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देश में 43170 पुल खतरनाक हालत में, 5300 इतने ज्यादा जर्जर कि कभी हो सकता है मोरबी जैसा हादसा

Janjwar Desk
8 Nov 2022 4:10 AM GMT
Morbi bridge collapse updates : मोरबी जैसा पुल बनता ही क्यों है कि हिलाने भर से टूट जाता है
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Morbi bridge collapse updates : मोरबी जैसा पुल बनता ही क्यों है कि हिलाने भर से टूट जाता है

देश में 5300 पुल ऐसे हैं जो संरचनात्मक तौर पर कमजोर, पुराने और खतरनाक हो चुके हैं, यानी कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं, अकेले उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 के दौरान ऐसे 226 पुलों की पहचान की गयी, पर पहचान के बाद इनकी मरम्मत या उचित रखरखाव के लिए कुछ भी नहीं किया गया...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

In India, thousands of bridges are technically distressed, structurally dilapidated and risky for people. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोरबी पुल दुर्घटना पर आंसू बहाये, फिर फैंसी ड्रेस पहने रंग-रोगन अस्पताल का दौरा किया और इसके दो दिनों बाद ही सार्वजनिक तौर पर ऐलान कर दिया कि इस गुजरात को मैंने बनाया है। जिस गुजरात को पिछले कई वर्षों से तथाकथित विकास का पर्यायवाची बताया जा रहा है, यदि उसे बनाने का दावा प्रधानमंत्री कर रहे हैं तो जाहिर है इस विकास को कभी मोरबी पुल टूटने के नाम पर, कभी बाढ़ से डूबते शहरों के नाम पर, कभी ट्रम्प के आने पर झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों को सफ़ेद टाट से ओझल करने के नाम पर और कभी नर्मदा किनारे के किसानों का हक़ मार कर साबरमती में रिवरफ्रंट विकसित करने के नाम पर दुनिया देख भी रही है, और इस तथाकथित विकास को समझ भी रही है।

मोरबी पुल हादसा अब समाचारों से गायब हो चुका है। मीडिया से खबरों को गायब करने के अपने फायदे हैं – अब पुल की देखरेख करने वाली और सरकार से अभय वरदान प्राप्त कंपनी, ओरेवा पर प्रश्न उठने बंद हो गए और दूसरा फायदा यह है कि देश के दूसरे पुराने पुलों के बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है। हमारे प्रधानमंत्री हमेशा चुनावी मोड में ही रहते हैं – पुल हादसे के दिन भी चुनावी मोड में थे और आज भी उसी मोड में ही हैं, दूसरी तरफ सामान्य नागरिक पहले भी दुर्घटनाओं में मरते थे और आगे भी मरते रहेंगे।

वर्ष 2015 के रेलवे ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में कुल 173000 पुल हैं और इनमें से 36470 पुल अंग्रेजों के शासन में बने हैं और 6700 पुल इससे भी पहले के हैं। अधिकतर पुराने पुल अपनी उम्र पूरे कर चुके हैं यानी अब 43170 पुल बहुत खतरनाक हो चुके हैं, जहां कभी भी मोरबी जैसा हादसा हो सकता है। मगर मोदीराज में पुराने पुलों के नियमित मरम्मत की कोई व्यवस्था भी नहीं है।

इंडियन ब्रिज मैनेजमेंट सिस्टम के अनुसार देश में 5300 पुल ऐसे हैं जो संरचनात्मक तौर पर कमजोर, पुराने और खतरनाक हो चुके हैं, यानी कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 के दौरान ऐसे 226 पुलों की पहचान की गयी, पर पहचान के बाद इनकी मरम्मत या उचित रखरखाव के लिए कुछ भी नहीं किया गया।

इंडियन इंस्टिट्यूशन ऑफ़ ब्रिज इंजीनियर्स के सदस्य साहिल म्हात्रे के अनुसार अधिकतर पुराने पुलों का स्ट्रक्चर ऑडिट भी नहीं किया जाता है। अंग्रेजों के समय बनाए गए पुल बहुत मजबूत थे, और उस समय के अधिकतर पुल भविष्य को ध्यान में रखकर जरूरत से अधिक चौड़े भी बनाए गए थे। पर, समय के साथ-साथ सडकों चौड़ी होती गईं और ट्रैफिक का बोझ भी बढ़ गया। इसके बाद भी अंग्रेजों द्वारा बनाए गए अधिकतर पुल आज भी हमारी जरूरत पूरी कर रहे हैं। आजकल के पुलों का संरचनात्मक परीक्षण स्ट्रेन गेज सेंसर्स या फिर दूसरी विधियों द्वारा किया जाता है, पर जाहिर है पुराने पुलों के लिए यह सुविधा नहीं है। पुराने पुलों का हरेक 2-3 वर्ष के अंतराल पर संरचनात्मक ऑडिट किया जाना चाहिए, पर ऐसा किया नहीं जाता।

वर्ष 2018 में रेलवे से सम्बंधित संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि अधिकतर रेलवे पुल पुराने हैं, यात्रियों के लिए खतरनाक हो चले हैं और इनके रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। पुलों की शिकायतों के बाद भी इनकी मरम्मत में कई साल बीत जाते हैं, और जाहिर है यात्रियों की सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जाता है। दिल्ली में यमुना पर बना ओल्ड रेलवे ब्रिज अंग्रेजों ने वर्ष 1866 में तैयार किया था, यह संरचनात्मक तौर पर खतरनाक करार दिया गया है, फिर भी रेलवे ने इसका विकल्प आज तक नहीं खोजा है।

हमारे प्रधानमंत्री लगातार अंग्रेजों की विरासत को इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि गुलामी का प्रतीक बताते रहे हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार ने कभी गणतंत्र दिवस के बाद होने वाले बीटिंग रिट्रीट के दौरान बजने वाले अंगरेजी गाने की धुन को बदला, तो कभी सड़क का नाम बदला। गुलामी का प्रतीक बताकर ऐतिहासिक संसद भवन को भी नकार कर सेंट्रल विस्टा का नजारा दुनिया देख रही है। सेना के अनेक अंग्रेजी नाम वाले रेजिमेंट का नाम भी हिंदी में करने की कवायद चल रही है।

अनेक आलोचकों के अनुसार अंग्रेजों और अंग्रेजी विरोध का इतना दिखावा करने के बाद भी केंद्र सरकार अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, जिनमें पुल भी शामिल हैं, के रखरखाव और मरम्मत की कोई योजना नहीं तैयार करती। जाहिर है, इन हजारों पुराने पुलों पर कभी भी कोई हादसा हो सकता है, पर अब हादसे और अकाल मौतें समाचार नहीं बनते।

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