कोरोना से कम हुआ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, इस बार पिछले साल से 3 सप्ताह बाद आया अर्थ ओवरशूट डे
कोरोना के साथ जलवायु संकट को दोहरी मार झेलता विश्व (file photo)
अर्थ ओवरसूट डे पर महेंद्र पांडेय का विशेष लेख
1980 के दशक से पर्यावरण सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन लगातार अंतराष्ट्रीय चर्चा का विषय रहा है। हरेक वर्ष बड़े तामझाम के साथ दो-तीन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है, बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं। पर, धरातल पर देखें तो प्राकृतिक संसाधनों का दोहन लगातार बढ़ता जा रहा है। कोई भी संसाधन असीमित नहीं है, हरेक संसाधन की हरेक वर्ष नवीनीकरण की क्षमता सीमित है।
आदर्श स्थिति यह है जब प्राकृतिक संसाधन का जितना वर्ष भर में नवीनीकरण होता है, विश्व की जनसंख्या केवल उतने का ही उपभोग करे, जिससे संसाधनों का विनाश नहीं हो। पर अब हालत यह हो गयी है कि इस वर्ष यानी 2020 के अंत तक जितने संसाधनों का उपयोग हमें करना था, उतने का उपयोग विश्व की आबादी 22 अगस्त तक ही कर चुकी है।
पूरे वर्ष के संसाधनों का उपभोग मानव जाति जिस दिन कर लेती है, उस दिन को 'अर्थ ओवरशूट डे' कहा जाता है, यानी सालभर का कोटा हमने ख़तम कर दिया और इसके आगे जो उपभोग किया जाएगा, उसकी भरपाई प्रकृति कभी नहीं कर पायेगी।
पर्यावरण संरक्षण के तमाम दावों के बाद भी साल दर साल ओवरशूट डे पिछले वर्ष तक पहले से जल्दी आ रहा था, पर इस वर्ष कोविड 19 के प्रभाव से जब पूरी दुनिया लगभग बंद हो गई थी, तब यह दिन पिछले वर्ष की तुलना में तीन सप्ताह बाद आया है। इस वर्ष यह दिन 22 अगस्त को आया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
पिछले वर्ष ओवरशूट डे 29 जुलाई को था। इसका सीधा सा मतलब है कि वर्ष 2020 के पूरे वर्ष में जितने संसाधनों का उपयोग करना था, उतना कोविड 19 की महामारी के बाद भी हम 22 अगस्त तक कर चुके हैं। हमारे पास एक ही पृथ्वी है, पर हमारे संसाधनों के उपभोग की दर के अनुसार हमें 1.6 पृथ्वी की जरूरत है।
ओवरशूट डे का निर्धारण ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क नामक एक अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्था करता है। यह संस्था 1970 से लगातार इसका निर्धारण कर रही है। साल दर साल प्राकृतिक संसाधनों के बढ़ते दोहन का यह सही प्रमाण है। वर्ष 1970 में ओवरशूट डे 29 दिसम्बर को था, जबकि 1988 में 15 अक्टूबर को, 1998 में 30 सितम्बर को, 2000 में 23 सितम्बर को, और 2008 में यह दिन 15 अगस्त को, 2010 में 7 अगस्त को और 2019 में 29 जुलाई को आया था। वर्ष 2019 में यह पहली बार जुलाई के महीने में आया था, और अनुमान था कि यदि कोविड 19 का कहर नहीं होता तो इस वर्ष यह तारीख 29 जुलाई से पहले आती।
बढ़ती आबादी के साथ साथ खाद्यान्न उत्पादन, धातुओं का खनन, जंगलों का कटना और जीवाश्म इंधनों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है। इससे कुछ हद तक अल्पकालिक जीवन स्तर में सुधार तो आता है, पर दीर्घकालिक परिणाम भयानक हैं।
विश्व की कुल भूमि में से एक-तिहाई से अधिक बंजर हो चुकी है, पानी की लगभग हरेक देश में कमी हो रही है, तापमान बढ़ता जा रहा है, जलवायु का मिजाज हरेक जगह बदल रहा है, जैव-विविधता तेजी से कम हो रही है और जंगल नष्ट होते जा रहे हैं। हम प्रकृति से उधार लेकर अर्थव्यवस्था में सुधार ला रहे है।
वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं, हम यह उधार कभी नहीं चुका पायेंगे, पर सभी देश इसे नजरअंदाज करते जा रहे हैं। पूंजीवादी व्यवस्था पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों का विनाश करने पर तुली है, पर यह सब बहुत दिनों तक चलेगा ऐसा लगता नहीं है।
पूंजीवादी व्यवस्था में समय समय पर झटके लगते रहते हैं और आर्थिक मंदी का दौर आता रहता है। आर्थिक मंदी के दौर में औद्योगिक गतिविधियाँ कम होने लगती हैं और तेल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन में कमी आ जाती है।
इस वर्ष कोविड 19 की आपदा ने यह असर दिखाया है। ऐसे वर्षों में यह प्रभाव ओवरशूट डे पर भी पड़ता है। वर्ष 2004-2005 की आर्थिक मंदी के समय ओवरशूट डे 5 दिन आगे खिसक गया था। इसी तरह का असर 1980 और 1990 के दशक की मंदी के समय और 1970 के पेट्रोलियम पदार्थों की कमी के समय देखा गया था। इस वर्ष यह तीन सप्ताह आगे कोविड 19 के असर के कारण चला गया।
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार आज भी प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित उपभोग को नियंत्रित कर स्थिति कुछ हद तक बेहतर बनायी जा सकती है। वर्तमान में मांस की जितनी खपत है, यदि उसे आधी कर दी जाए तो ओवरशूट डे को पांच दिन आगे किया जा सकता है।
भवनों और उद्योगों की दक्षता में सुधार लाकर इसे तीन सप्ताह आगे किया जा सकता है और यदि कुल कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को आधा कर दिया जाए तब ओवरशूट डे तीन महीने आगे चला जाएगा। इस वर्ष भी सबसे अधिक असर ग्रीनहाउस गैसों के कम उत्सर्जन के कारण ही पड़ा है। इस वर्ष अब तक दुनिया में पिछले वर्ष की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 14.5 प्रतिशत कम रहा है।
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अध्यक्ष मथिस वाच्केर्नागेल के अनुसार वर्ष 2020 में पहली बार पिछले वर्ष की तुलना में तीन सप्ताह का अंतर आया है, और इस वर्ष यह स्तर वर्ष 2006 के पहले के स्तर पर पहुँच गया है। यह अच्छी बात है, पर जाहिर है इस वर्ष यह अंतर कोविड 19 महामारी के कारण है।
हम एक ऐसे विश्व की कल्पना कर रहे हैं, जहां प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर कोई आपदा लगाम नहीं लगाए बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था स्वयं सामान्य प्रक्रिया में इन संसाधनों का कम दोहन करे, कम अपशिष्ट उत्पन्न करे और ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करे। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो वर्तमान के लिए अपने भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं।