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पत्रकार शशिकांत वारिशे को कुचलने वाला भूमाफिया पंढरीनाथ अंबेरकर पोस्टरों पर अपने साथ क्यों लगाता है प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की तस्वीरें ?

Janjwar Desk
12 Feb 2023 12:20 PM GMT
पत्रकार शशिकांत वारिशे को कुचलने वाला भूमाफिया पंढरीनाथ अंबेरकर पोस्टरों पर अपने साथ क्यों लगाता है प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की तस्वीरें ?
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निष्पक्ष और जुझारू पत्रकार शशिकांत वारिशे की हत्या ने कई सवाल खड़े किये हैं

Journalist Shashikant Warishe murder case : सत्ता की चाटुकारिता करते हुए मेनस्ट्रीम मीडिया इस स्थिति में पहुँच गया है जहां एक जुझारू पत्रकार की हत्या कोई समाचार नहीं बनता है। शशिकात वारिशे की हत्या के समाचार कम ही समाचारपत्रों में प्रकाशित किये गए थे....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Journalist Shashikant Warishe murder case : महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के राजापुर में 6 फरवरी को मराठी भाषा के समाचार पत्र महानगरी टाइम्स के क्षेत्रीय प्रमुख संवाददाता शशिकांत वारिशे की एसयूवी थार से कुचलकर ह्त्या कर दी गयी। एसयूवी को चलाने वाले एक दबंग भूमाफिया और स्थानीय प्रस्तावित रिफाइनरी के समर्थक पंढरीनाथ अम्बेरकर थे, जिनके विरुद्ध शशिकांत वारिशे लगातार रिपोर्टिंग कर रहे थे, और 6 फरवरी को भी महानगरी टाइम्स के मुखपृष्ठ पर पहली खबर उनके कारनामों से ही सम्बंधित थी।

पंढरीनाथ अम्बेरकर का पहले से ही आपराधिक इतिहास रहा है, और पहले भी पुलिस में उनके विरुद्ध शिकायतें दर्ज की गयी हैं। शशिकांत वारिशे द्वारा 6 फरवरी को लिखी गयी खबर में लेखक का नाम नहीं दिया गया था, पर पंढरीनाथ अम्बेरकर ने खबर के तीखे सवालों से समझ लिया था कि इसे किसने लिखा है। इस खबर में पूछा गया था कि एक आपराधिक प्रवृत्ति वाले भूमाफिया और प्रस्तावित रिफाइनरी के समर्थक पंढरीनाथ अम्बेरकर पोस्टरों पर अपने साथ प्रधानमंत्री, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की तस्वीर क्यों लगा रहे हैं?

जैसा कि हरेक ऐसे मामले में होता है, पुलिस मामले को रफा दफा करने का प्रयास करती है और संगीन जुर्म को भी हल्का बना देती है। इस मामले में भी स्थानीय पुलिस ने अपने चरित्र के अनुसार ही काम किया था। 6 फरवरी को दोपहर एक बजे शशिकांत वारिशे राजापुर में अपने दुपहिया वाहन में पेट्रोल भरा कर जैसे ही पेट्रोल पंप से बाहर निकले पंढरीनाथ अम्बेरकर ने एक एसयूवी से उन्हें कुचल दिया और दूर तक सड़क पर घसीटते रहे।

उन्हें एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया, पर अगले दिन उनकी मृत्यु हो गयी। पहले पुलिस ने मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किया, पर स्थानीय जनता और पत्रकारों के बढ़ते दबाव के बाद पुलिस ने पंढरीनाथ अम्बेरकर को गिरफ्तार कर लिया, पर हत्या का आरोप नहीं लगाया। इसके बाद फिर से पत्रकारों के रोष के बाद अब पंढरीनाथ अम्बेरकर पर हत्या की धारा भी मढी गयी है।

इसके बाद इस मामले ने राजनीतिक रंग पकड़ लिया। विपक्षी नेता अजित पवार ने तीखे शब्दों में इसकी आलोचना की है और इसे राज्य सरकार की मिलीभगत करार दिया है। दूसरी तरफ शिव सेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने कहा है कि प्रस्तावित रिफाइनरी की जगह पर हाल में ही जमीन खरीदने वालों की लिस्ट उजागर करेंगे। उनका आरोप है कि इस जगह पर सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों ने जमीन हाल में ही खरीदी है। और इस काम में पंढरीनाथ अम्बेरकर ने मदद की है। तमाम आरोपों और विरोधों के बाद अब महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री और गृहमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन की घोषणा की है।

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स और रिपोर्टर्स विथआउट बॉर्डर्स ने भी इस इस घटना की तीखी आलोचना की है और केंद्र के साथ ही राज्य सरकार से मांग की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को तुरंत सजा दी जाए, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाये जाएँ।

एक निष्पक्ष और जुझारू पत्रकार की हत्या ने कई सवाल खड़े किये हैं। हमारे देश में निष्पक्ष पत्रकारिता एक विलुप्त होता पेशा है, और जो पत्रकार ऐसा काम कर रहे हैं बस वही देश में पत्रकारिता कर भी रहे हैं। मेनस्ट्रीम टीवी समाचार चैनल और अधिकतर प्रिंट मीडिया तो पत्रकारिता के नाम पर मसखरी कर रही है, दिनभर ऐसे समाचार चलते हैं जिनसे जनता को कोई मतलब नहीं।

सत्ता की चाटुकारिता करते हुए मेनस्ट्रीम मीडिया इस स्थिति में पहुँच गया है जहां एक जुझारू पत्रकार की हत्या कोई समाचार नहीं बनता है। शशिकात वारिशे की हत्या के समाचार कम ही समाचारपत्रों में प्रकाशित किये गए थे, पर एसआईटी के गठन की सूचना के बाद अधिक समाचारपत्रों में यह खबर प्रकाशित की गयी।

दूसरा मुद्दा है कि स्थानीय जनता के पर्यावरण और भू-अधिग्रहण की समस्याओं को हल किये बिना क्यों कोई उद्योग स्थापित किया जाता है? इस रिफाइनरी का विरोध लम्बे समय से स्थानीय आबादी कर रही है, और इसके बाद पर्यावरण पर प्रभावों पर चर्चा भी कर रही है। दूसरी तरफ सत्ता स्थानीय लोगों से सीधा बातचीत करने के बदले भू-माफियाओं के द्वारा भू-अधिग्रहण के राह पर चल पड़ती है।

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