IMA ने PM मोदी को बताया कोरोना का 'सुपर स्प्रेडर', सरकार ने नागरिकों को झोंका मौत के जबड़े में
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी
जनज्वार। कोविड-19 की दूसरी लहर देश में नरसंहार कर रही है और यह भारत के लिए घातक हो गई है। मोदी सरकार ने नागरिकों को मौत के जबड़े में झोंक दिया है। फिलहाल हालात नियंत्रण से बाहर हैं। जरूरतमंदों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने की बात तो दूर है, शवों के ढेर एकत्रित हो रहे हैं और दाह संस्कार में देरी हो रही है।
दाह संस्कार के लिए नए श्मशान बनाए जा रहे हैं। पूरे देश के अस्पतालों में कष्टप्रद दृश्य हैं। अस्पतालों में बेड, दवाओं, ऑक्सीजन, डॉक्टरों और नर्सों की किल्लत हो रही है। हर गुजरते दिन के साथ स्थिति बदतर होती जा रही है। मोदी सरकार ने अपने लोगों को तड़प तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया है।
अगर मोदी सरकार अपनी विफलता को स्वीकार कर माफी मांगती तो पीड़ित लोगों की तकलीफ कुछ कम हो सकती थी, लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही है। इसके बजाय, यह सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। सरकार अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है। यहां हमें आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले द्वारा व्यक्त की गई चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए।
होसबले ने कहा, "विनाशकारी और भारत-विरोधी ताकतें नकारात्मकता और अविश्वास का माहौल बनाने के लिए स्थिति का फायदा उठा सकती हैं।"
उन्होंने लोगों से अधिक संयम और धैर्य रखने को भी कहा है। उनका संदेश साफ है कि लोगों को सरकार की विफलता के खिलाफ शिकायत नहीं करनी चाहिए और नकारात्मकता की भावनाओं को नहीं फैलाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पदाधिकारी सोचता है कि सरकार अपने कर्तव्यों का सही तरीके से पालन कर रही है और इसकी विफलता के लिए आलोचना करना भारत विरोधी गतिविधियों में मदद करना है। संघ के लिए मोदी सरकार और भारत राष्ट्र में कोई अंतर नहीं है।
लेकिन स्थिति इतनी खराब कैसे हो गई? क्या यह रातोंरात हुआ है? नहीं, सरकार अपनी प्राथमिकताओं को समझती और बचाव की नीति को समय पर लागू करती तो स्थिति को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता था।
दुर्भाग्य से सरकार शुरू से ही सबकुछ गलत कर रही है। पहल जब वायरस से प्रभावित लोगों के मामले विदेश में दर्ज किए गए थे, तब भी इस वायरस को गंभीरता से नहीं लिया गया, हालांकि विशेषज्ञों ने सरकार को बार-बार आगाह किया था। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने उस समय सरकार को आगाह किया था, लेकिन जब वायरस भारत पहुंचा और आगे बढ़ रहा था तो पांच घंटे के नोटिस में एक राष्ट्रीय लॉकडाउन घोषित किया गया, जिससे लोगों को, विशेष रूप से लाखों प्रवासी श्रमिकों को भारी कठिनाई हुई।
शुरुआत से लेकर अब तक अगर हम कोविड -19 पर प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों की विभिन्न टिप्पणियों पर गौर करें, तो यह स्पष्ट होगा कि महामारी के प्रति मोदी सरकार का रवैया हमेशा 'आपदा में अवसर' खोजने वाला था।
कोई आश्चर्य नहीं कि सरकार अब तक महामारी को प्रबंधित करने में विफल रही है। एक और बात यह है कि इस महामारी ने हमारे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की बदहाली को भी उजागर किया है।
विशेषज्ञ कह रहे हैं कि वायरस से बचाव के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण चीजें परीक्षण और टीकाकरण हैं, लेकिन हमारे देश में अब तक आबादी के बहुत छोटे हिस्से का परीक्षण किया गया है। कौन जानता है कि कितने लोग अभी भी वायरस के साथ घूम रहे हैं?
दूसरी चीज है टीकाकरण। सरकार ने यह भी माना कि जब तक एक वैक्सीन का उत्पादन नहीं किया जाता, तब तक हमें अतिरिक्त सतर्कता बनाए रखनी चाहिए, लेकिन भारत में वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाने और अपने लोगों के लिए टीके हासिल करने में उन्होंने कोई जरूरी कदम क्यों नहीं उठाया?
यह रिकॉर्ड में है कि जब दुनिया के अन्य सभी देश वैक्सीन निर्माण कंपनियों को भारी मात्रा में धन मुहैया करा रहे थे, भारत सरकार ने ऐसी कोई बात नहीं की। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक वैक्सीन पर काम कर रहे थे, लेकिन 19 अप्रैल 2021 तक भारत सरकार ने उनके लिए कोई धन मुहैया नहीं किया। फिर जब भारत में टीकों की बड़ी कमी है, केंद्र सरकार ने पहले से ही 70 देशों को लगभग छह करोड़ टीके निर्यात किए हैं।
वायरस की दूसरी लहर को रोकने के लिए सरकार की ओर से कोई तैयारी नहीं थी, और दूसरी बात यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों ने विशाल चुनावी रैलियों का आयोजन करके इसको विकराल बनाया।
इतना ही नहीं, सरकार ने उत्तर प्रदेश में कुंभ मेले को आयोजित करने की अनुमति दी। दोनों अवसरों ने वायरस के सुपर स्प्रेडर के रूप में काम किया और स्थिति को नाजुक बना दिया। गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने विशाल चुनावी रैलियों को संबोधित करके यही काम किया। मद्रास उच्च न्यायालय ने इसी बात पर चुनाव आयोग को फटकार लगाई है।
दुर्भाग्य से जब यह सब हो रहा था, तो सुप्रीम कोर्ट मूकदर्शक बना रहा। दुनिया में कहीं भी कोविड-19 की दूसरी लहर से लोगों को इतना नुकसान नहीं हो रहा है जितना कि भारत में हुआ है। अगर सरकार समय पर निर्णायक कार्रवाई करती तो यह नियंत्रित हो सकता था।
यही वजह है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नवजोत दहिया ने कोविड -19 की दूसरी लहर फैलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है। दहिया ने उन्हें 'सुपर स्प्रेडर' कहते हुए आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने चुनाव में बड़ी राजनीतिक रैलियों का आयोजन करने के साथ साथ महामारी के दौरान कुंभ मेले की अनुमति प्रदान कर दी।
गौरतलब है कि डॉ. नवजोत दहिया ने कहा कि एक ओर जहां मेडिकल बिरादरी लोगों को कोविड की गाइडलाइंस के अनिवार्य रूप से पालन पर जोर दे रही थी तो वहीं पीएम मोदी ने बड़ी-बड़ी राजनीतिक रैलियों को संबोधित करते हुए कोरोना की गाइडलाइन्स की धज्जियां उड़ते हुए देख रहे थे।
उन्होंने कहा कि मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के कारण देश के हर हिस्से में कई रोगियों की मौत हो गयी, जबकि ऑक्सीजन स्थापित करने की कई परियोजनाएं मंजूरी के अभाव में केंद्र सरकार के पास लंबित पड़ी रहीं, लेकिन चुनावी दौरे व तैयारियों में मस्त सरकार के मंत्रियों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। मोदी सरकार ने ऑक्सीजन की जरूरत को महत्वपूर्ण ही नहीं समझा।
डॉ. नवजोत दहिया ने कहा कि देश के हर शहर के अस्पतालों के बाहर मरीजों व परिजनों की भीड़ के साथ-साथ श्मशान घाटों और एम्बुलेंसों में शवों की संख्या को देखकर देशभर में महामारी का प्रभाव स्पष्ट से रूप समझा जा सकता है। स्वास्थ्य सेवा संकट की गंभीरता के बावजूद हरिद्वार में कुंभ मेले जैसी चुनावी रैलियों और धार्मिक मंडलों को जारी रखना घातक कदम था। इसी से पता चलता है कि इस घातक वायरस के प्रसार से निपटने के लिए मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार गंभीर नहीं दिखायी दे रही थी।