बेल पर जेल से बाहर आए कवि वरवर राव पर NIA कोर्ट ने थोपी शर्त : न सोशल मीडिया पर लिख सकते, न इंटरव्यू दे सकते और न ही किसी से मिल सकते हैं
बेल पर जेल से बाहर आए कवि वरवर राव पर NIA कोर्ट ने थोपी शर्त : न सोशल मीडिया पर लिख सकते, न इंटरव्यू दे सकते और न ही किसी से मिल सकते हैं
Varvara Rao bail NIA court : मुंबई की एक अदालत ने भीमा-कोरेगांव मामले के एक आरोपी कवि वरवर राव के लिए जमानत की शर्तें निर्धारित की हैं और उन्हें शहर में रहने और अदालत की अनुमति के बिना शहर नहीं छोड़ने के लिए कहा है।
अदालत ने राव को मुंबई में अपने आवास पर 'आगंतुकों के इकट्ठा करने' से भी प्रतिबंधित कर दिया है और उनसे किसी भी 'आपराधिक गतिविधियों, उनके खिलाफ या अन्यथा मामले के समान' में शामिल नहीं होने और किसी भी सहआरोपी या इसी तरह की गतिविधियों में शामिल किसी अन्य व्यक्ति से संपर्क नहीं करने के लिए कहा है। उच्चतम न्यायालय ने 82 वर्षीय राव को उनकी बढ़ती उम्र और बीमारियों को देखते हुए नियमित जमानत दी थी।
हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने उनकी जमानत की शर्तें तय की, जिनका विवरण 20 अगस्त को उपलब्ध कराया गया।
जमानत की शर्तों में राव को अधिक से अधिक मुंबई के क्षेत्र में रहने और एनआईए अदालत की पूर्व अनुमति के बिना शहर नहीं छोड़ने का आदेश दिया गया है। अदालत ने कहा कि वह बृहत्तर मुंबई में अपने निवास का विस्तृत पता और अपने संपर्क नंबर के साथ अपने तीन करीबी रिश्तेदारों और उनके साथ रहने वाले व्यक्तियों के नंबर भी प्रस्तुत करेंगे। अदालत ने आरोपी को मामले के संबंध में मीडिया को कोई बयान नहीं देने का निर्देश दिया। चाहे वह प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया ही क्यों न हो।
अदालत ने कहा कि वह या तो समान या किसी अन्य प्रकृति का कोई अन्य अपराध नहीं करेंगे और किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे, जिसके संबंध में उनके खिलाफ वर्तमान अपराध दर्ज किया गया है। इसके अलावा वरवर राव को निर्देश दिया गया है कि वह सहआरोपी या इसी तरह की गतिविधियों में शामिल किसी अन्य व्यक्ति से संपर्क या संवाद न करें।
राव की जमानत की शर्त में लिखा है कि वह संचार के किसी भी माध्यम से समान गतिविधियों में लिप्त किसी भी व्यक्ति को, घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय, कोई भी कॉल नहीं करेंगे। आरोपी को अभियोजन पक्ष के गवाहों के साथ व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से छेड़छाड़ नहीं करने के लिए कहा गया है।
साथ ही जमानत की शर्त में यह भी लिखा गया है कि वह फरार नहीं होंगे या न्याय से भागने की कोशिश नहीं करेंगे। अदालत ने कहा कि जहां राव ग्रेटर मुंबई में निवास करेंगे वहां आगंतुकों का कोई जमावड़ा नहीं होगा। अदालत ने आरोपी को इतनी ही राशि के दो सॉल्वेंट ज़मानत के साथ 50,000 रुपये का नया मुचलका भरने को कहा है।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद के एक सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि अगले दिन महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास जातीय हिंसा हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।
पुलिस ने दावा किया था कि कॉन्क्लेव का आयोजन माओवादियों से जुड़े लोगों ने किया था। बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ;एनआईएद्ध ने मामले की जांच अपने हाथ में ली।
वरवर राव को 28 अगस्तए 2018 को उनके हैदराबाद स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था और वह इस मामले में विचाराधीन हैं। पुणे पुलिस ने 8 जनवरीए 2018 को भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
वर्ष 1940 में तत्कालीन आंध्रप्रदेश और वर्तमान तेलांगाना के वारंगाल में जन्म लेने वाले वरवर राव कवि के तौर पर जाने जाते रहे हैं। हैदराबाद के ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट राव ने अपना करियर प्राध्यापक के तौर पर शुरू किया था। मार्क्सवादी विचारधारा को मानने वाले राव ने अपनी रचनाओं और कविताओं में जनसरोकारों की वकालत शुरू की। वे पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में व्यापक तौर पर लिखने लगे।
वर्ष 1967 में वरवर राव का राजनीतिक झुकाव बंगाल में शुरू हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन की ओर हुआ। इस दौरान आंध्रप्रदेश की राजनीति भी गरमाई हुई थी। यही वक़्त था जब श्रीकाकुलम के किसानों के हथियारबंद संघर्ष के बाद तेलांगना की मांग उठने लगी थी। इस दौरान वरवर राव ने क्रांतिकारी कवियों का एक संगठन बनाया। वे पूरे आंध्रप्रदेश का दौरा करते रहे, किसानों से मिलते रहे और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करते रहे।
वरवर राव अब तक कई बार गिरफ़्तार हो चुके हैं। वर्ष 1973 में आंध्र प्रदेश सरकार ने वरवर राव को मीसा कानून के तहत गिरफ़्तार किया था। वरवर राव पर आरोप था कि वे अपने लेखन के ज़रिए लोगों को हिंसा के लिए उकसा रहे थे। 1975 के आपातकाल में कांग्रेस सरकार ने उन्हें दूसरी बार गिरफ़्तार किया गया था। उनकी रिहाई 1977 में हुई थी जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई थी।
2005 में सरकार और माओवादियों के बीच शान्ति वार्ता करवाने के लिए राव ने पीपल्स वॉर ग्रुप के दूत की भूमिका निभाई थी। चूंकि यह वार्ता सफल नहीं हो पाई थी,, इसलिए वरवर राव को तत्कालीन सरकार ने जन सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ़्तार कर लिया था।हली बार 1973 में गिरफ़्तार किए जाने से लेकर 2018 की गिरफ्तारी तक वरवर राव को कई बार जेल जाना पड़ा है। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों की सरकारों ने राव पर हमेशा कड़ी नज़र रखी है। दक्षिणपंथियों ने उन्हें कई बार अर्बन नक्सल कहकर भी संबोधित किया है।