्रभावों के मूल्यांकन की तत्काल आवश्यकता है।
सीसीएस की क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की फ़ौसिल फ्यूल लॉबी की यह कोशिशें अब एक पारदर्शी और सूचित सार्वजनिक चर्चा के महत्व को सामने रखती है। जैसे-जैसे राष्ट्र सार्थक जलवायु कार्रवाई के लिए प्रयास करते हैं, उद्योग के आख्यानों की जांच करना और यह सुनिश्चित करना अनिवार्य हो जाता है कि सार्वजनिक समझ उभरती प्रौद्योगिकियों की वास्तविकताओं और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में उनकी भूमिका के बारे में सही तरीके से जागरूक हो।