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पर्यावरण

आदिवासी गोंड समाज शवों को जलायेगा नहीं दफनायेगा, पेड़ कम कटें इसलिए ली अनोखी पहल

Janjwar Desk
10 March 2021 6:17 AM GMT
आदिवासी गोंड समाज शवों को जलायेगा नहीं दफनायेगा, पेड़ कम कटें इसलिए ली अनोखी पहल
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प्रतीकात्मक फोटो (Social Media)

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों में गोंड समाज बहुत खास माना जाता है, गोंड समाज ने एक महासभा आयोजित की थी, जिसमें ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ऐलान किया है कि समाज को सुधार की दिशा में आगे बढ़ाना है...

जनज्वार, कवर्धा। आज पर्यावरण जिस तरह दूषित होता जा रहा है, उसे कम करने के तो नहीं मगर पर्यावरण को और ज्यादा प्रदूषित करने की पहलकदमियां जरूर होती हैं। मगर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में छत्तीसगढ़ के आदिवासी गोंड समाज ने एक ऐसी पहलकदमी ली है, जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। उन्होंने निर्णय लिया है कि पेड़ जोकि पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत जरूरी हैं, वो कम कटें, इसलिए लाशों का अंतिम संस्कार जलाकर नहीं, बल्कि दफनाकर किया जायेगा।

इसके साथ ही गोंड समाज ने एक और स्वागतयोग्य फैसला लिया है। शराब पीने—परोसने और दहेज पर भी पाबंदी लगाने का निर्णय लिया गया है। गौर करने वाली बात है कि आदिवासियों में देवी-देवताओं की पूजा में भी शराब अर्पण करने की परंपरा रही है, साथ ही सार्वजनिक समारोहों में स्त्री—पुरुष सभी शराब का सेवन करते हैं। अब निर्णय लिया गया है कि पूजा पाठ के आयोजनों में शराब की जगह भगवान को महुआ का फूल अर्पित किया जाएगा। यानी आदिवासी समाज में शराब उनकी संस्कृति का एक हिस्सा रहा है, बावजूद इसके ऐसा निर्णय लेना बहुत स्वागतयोग्य माना जा रहा है।

कवर्धा के सरदार पटेल मैदान में जिला गोंड़ समाज सेवा समिति ने गोंडवाना गोंड़ महासम्मेलन का आयोजन किया। इस महासम्मेलन के दौरान गोंड समाज के लिए 60 पेज का एक संविधान तैयार किया गया है। इसमें 50 से अधिक प्रस्ताव पारित किए गए हैं। प्रमुख रूप से शराब पर प्रतिबंध, दहेज पर रोक, समाज में मृत्यु, जन्म व विवाह समेत अन्य कार्यक्रम में पवित्र ग्रंथ गोंडी कोयापूनेम के आधार पर काम करना शामिल है। गोंड समाज द्वारा बनाए गए 60 पेज के लिखित संविधान को जिला महासचिव सिद्दराज मेरावी समेत पदािधकारियों ने अनुमोदन किया है।

गोंड समाज ने निर्णय लिया है कि अगर किसी भी सामाजिक समारोह में शराब पिलाई गई तो आयोजक पर आर्थिक दंड लगाया जाएगा। जन्मोत्सव में शराब पिलाने पर दो हजार और वैवाहिक कार्यक्रम में 5 हजार रुपए अर्थदंड रखा गया है। सिर्फ शराब ही नहीं, बल्कि कई ऐसे फैसले किए गए हैं, जो समाज को आगे बढ़ाने वाली सोच को प्रदर्शित करती है। ज्यादातर लोग जानते ही होंगे कि कई आदिवासी समाज या समूहों में शराब उनकी संस्कृति का एक हिस्सा रहा है।

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों में गोंड समाज बहुत खास माना जाता है। गोंड समाज ने एक महासभा आयोजित की थी, जिसमें ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ऐलान किया है कि समाज को सुधार की दिशा में आगे बढ़ाना है।

महासम्मेलन में गोंड समाज में दहेज पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। कोई भी परिवार उपहार स्वरूप अपनी बेटी को कुछ भी देता है, तो वह वैवाहिक कार्यक्रम में समाज के सामने नहीं लाएगा। उपहार को सीधे लड़के के घर भेजा जाएगा। इसके अलावा जिले के सभी गोंड़ एक ही माने जाएंगे। अब राज गोंड़, ध्रुव गोंड़ सभी एक होंगे। रोटी-बेटी भी चलेगा।

इतना ही नहीं आर्थिक दबाव कम करने के लिए बारात में लोगों की संख्या कम कर दी है, केवल 50 लोग ही बारात में जाएंगे और सगाई में सिर्फ 20 लोग शामिल हो सकते हैं।

अंतिम संस्कार के दौरान अब मृतक को दफनाया जाएगा। कुछ केसों में समाज के निर्णय अनुसार किसी का अंतिम संस्कार जलाकर किया जा सकता है। इसके अलावा गोंड समाज के बच्चों के लिए भर्ती परीक्षा की तैयारी करने विशेष कोचिंग कक्षा संचालित की जाएगी। इसके लिए समाज व्यवस्था करेगा।

इस मामले में कबीरधाम ज़िले में गोंड समाज के महासचिव सिद्धराम मेरावी ने मीडिया को बताया कि गोंड़ समाज की रीति नीति, संस्कृति व परंपराएं प्रकृति से जुड़ी हैं। सदियों पहले शवों को दफनाया ही जाता था। अब उस परंपरा को फिर से शुरू करना है क्याेंकि अब यह जरूरत है। पेड़ कम से कम कटें, प्रकृति का कम नुकसान हो इसलिए शवों को दफनाना ज्यादा सही होगा। निर्णय समाज के लोगों पर निर्भर है।

सिद्धराम मेरावी कहते हैं, "पिछले कुछ सालों में तेज़ी से पेड़ कटे हैं। शवों को जलाने में बड़ी संख्या में लकड़ी का उपयोग होता है। ऐसे में पेड़ों को बचाने के दृष्टिकोण से यह ज़रूरी फ़ैसला है, जिसे हमने अपने संविधान में शामिल किया है।"

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