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पर्यावरण

रैणी आपदा के 2 साल, 206 लोग दफन हो गये थे तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के बैराज और सुरंग के मलबे में

Janjwar Desk
9 Feb 2023 4:03 PM IST
रैणी आपदा के 2 साल, 206 लोग दफन हो गये थे तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के बैराज और सुरंग के मलबे में
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रैणी आपदा के 2 साल, 206 लोग दफन हो गये थे तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के बैराज और सुरंग के मलबे में (photo : Indresh Maikhuri)

2 years of Raini Disaster : 2 साल पहले जब यह जल प्रलय आई थी, तब भी विकास के विनाशकारी मॉडल पर सवाल उठे थे, जो किसी भी आपदा की विभीषिका को कई गुना बढ़ा देता है, 206 लोगों के दफन होने के बाद भी सत्तासीनों की प्राथमिकता, अपने उस विनाशकारी विकास के मॉडल को बचाना ही था, आज भी उनकी प्राथमिकता वही है....

इंद्रेश मैखुरी की टिप्पणी

2 years of Raini Disaster : 07 फरवरी को जोशीमठ क्षेत्र के ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने से हुई तबाही को दो वर्ष पूरे हो गए हैं. 07 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा की सहायक रौंठीगाड़ से पानी का जो सैलाब आया, उसने रैणी गाँव के पास ही ऋषिगंगा पर बनी 13 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना को पूरी तरह नेस्तनाबूत कर दिया. तपोवन में धौलीगंगा पर एनटीपीसी की निर्माणाधीन 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना के बैराज और सुरंग को मलबे से पाट दिया. इसमें 206 लोग लापता हो गए.

इस घटना के जब दो साल पूरे हो गए हैं तो यह देखना समीचीन होगा कि तब से अब तक क्या बदला है या क्या सुधरा है. रैणी की घटना के दो साल बाद आज जोशीमठ शहर भू धँसाव की चपेट में आकर अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. लेकिन आपदा प्रबंधन के लिहाज से देखा जाये तो निल बट्टा सन्नाटा ही नजर आता है.

उस दिन रैणी में जलविद्युत परियोजना के अस्तित्व को मिटाता पानी, प्रचंड वेग से तपोवन तक पहुंचा तो वहाँ परियोजना बनाने वाली कंपनी ने कोई खतरे की पूर्व चेतावनी वाला तंत्र (अर्ली वार्निंग सिस्टम) भी नहीं लगाया हुआ था. पूर्व चेतावनी तंत्र होता तो प्रचंड जलराशि के रैणी से तपोवन तक पहुँचने के बीच वे मजदूर सतर्क हो जाते, जिनका अथाह जलराशि में बह जाने का वीडियो दुनिया ने देखा.

दो साल पहले जब यह जल प्रलय आई तो तब भी विकास के विनाशकारी मॉडल पर सवाल उठे थे, जो किसी भी आपदा की विभीषिका को कई गुना बढ़ा देता है. उस समय भी सत्तासीनों की प्राथमिकता, अपने उस विनाशकारी विकास के मॉडल को बचाना ही था, आज भी उनकी प्राथमिकता वही है.

तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जब घटनास्थल पर आए तो उन्होंने पत्रकारों से कहा- इस घटना को विकास के खिलाफ प्रोपेगैंडा के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री आरके सिंह ने तपोवन में कहा- उनकी पहली प्राथमिकता तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना शुरू करना है. ये दोनों नेतागण ये बयान तब दे रहे थे, जबकि दो सौ लोग लापता थे. लेकिन उनकी प्राथमिकता में परियोजना का बचाव था.

आज दो साल बाद जब जोशीमठ अपने अस्तित्व को जूझ रहा है, तब भी सरकार और उसके कारकुनों की प्राथमिकता परियोजना का बचाव ही है. पूरा जोशीमठ महसूस कर रहा है कि उसकी तबाही के पीछे एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना मुख्य कारक है. लेकिन सरकार और उसके समर्थकों का कहना है कि बाकी कुछ भी कहो पर परियोजना के खिलाफ कुछ मत कहो. लोग नारा लगा रहे हैं- जोशीमठ बचाओ. सत्तानशीनों का नारा है- एनटीपीसी बचाओ!

राहत और बचाव के इंतजाम और गति में दो साल पहले और अब में कोई खास फर्क नहीं है. तब भी सारा तंत्र झोंक देने के बाद भी दो सौ चार लोग नहीं खोजे जा सके थे, सुरंग में फंसे लोगों को नहीं निकाला जा सका था, उनके बड़े हिस्से को आज भी नहीं खोजा जा सका है. वर्तमान में भी राहत और पुनर्वास का कोई खाका सरकार और प्रशासन के पास नजर नहीं आता है.

दो वर्ष पहले जब रैणी-तपोवन हादसे में तपोवन साइट से लापता हुए एक इंजीनियर के परिजनों के साथ हम तत्कालीन जिलाधिकारी से मिले थे तो उन्होंने छूटते ही कहा- आप जहां कहें, वहाँ खुदवा देते हैं! जोशीमठ के भू धँसाव के सिलसिले में जोशीमठ बचाव संघर्ष समिति के संयोजक साथी अतुल सती जब वर्तमान जिलाधिकारी से मिले और उनसे राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्निर्माण नीति 2007 की चर्चा की तो जिलाधिकारी महोदय ने फरमाया- अच्छा ऐसी भी कोई नीति है तो उसे ही लागू कर लेते हैं! तब भी प्रशासनिक मशीनरी किंकर्तव्यविमूढ़ थी, आज भी ऊहापोह में है. इस तरह देखें तो सरकार और उसका तंत्र दो साल में दो कदम भी नहीं चला है, वह वहीं पर खड़ा है, आपदा को देखकर कुछ-कुछ हतप्रभ, कुछ-कुछ अवसर तलाशता !

लेकिन दो साल पहले और अब में यह अंतर है कि जोशीमठ में लोग संघर्ष के मोर्चे पर डटे हुए हैं. सरकारी मशीनरी के लिए यही चिंता और परेशानी का सबब है और जोशीमठ के लिए उम्मीद की किरण यहीं से निकलती है!

(इंद्रेश मैखुरी भाकपा माले के गढ़वाल सचिव हैं।)

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