नहीं रास आ रहा लोगों को PM मोदी का कैशलेस अभियान, 6 सालों में 239 फीसदी हुई नकदी में वृद्धि
नई दिल्ली। मोदी सरकार का जोर भले ही देश को कैशलेस करने पर हो लेकिन जनता को कैशलेस अभियान रास नहीं आ रहा है। नोटबंदी के बाद मौजूदा दौर में बाजार में हार्ड करेंसी की तरलता अपनी जबरदस्त ऊंचाई पर है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं।
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर 2022 तक देश में कुल 30.88 लाख करोड़ रुपये का कैश उपलब्ध है, जबकि नोटबंदी से पहले 4 नवंबर 2016 को यह आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ रुपये था। नोटबंदी के दो हफ्ते बाद 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख करोड़ रुपये जनता के पास नकद थे, लेकिन अब इसमें केवल छः साल बाद ही 239 फीसदी की अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार 21 अक्टूबर 2020 को समाप्त पखवाड़े में दिवाली की पूर्व संध्या पर जनता के पास नकदी के रूप में 25,585 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई। साल दर साल इसमें 9.3 फीसदी यानी 2.63 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई। नवंबर 2016 में नोटबंदी होने के बाद 4 नवंबर 2016 को जनता के पास 17.97 लाख करोड़ रुपये की नकदी थी लेकिन जनवरी 2017 में यह घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई। जिसे नोटबंदी का प्रभाव माना जा सकता है।
मालूम हो कि जनता के पास कैश की गणना कुल चलन (सीआईसी) मुद्रा से बैंकों के पास नकदी की कटौती के बाद की जाती है। सिस्टम में नकदी लगातार बढ़ रही है, भले ही सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कैश लेस समाज, भुगतान के डिजिटलीकरण और विभिन्न लेनदेन में नकदी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया है।
हालांकि सरकार के बढ़ावा दिए जाने के बाद डिजिटल भुगतान हाल के वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन त्योहारी सीजन के दौरान नकदी की मांग अधिक रहती है, जिसकी वजह बड़ी संख्या में व्यापारी वर्ग का अभी भी एंड-टू-एंड लेनदेन के लिए नकद भुगतान पर निर्भर होना है। लगभग 15 करोड़ लोगों के पास अभी भी बैंक खाता नहीं होने के कारण नकद लेन-देन का एक प्रमुख माध्यम बना हुआ है। इसके अलावा टियर चार शहरों में 90 प्रतिशत ई-कॉमर्स लेनदेन में भुगतान के लिए नकद का उपयोग करते हैं, जबकि टियर एक शहरों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत है।