ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : 2 गांवों में अप्रैल से 10 जून तक 75 मौतें, सरकारी आंकड़ों में कोरोना से सिर्फ 3

Janjwar Desk
13 Jun 2021 3:35 AM GMT
Ground Report : 2 गांवों में अप्रैल से 10 जून तक 75 मौतें, सरकारी आंकड़ों में कोरोना से सिर्फ 3
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कोरोना लक्षणों में जान गंवाने वाले इन लोगों का नाम कहीं नहीं दर्ज है कोविड मौतों में

सवाल उठने लगे हैं कि अगर सरकारी दस्तावेज अधिकांश परिवारों के सदस्यों के कोरोना से मौत नहीं मानते तो इन्हें सहारा कौन देगा, किसी के बच्चे अनाथ हो गए तो कई मांगें सूनी हो गईं, किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी की एकमात्र कमाऊ सदस्य के मौत हो जाने से विपत्ति का पहाड़ ही टूट पड़ा...

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। कोरोना वायरस की दूसरी लहर कम पड़ने के साथ एक बार फिर सबकुछ भले ही सामान्य होने लगे हैं, पर तबाही, अपनों को खोने के गम के चलते उभरे दर्द न कम हुए हैं और न ही सिस्टम की दरिंदगी के चलते वे घाव भरे हैं। हालात यह हैं कि कोरोना से हुईं अधिकांश तबाही को सरकारें मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में इन परिवारों के लिए अपनों को खोने का जहां दुख है, उससे कहीं कम सरकार के भरोसा न जताने को लेकर भी है।

कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के साथ तेजी से मौत की बढ़ती संख्या ने लोगों को बेचैन कर दिया। अप्रैल के दूसरे पखवारे से लेकर माह का अंत आने तक न जाने कितनी जाने चली गई, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। सरकारें मौत के आंकड़ों को छुपाने में लगी रही। उधर गांव, कस्बे से लेकर शहर की हर गलियों में मौत के बाद घर के लोगों की सुनाई पड़ रही चीत्कारें सरकार के झूठ से पर्दा उठाती रही। सबसे खराब तस्वीर तो उस समय उभर कर आई जब देखते देखते गंगा में लाशों के ढेर नजर आने लगे। इसके बाद भी नमामि गंगे की बात करने वालों के आंखों में पानी नहीं आई। ऐसे हालात ने अधिकांश प्रभावित परिवारों का सरकार से भरोसा सा उठ गया।

लोगों के तरफ़ से अब सवाल उठने लगे हैं कि अगर सरकारी दस्तावेज अधिकांश परिवारों के सदस्यों के कोरोना से मौत नहीं मानती है, तो इन्हें सहारा कौन देगा। किसी के बच्चे अनाथ हो गए तो कई मांगें सूनी हो गईं। किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी की एकमात्र कमाऊ सदस्य के मौत हो जाने से विपत्ति का पहाड़ ही टूट पड़ा। ऐसे वक्त में अगर अपनी सरकार ही मुंह मोड़ ले तो फिर इन जिंदगियों का क्या होगा?

मौत और तबाही के मंजर की तो तस्वीर उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में देखने को मिली, पर बानगी के तौर पर देवरिया जिले के दो गांवों का जिक्र हम यहां कर रहे हैं। जिले के भागलपुर ब्लॉक के अड़ीला गांव में 16 दिनों के अंदर देखते देखते 23 लोगों ने दम तोड़ दिया। मृतकों के परिजनों के मुताबिक ऑक्सीजन की कमी से ये सभी मौत हुई, जबकि सरकारी आंकड़ों में मौत की संख्या मात्र 3 दर्ज हुई।

अड़ीला के प्रधान विनीत उपाध्याय के मुताबिक मई के दूसरे पखवारे के बाद से मौत का सिलसिला भले ही थम गया है, मगर लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है।

इन तबाह हुए परिवारों में भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला मंत्री चंदन मालवीय भी है। चंदन अपनी मां उर्मिला देवी के सांस लेने में तकलीफ होने पर तहसील मुख्यालय सलेमपुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ केंद्र ले गए। यहां तत्काल चिकित्सकों ने ऑक्सीजन की आवश्यकता जताई, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी समय से ऑक्सीजन का सिलेंडर उपलब्ध न होने से चंदन की मां दम तोड़ दी। अपने पीड़ा को बयां करते हुए चंदन की आंखें भर आई, उन्होंने बस इतना कहा भैया रहने दो! अम्मा को खोया है। वे पल याद आते ही बेचैन हो जाता हूं। अब कहने के लिए कुछ न रहा।

गांव के सफीक अंसारी ने 22 अप्रैल को गोरखपुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। इनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इसी दिन राम सकल उपाध्याय की पत्नी इंद्रासनी देवी भी प्राण त्याग दी। चंद्र मौली उपाध्याय की 23 अप्रैल को सदर अस्पताल देवरिया में सांसें थम गई। इनका शव कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार प्लास्टिक में सीलकर गांव भेजा गया, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में कोरोना से मौत की सूची में इनका नाम शामिल नहीं है।

नया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मदनपुर

हालांकि इनमें भी संक्रमण के सभी लक्षण थे। राम तपस्या उपाध्याय की 25 अप्रैल को और उनके भाई रामध्यान उपाध्याय की 27 अप्रैल को इलाज के अभाव में कोरोना से मौत हो गई। 25 अप्रैल को ही अनिल शर्मा की 24 वर्षीय गर्भवती पत्नी युक्ता की इलाज के दौरान गोरखपुर में मौत हो गई। 30 अप्रैल को विमला देवी सांस में परेशानी के चलते घर पर ही दम तोड़ दी।

गांव की प्रेमलता देवी को इलाज के लिए परिजनों ने सदर अस्पताल में भर्ती कराया, जहां ऑक्सीजन उपलब्ध न होने पर चिकित्सकों ने बाहर से खरीद कर लाने को कहा। परिजन किसी तरह प्रयास कर ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आए। लेकिन चालू करने पर सिलेंडर खाली निकला। जिसके चलते प्रेमलता की जान नहीं बचाई जा सकी।

गांव में मौत का कहर मई माह में भी जारी रहा। माह के पहले दिन ही 75 वर्षीय जवाहर शर्मा की गांव पर मौत हो गई। वे बवासीर का कुछ दिन पहले ऑपरेशन कराए थे तथा उन्हें खांसी की शिकायत थी। 3 मई को बृजराज उपाध्याय की पत्नी विद्यवती की व 5 मई को करिया उपाध्याय की मौत हो गई। इसके बाद 6 मई को वीरेंद्र उपाध्याय व रंग लाल प्रजापति की मौत हो गई। 7 मई को गांव के तीन लोगों ने दम तोड़ दिया, जिसमें 72 वर्षीय सफीक अंसारी, 50 वर्षीय सुखु यादव व चंद्रावती देवी का इलाज के अभाव में मौत हो गई। 8 मई को कौशल्या देवी व 11 मई को व्यास उपाध्याय ने दम तोड़ दिया।

अडीला निवासी व भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला मंत्री चंदन मालवीय के साथ उनकी मां उर्मिला देवी, जिनकी कोरोना ने जान ले ली

स्वास्थ्य विभाग के तरफ से नामित गांव की आशा कार्यकर्ता नम्रता मालवीय कहती हैं, जांच में वीरेंद्र उपाध्याय, सदीक अंसारी व विंदा देवी की कोरोना से मौत की पुष्टि हुई थी। अन्य अधिकांश लोगों का जांच नहीं कराया जा सका व कुछ लोगों की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। गांव के संतोष उपाध्याय की मुरादाबाद में इलाज के दौरान मौत हुई थी, जिनकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी। आशा कार्यकर्ता के मुताबिक ढाई सौ लोगों का टीकाकरण कराया जा चुका है। तकरीबन 500 से अधिक 45 वर्ष से उम्र के ऊपर के लोगों का वैक्सीनेशन अभी होना है।

ग्राम प्रधान विनीत उपाध्याय भी कहते हैं, अधिकांश लोगों में कोरोना से लक्षण दिख रहे थे। स्वास्थ्य टीम में गांव का दौरा कर दवाएं दीं और जांच भी की। लक्षण मिलने वाले लोगों को होम आइसोलेशन पर रखा गया। अब अभियान चलाकर टीकाकरण कराया जा रहा है। दलित और अल्पसंख्यक बस्ती में बहुत सारे परिवार पहले वैक्सीन लेने से इंकार कर रहे थे, लेकिन उन्हें समझा-बुझाकर तैयार कराया गया है।

अब बात करते हैं जिले के अल्पसंख्यक बहुल आबादी वाले गांव मदनपुर की। 30,000 आबादी वाले गांव में कोरोना के दूसरे लहर में करीबन 52 लोगों के मौत हो जाने की चर्चा रही। ग्रामीणों के मुताबिक 23 अप्रैल को इम्तियाज खां की पहली मौत हुई। इनके मौत की खबर मिलने पर छोटे भाई ममताज सऊदी अरब से गांव चले आए। परिवार को ढाढस बढ़ानेआए मुमताज खुद ही संक्रमित हो गए और उनकी मौत हो गई। इनकी मां भी चल बसी। 25 अप्रैल को इस्माइल के पुत्र इकराम खान की इलाज के दौरान गोरखपुर में मौत हो गई। इसके दूसरे दिन 26 अप्रैल को गांव के भोला खान ने भी दम तोड़ दिया और इसके 13वें दिन छोटे भाई रियाजुल्लाह भी चल बसे। इसके अलावा अली अहमद, हुसैन सेख की पत्नी अलीमुननिशा, दाईंन, डॉ एकलाख अहमद,अली अख्तर समेत 40 से अधिक लोगों की अप्रैल में मौत हुई है।

मदनपुर गांव में कोरोना से मौत का कहर मई माह के अंत तक जारी रहा। ग्राम प्रधान अली आजम शेख के मुताबिक 1 मई को पेशे से शिक्षक डॉक्टर इस्लामुद्दीन खान, 5 मई को मुस्ताक खान की पत्नी ,10 मई को नूरआलम ,12 मई को जलालुद्दीन खान की पत्नी, 14 मई को पीएसी में तैनात मुन्ना खान की पत्नी ,15 मई को हातिम दर्जी की पत्नी, 17 मई को कादिर की पत्नी, 18 मई को जावेद शेख की लड़की व तबारख खान की लड़की, 20 मई को बबन खान की पत्नी वह 25 मई को उनकी मां की मौत हो गई। इन सभी में कोरोना के लक्षण देखने को मिले। हालांकि इसके बाद गांव में कोई मौत की सूचना नहीं आयी।

गांव के राजू खान कहते हैं, मेरे पिता भोला खान की अचानक तबीयत बिगड़ी और अस्पताल ले जाने पर भी बचाया नहीं जा सका। इसके बाद छोटे अब्बा का भी मौत हो गया। हिदायतुल्ला खान कहते हैं मेरी मां वह दो भाभी की करोना ने जान ले ली। तनवीर अहमद ने कहा कि मेरी पत्नी साफिया खातून की मौत कोरोना से हो गई। उनमें कोरोना के सभी लक्षण थे।

इतनी बड़ी संख्या में मौत को आखिर कैसे झूठलाया जा सकता है। प्रभावित परिवार के सदस्यों के मुताबिक अधिकांश में बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत रही। इतने कम अंतराल में कोरोना महामारी के दौर में किसी अन्य बीमारी से मौत हो जाने पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता। अन्य बीमारी से मौत की दलील देने के लिए भी स्वास्थ्य महकमा तैयार नहीं है। एक खास बात गौर करने वाली यह है कि रुद्रपुर तहसील क्षेत्र के मदनपुर में 52 से अधिक मौत की बात ग्रामीण करते हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कोई भी मौत कोरोना के चलते नहीं हुई है।

तहसील क्षेत्र में 200 से अधिक लोगों की संक्रमण के मौत हुई है, जबकि विभाग ने तहसील क्षेत्र में कुल ग्यारह लोगों के संक्रमण से मौत की पुष्टि की है। इसको लेकर प्रभावित परिवारों में नाराजगी भी है।

ग्राम प्रधान अली आजम शेख ने बताया कि महामारी शुरू होने के काशी दिन बाद गांव में स्वास्थ्य टीम आई थी। जांच के साथ गांव में सेनेटाइजर का छिड़काव कराया गया। अब अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीनेशन कराने का प्रयास किया जा रहा है।

एसडीएम रुद्रपुर संजीव कुमार उपाध्याय की मानें तो, बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी। इनमें से कुछ में कोरोना की पुष्टि भी हुई थी, लेकिन मौत कुछ उम्र व बीमारी के चलते हुई। सूचना मिलने पर गांव को सैनिटाइज कराया गया था। अब अभियान चलाकर टीकाकरण कराया जा रहा है। जनता इंटर कॉलेज गोला व नया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर वैक्सीनेशन का इंतजाम किया गया है।

अब सवाल उठता है कि सरकार मृतकों के परिजनों को तमाम मदद देने की भले ही घोषणा कर रही है, पर जब इनका नाम सरकारी अभिलेखों में नाम ही नहीं रहेगा तो लाभ कैसे मिलेगा। गांव के ही अजय उपाध्याय कहते हैं, 'स्वास्थ्य विभाग ने भी इस बार माना है कि अधिकांश लोगों में एंटी जन व आरटीपीसीआर जांच में भी कोरोना की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन सिटीस्कन में कोरोना संक्रमण पाया गया। गांव में जांच के अभाव में अधिकांश लोगों के मौत के कारणों की पुष्टि नहीं हो सकी। हालांकि इनमें कोरोना के सभी लक्षण थे। जांच की व्यवस्था सरकार और प्रशासन की थी, जिसे समय से कराने में नाकाम रही। ऐसे में तबाह हुए परिवारों को मुआवजे की धनराशि से वंचित करना कहां तक उचित है।

अडीला के ग्राम प्रधान बिनीत उपाध्याय व आशा नम्रता मालवीय गांव के लोगों को वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित करते हुए, अब थम गया है गांव में मौतों का सिलसिला

सरकारों ने प्रभावित परिवारों को दिया है मदद का भरोसा

केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में ऐलान किया गया था कि जो बच्चे अनाथ हुए हैं, उनकी पढ़ाई का खर्च सरकार उठाएगी। 18 साल का होने पर छात्रवृत्ति और 23 साल का होने पर 10 लाख का फंड दिया जाएगा। हर बच्चे को केंद्र की ओर से आयुष्मान भारत का कवर दिया जाएगा। केंद्र के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड समेत कई राज्य सरकारों की ओर से बच्चों की पढ़ाई, अभिभावक को हर महीने आर्थिक मदद और अन्य तरह की मदद देने का ऐलान किया गया है, जिसमें पीड़ित परिवार को चालीस लाख रुपए की मदद की भी बात शामिल है।

नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने कहा 30 हज़ार बच्चे प्रभावित

वहीं नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि कोरोना संकट के बीच लाखों लोगों की देश में मौत हुई है। इस बीच सबसे बड़ा संकट बच्चों पर आया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए ताज़ा हलफनामे के मुताबिक, देश में करीब 30 हज़ार बच्चे कोरोना काल के बीच प्रभावित हुए हैं। इन 30 हज़ार बच्चों में से किसी ने अपने मां-बाप को खोया है, किसी को छोड़ दिया गया है या फिर किसी के एक अभिभावक का निधन हुआ है।

एनसीपीसीआर ने जब पिछली बार सुप्रीम कोर्ट में आंकड़ा बताया गया था, तब ये 9300 था, लेकिन अब ताजा आंकड़ा 30 हज़ार को पार कर गया है। ये संख्या अप्रैल 2020 से लेकर अभी तक की है। आंकड़ों के मुताबिक, करीब 3621 बच्चे अनाथ हुए हैं, 26176 ने अपने किसी एक अभिभावक को खोया है और 274 बच्चे ऐसे हैं जिन्हें छोड़ दिया गया है। कुल बच्चों की संख्या 30,071 है। जिसमें 15620 लड़के, 14447 लड़की और 4 ट्रांसजेंडर हैं। एक आंकड़े के मुताबिक सबसे ज्यादा 2,110 बच्चे उत्तर प्रदेश में अनाथ हुए हैं।

(नोट : य​ह रिपोर्ट अडीला और मदनपुर गांवों के प्रधानों और आशा कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद तैयार ​की गयी है और इसी आधार पर मौतों का आंकड़ा भी दिया गया है।)

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