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धर्म बदलकर मुस्लिम-ईसाई बने दलितों को नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ? मोदी सरकार का आयोग करेगा अब पड़ताल

Janjwar Desk
8 Oct 2022 4:46 AM GMT
धर्म बदलकर मुस्लिम-ईसाई बने दलितों को नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ? मोदी सरकार का आयोग करेगा अब पड़ताल
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धर्म बदलकर मुस्लिम-ईसाई बने दलितों को नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ? मोदी सरकार का आयोग करेगा अब पड़ताल

SC Status : मोदी सरकार द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है। आयोग अनुच्छेद 341 के तहत धर्मांतरित दलितों को आरक्षण देने के प्रभाव की जांच करेगा।

SC Status : धर्म बदलकर ईसाई या मुसलमान बने दलितों ( Dalit ) को आरक्षण ( SC reservation ) मिले या नहीं, जैसे मसले पर लंबे अरसे से बहस जारी है। अब इस मसले पर मोदी सरकार ( Modi government ) ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई केजी बाला कृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग ( three member commission ) का गठन कर सबको चौंका दिया है। इसे मोदी सरकार की ओर से आरक्षण के मसले पर हृदय परिवर्तन माना जा रहा है। आयोग को धर्मांतरित दलितों को आरक्षण का लाभ देने के असर को लेकर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मोदी सरकार द्वारा आयोग गठन के पीछे वजह क्या है, इसका खुलासा तो अभी नहीं हो सका है, लेकिन धर्मातरितों ( religious conversion ) के लिए इस्लाम और ईसाई धर्म में आरक्षण की अटकलों को समाप्त करते हुए केंद्र सरकार ने आरक्षण ( SC status ) देने की सूरत में उसके असर को लेकर एक आयोग का गठन करने का फैसला लिया है।

मोदी सरकार ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया है जो उन लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मामले की जांच करेगा, जो ऐतिहासिक रूप से एससी समुदायों से संबंधित हैं। हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से इस्लाम और ईसाई में धर्मांतरण के कारण आरक्षण ( Sc reservation ) सूची से बाहर हो गए हैं।

इस बाबत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक तीन सदस्यीय आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ रविंदर कुमार जैन और यूजीसी सदस्य प्रो सुषमा यादव भी शामिल हैं। आयोग संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत समय-समय पर जारी राष्ट्रपति के आदेशों के अनुरूप इस मामले की जांच करेगा। अनुच्छेद 341 में यह बताया गया है कि राष्ट्रपति जाति, जनजाति, जाति या अन्य समूहों की पहचान नियमों के मुताबिक कर उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश दे सकते हैं।

इस प्रावधान के तहत सबसे पहला आदेश 1950 में जारी हुआ था। उस आदेश के तहत दलित हिंदुओं को एससी कटेगरी में शामिल किया गया था। उसके बाद 1956 और 1990 में सिख और बौद्ध समुदाय के दलितों को इस कटेगरी में समायोजित किया गया था। नवगठित आयोग मौजूदा अनुसूचित जाति समुदायों पर इस तरह के आरक्षण के प्रभाव की भी जांच करेगा। साथ ही इन पहलुओं पर भी अध्ययन किया जाएगा कि क्या धर्मांतरण के बाद भी दलितों के साथ भेदभाव जारी है। यह पैनल रीति-रिवाजों, परंपराओं में बदलाव और धर्मांतरण के बाद सामाजिक भेदभाव की स्थिति की जांच करेगा।

आयोग की रिपोर्ट से तय होगा ये मसला

केंद्र सरकार ने यह फैसला 30 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर हुई सुनवाई के बाद लिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से दलितों को इस्लाम और ईसाई धर्म में आरक्षण देने की संभावनाओं पर तीन सप्ताह के भीतर सरकार का रुख साफ करने का वादा किया। शीर्ष अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जाति के आरक्षण को धर्म से अलग करने की मांग की गई थी।

मनमोहन सिंह सरकार के समय में भी हुआ था दो आयोग का गठन

बता दें कि देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दशा और ​दिशा को लेकर समय-समय पर सरकारों द्वारा लगातार प्रयास किए गए हैं। डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में यूपीए वन सरकार ने दो पैनल बनाए थे। इनमें पहला राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया ​था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया था। वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर के अधीन एक उच्च स्तरीय आयोग का गठन किया गया था। सच्चर समिति ने देश में मुसलमानों की दयनीय सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लेकर कहा था कि उनकी स्थिति कुछ मामलों में दलितों से भी बदतर है। रिपोर्ट में बताया गया था कि दलित धर्मांतरितों के बीच इस्लाम में भी कोई जबरदस्त सुधार के संकेत नहीं मिले हैं।

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