असम की BJP सरकार ने किया 700 से ज्यादा मदरसों को बंद करने का ऐलान, जनता पर थोपेगी हिंदुत्व का एजेंडा
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। असम एक ऐसा राज्य है जहां की बीजेपी सरकार लगातार हिंदुत्व का एजेंडा जनता पर थोप रही है और इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता या फिर इसे उजागर करने वाले पत्रकार या तो मारे जा रहे हैं या फिर कैदी बनाए जा रहे रहे हैं।
राज्य में कुछ महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में बीजेपी अपना एजेंडा तेजी से राज्य में लागू करती जा रही है। हाल में ही राज्य के शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने ऐलान किया है कि राज्य के सभी मदरसों को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा और इनके बदले सामान्य स्कूल स्थापित किये जायेंगे। इन मदरसों की संख्या 700 से भी अधिक है।
असम के शिक्षा मंत्री के अनुसार मदरसों की तालीम शिक्षा मानकों के अनुरूप नहीं है और हमें भविष्य में मस्जिदों के इमाम से अधिक डॉक्टर, पुलिस, ब्यूरोक्रेट और शिक्षकों की आवश्यकता है। इस वर्ष 21 अप्रैल से राज्य के सभी मदरसे हमेशा के लिए बंद कर दिए जायेंगे। राज्य में कांग्रेस के विधान सभा सदस्य वाजिद अली चौधुरी ने इस कदम की कड़े शब्दों में निंदा की है और इसे मुस्लिमों के विरुद्ध उठाया गया कदम मानते हैं।
बीजेपी के नेता, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, क्या कहते हैं और क्या होता है में हमेशा जमीन.आसमान का अंतर रहता है। शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा कि भविष्य में मस्जिदों के इमाम के बदले शिक्षकों, डाॅक्टरों, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की जरूरत है। दूसरी तरफ जब मुस्लिम पढ़-लिखकर प्रशासनिक सेवाओं में आते हैं तब सुदर्शन टीवी पर यूपीएससी जेहाद दिखाया जाता है, जिसे केंद्र की बीजेपी सरकार भरपूर समर्थन देती है।
यूपीएससी जेहाद की कुछ कड़ियों के प्रसारण के बाद यदि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो यह सीरियल पूरा प्रसारित किया जाता और बीजेपी के नेता सार्वजनिक स्थलों पर इसकी प्रशंसा करते और इसके मनगढ़ंत तथ्यों को जनता के बीच प्रस्तुत कर रहे होते। फिर साल के अंत में सरकार इस सीरियल को अनेक पुरस्कार भी देती और संभव है महाभारत और रामायण की तरह इसका बार.बार अनेक चैनलों पर प्रसारण किया जाता।
असम की बीजेपी सरकार के शिक्षा मंत्री इमाम के बदले समाज में डोक्टरों की बात करते हैं। सुनने में तो अच्छा लगता है, पर उन्होंने डॉ कफील खान का नाम तो सुना ही होगा। एक काबिल डाॅक्टर जिसने सच बोलने का गुनाह किया और फिर उसे नौकरी से निकाला गया, जेल भेजा गया और यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के दायरे में भी डाला गया।
डॉ कफील खान को न्यायालयों के आदेश के बाद भी आज तक वापस नौकरी में बहाल नहीं किया गया। सरकार को यदि सही में शिक्षा के स्तर की इतनी ही चिंता है तो फिर मदरसे बंद नहीं करना चाहिए, बल्कि इसमें सुविधाएं बढ़ाए जाने का ऐलान करना चाहिए।
शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा असम के सर्बनंद सोनोवाल सरकार के सबसे कद्दावर नेता हैं और पिछले 18 वर्षों से राज्य में मंत्री पद पर हैं, 14 वर्ष कांग्रेस की तरुण गोगोई सरकार में और पिछले 4 वर्षों से भाजपा की सोनोवाल सरकार में। वे केवल शिक्षा मंत्री ही नहीं हैं, बल्कि वित्त, स्वास्थ्य और पीडब्लूडी मंत्री भी हैं।
वर्ष 2015 में तरुण गोगोई से मतभेद होने के बाद उन्होंने हेमंत विस्वा ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा और इसके बाद से प्रखर तौर पर कट्टर हिंदूवादी और मुस्लिम विरोधी के तौर पर अपनी छवि स्थापित की। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में असम में बीजेपी की अप्रत्याशित और भारी जीत का बड़ा श्रेय हेमंत बिस्वा सरमा को जाता है।
वर्ष 2016 में हेमंत बिस्वा सरमा ने सभी मदरसों को शुक्रवार को खुला रखने और रविवार को बंद रखने का आदेश दिया था। शुक्रवार को दोपाहर की मुख्य नमाज के कारण उससे पहले मदरसे शुक्रवार को बंद रहते थे और इसके बदले रविवार को भी खुलते थे।
अब जब असम के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ऐसे अनेक आदेशों की उम्मीद की जा सकती है जो मुस्लिमों के विरुद्ध हों और कट्टर हिंदूवादी छवि वाले हों। प्रधानमंत्री मोदी भले ही सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बातें करें, पर बीजेपी का असली चेहरा वही है, जो हेमंत बिस्वा सरमा जैसे नेता दिखा रहे हैं।