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ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : चन्दौली में गरीबों की जान ले रहे आदमखोर मगरमच्छ, सरकार ने कहा- हमारे पास पकड़ने के लिए पोकलेन नहीं

Janjwar Desk
13 May 2022 9:51 AM GMT
Ground Report : अपने छप्परनुमा मकान के बाहर टूटी तख़्त पर बैठ पीड़ित पखंडु। बाएं खड़ी उनकी पत्नी सरिता और बच्चे
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Ground Report : अपने छप्परनुमा मकान के बाहर टूटी तख़्त पर बैठ पीड़ित पखंडु। बाएं खड़ी उनकी पत्नी सरिता और बच्चे

Ground Report : विजयपुरवा बस्ती में स्कूल से लौटे महज सात साल के बालक को मगरमच्छ बेरहमी से चबा गया। इससे बालक की दर्दनाक मौत हो गई। इस घटना का मंजर देख ग्रामीणों का दिल दहल गया और स्थानीय प्रशासन को ग्रामीणों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.....

उपेंद्र प्रताप की रिपोर्ट

Ground Report : उमस भरी गर्मी से पूरा बदन भीगा जा रहा था। छप्परनुमा मकान से महज दस कदम की दूरी और कमोबेश इतनी ढाल पर चन्द्रप्रभा नदी के जल को सूरज की तीखी किरणें भाप बनाकर अपने साथ उड़ा ले जा रही थीं। आधा किमी से अधिक एरिया में एक हजार से अधिक आबादी चन्द्रप्रभा नदी (Chandraprabha River) के किनारे से सटकर रहती है। आज कल भले ही भारत के छोटे-बड़े महानगर स्मार्ट सुविधाओं से लैस होकर इतरा रहे हों, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चालीस और चन्दौली (Chandauli News) जिला मुख्यालय से महज पचास किलोमीटर दूर स्थित चकिया ब्लॉक के विजयपुरवा गांव (Vijaypurva Village) में आज भी साफ पानी, आवास, शौचालय और अन्य मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं।

विजयपुरवा के ग्रामीणों को नहाने, बर्तन धोने, कपड़े धोने, मवेशियों को पानी पिलाने और शौच आदि के लिए दिन में कई बार चंद्रप्रभा के तट पर हाजिरी लगानी पड़ती है। 6 मई 2022 दिन शुक्रवार को हुए हादसे के एक मंजर को देख तंगी और सरकारी सुविधाओं की फांकापरस्ती में दिन गुजार रहे विजयपुरवा की आंखें फटी रह गई और कलेजा दहल गया। पिछले साल एक महिला को चबा जाने वाला आदमखोर मगरमच्छ (Crocodile Attack in Chandauli) 'भुंवरका' स्कूल से लौटे सात साल के चंदन को सैकड़ों गांववालों के सामने चबाकर मार डाला।

(मृतक सात वर्षीय चंदन विश्वकर्मा)

गांव वाले लाठी-डंडे लिए मगरमच्छ (Crocodile) से बच्चे को छुड़ाने के लिए हो-हल्ला और चित्कार करते रहे, लेकिन मगरमच्छ के जबड़े में जकड़े बालक को जिन्दा नहीं बचा सके। यह बात दीगर है कि सरकारी फाइलों में गांव अब शहरों और इनके कस्बों से टक्कर लेने लगे हैं। जबकि जमीनी हकीकत इससे जुदा है। ईंट की 10 फीट के चार दीवारों पर ताड़ के पत्ते डालकर दिन में झुगीनुमा घर में पाखंडु विश्वकर्मा का कुनबा रहता है। इस छप्पर के घर में बिजली तो नहीं पहुंच सकी है लेकिन उजाला पर्याप्त है, क्योंकि छप्पर (छान ) में से कहीं-कहीं सूरज की रोशनी जमीन पर ताक रही थी।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लगे चंदौली जनपद (Chandauli News) के चकिया तहसील के विजयपुरवा-सिकंदरपुर समेत दर्जनों गांवों के नागरिक नदी किनारे जाने से कतराने लगे हैं। चन्द्रप्रभा नदी के तट पर बसे विजयपुरवा-सिकंदरपुर गांव (Sikandarpur Village) में आदमखोर हो चुके मगरमच्छ (Crocodile) ने सालभर के भीतर ही दो लोगों को चबाकर मार डाला है। हाल की घटना गत 6 मई दिन शुक्रवार की है। यहां विजयपुरवा बस्ती में स्कूल से लौटे महज सात साल के बालक को मगरमच्छ बेरहमी से चबा गया। इससे बालक की दर्दनाक मौत हो गई।

इस घटना का मंजर देख ग्रामीणों का दिल दहल गया और स्थानीय प्रशासन को ग्रामीणों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों को डर इस बात का है कि कहीं घात लगाए मगरमच्छ का अगला निवाला वे न बन जाएं ? हाल के पांच सालों में प्रत्येक वर्ष मगरमच्छ के हमलों में दो से तीन लोगों की जानें जा रही हैं, जबकि यह इलाका प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से महज 40 किमी ही दूर स्थित है।

अपने जिगर के टुकड़े खोने के गम में डूबी सरिता कहती हैं कि 'बच्चे स्कूल से पढ़कर आए और नहाने के लिए नदी में उतर गए। मैं घर में नहा रही थी। दोपहर में अमूमन नदी में बहुत काम लोगों का जाना होता है। मुझे इस बात का भान और अनहोनी का अंदाजा भी था। यह सोच मैं बच्चों को रोकने के लिए जल्दी-जल्दी कपड़े बदलने लगीं। आधा-अधूरी साड़ी लपेटी ही थी कि शोर मचने लगा। देखते ही देखते सैकड़ों लोग नदी किनारे इकठ्ठा हो गए। मैं चंदन ... चंदन चिल्लाते-चिल्लाते बेहोश हो गई।'

चन्द्रप्रभा नदी के खोह में हैं मगरमच्छ

नौगढ़ और चकिया के पहाड़ों से उतरती चन्द्रप्रभा (Chandraprabha River In Chandauli) ने अपने वेग से पत्थरों को काटकर खोह (दह) बना दिया है। नदी में यह खोह (दह) नौगढ़ से लेकर बबुरी तक मिलते हैं। इसमें सिकंदरपुर-विजयपुरवा गांव में नदी के दोहरे घुमाव के चलते दह अधिक हैं। लिहाजा, दो दशकों से अधिक समय से यहां बांधों से उतरे हुआ मगरमच्छों ने कॉलोनी बना ली है। जानकारों के मुताबिक़ इन दिनों इनका कुनबा 25 में अधिक मगरमच्छों का हो चला है, जो अपनी भूख मिटाने के लिए नीलगाय, गाय-भैंस, बकरी, बत्तक के अलावा ग्रामीणों का शिकार करते हैं।

कुछ ग्रामीण मगरमच्छों के हमले में बच जाते हैं तो वहीं कितनों की जीवन लीला ही समाप्त हो जाती है। हाल के पांच सालों में दो से तीन लोगों को मगरमच्छ अपना निवाला बना रहे हैं। मगरमच्छों के हमले (Crocodile Attack) और इनके मानव बस्तियों तक आने से रोकने के लिए स्थानीय शासन- प्रशासन द्वारा मुकम्मल इंतजामात नहीं किए गए हैं। इसके चलते चन्द्रप्रभा नदी के किनारे बसे हजारों-लाखों ग्रामीणों में रंज और गुस्सा है।

चकिया ब्लॉक में मगरमच्छ से होने वाली मौतें

वर्ष मौत की संख्या

2022 01

2021 03

2020 02

2019 01

2018 02

नोट : मगरमच्छ के हमलों से मवेशी, बत्तक और सुअरों की मौत की संख्या बेहिसाब है।

आदमखोर मगरमच्छ के ग्रामीण सबसे आसान शिकार

सिकंदरपुर-विजयपुरवा गांव में पखंडु विश्वकर्मा के तीन लड़के (इसमें में दो जुड़वा हैं ) अपने घर से महज दस कदम दूर स्कूल से आने के बाद चन्द्रप्रभा नदी में नहा रहे थे। पास में ही घाट पर बिछे पत्थर में पड़ोस के युवती राबिया कपड़े धो रही थीं। दोपहर के एक बज रहे होंगे, तभी नदी में घात लगाए 12 फीट का आदमखोर मगरमच्छ 'भुंवरका' चंदन विश्वकर्मा (7 वर्ष) को लेकर नदी की गहराई में बैठ गया। नदी में नहा रहे उसके भाइयों को जब एहसास हुआ कि चंदन अभी नहा रहा था, वो कहां चला गया। तभी थोड़ी ही दूर पर नदी में पानी से लगातार बुलबुले निकल रहे थे। इस दृश्य के एक-दो मिनट बाद लड़के को डुबाकर मरने के बाद एक बड़ा सा मगरमच्छ नदी के जल में लगे जलकुम्भी और जंगली घासों की तरफ तेजी से लेकर जाने लगा। यह कोई और नहीं 'भुंवरका' था, जिसने पिछले साल एक और ग्रामीण का धोखे से शिकार किया था। जिस चन्दन को चंद मिनटों पहले नहाते देखने वाली मुहम्मदीन की बेटी राबिया यह देख उसका दिल दहल गया।

(विजयपुरवां में पखंडु के मकान से सटे बहने वाली चन्द्रप्रभा नदी, इसी घाट से नहाने के दौरान बालक को मगरमच्छ पानी में खींच ले गया)

घटना की चश्मदीद राबिया ने 'जनज्वार' को बताया कि वह मगरमच्छ के जबड़े जकड़ा में हुआ था। पानी में सिर्फ दो ही चीजें दिख रही थीं। पहला उसका सिर और दूसरा मगरमच्छ के जबड़े में फंसा उसका शरीर। यह देख मेरा खून पानी हो गया और मैं डर के मारे चीखने-चिल्लाने लगीं। बाकी दो बच्चों को खींचकर नदी से ऊपर आबादी में चली आई। कुछ ही मिनटों में आपपास के पचासों लोग इकठ्ठा हो गए। मैंने नहीं सोचा था कि जिंदगी में कभी मेरी आंखों के सामने ऐसी डरावनी घटना घट जाएगी।'

पांच घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद मिला शव

आदमखोर हो चुके मगरमच्छ और घटना के बारे में समाजसेवी डॉक्टर संतोष विश्वकर्मा ने बताते हैं कि 'चूंकी नदी के बैंक पर ही विजयपुरवा गांव बसा है। इसे देखते ही देखते सैकड़ों लोग इकठ्ठा हो गए और मगरमच्छ के मुंह से बच्चे को छुड़ाने के लिए लाठी-डंडे लिए नदी में उतर गए। प्रशासन के सहयोग से ग्रामीणों व गोताखोरं ने लगातार पांच घंटे अभियान चलाया, तब जाकर बालक के शव को नदी में उगी झाड़ियों से बरामद कर सके।'

'शव बरामद होते ही ग्रामीण आग बबूला हो गए और चकिया - सिकंदरपुर सड़क जाम कर आबादी के पास चन्द्रप्रभा नदी में बाउंड्री वाल बनाने और मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता देने की मांग करने लगे। मामले को तूल पकड़ता देख चकिया उपजिलाधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा, तहसीलदार, वन अधिकारी, थाना इंस्पेकटर, जिला पंचायत सदस्य, प्रधान और लेखपाल ने मौके पर पहुंचकर आक्रोशित ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया। प्रशासन द्वारा नदी की सफाई और आदमखोर मगरमच्छ को पकड़कर ऊंचे बांध में छोड़ने की बात पर ग्रामीण राजी हुए। प्रशासन के प्रयास से वन विभाग ने पीड़ित को पांच लाख रूपए का मुआवजा देने की बात कहीं है।'

लोगों की मौत को वन विभाग और प्रशासन नहीं लेता गंभीरता से

संतोष आगे कहते हैं कि 'मुआवजा मगरमच्छ के हमले का स्थाई समाधान नहीं है। प्रशासन जनता को धोखा दे रही है। मगरमच्छ आसपास के 10 किमी. के चन्द्रप्रभा नदी एरिया को अपना निवास बना चुके हैं और विचरण करते रहते हैं। इनके हमलों से कई मछुआरे भी घायल हुए हैं। मवेशी और नीलगाय के शिकार होने के आंकड़ों को छोड़ ही दीजिये। आसपास बड़ी तादाद में ग्रामीण बत्तक, बकरी और सुअर पालते हैं। यह इनकी आजीविका का प्रमुख साधन है।'

'एक- दो दिन को छोड़ दें तो रोजाना आसपास के गांवों से खबरें आती है कि इनकी बकरी को मगरमच्छ खा गया, फलाने घायल हो गए। सुअर और बत्तकों को गुस्साए मगरमच्छ लगातार निवाला बना रहे हैं। शेरपुर और सिकंदर में चन्द्रप्रभा नदी में पानी पीने उतरे नीलगायों के खेमे भी इनके आसान शिकार है। वन विभाग और इन मामलों से जुड़े अधिकारियों को ऐसी जानलेवा घटनाओं की पूरी खबर रहती है। लेकिन वे ग्रामीणों के जीवन को बचाने के बजाए जंगली जानवरों के हमलों से मारे जा रहे निर्दोष ग्रामीणों की मौत की संख्या सरकारी फाइल में दर्ज करने भर की कार्रवाई करते हैं। आम लोगों की मगरमच्छ और जंगली जानवरों से सुरक्षा का कोई प्रयास इनके द्वारा नहीं दिखता है।'

खतरे के साये में खेती-किसानी

विजयपुरवा से महज दो किमी की दूरी पर चंद्रप्रभा नदी किनारे स्थित शेरपुर गांव के मनोज सिंह मौर्य बताते हैं कि 'अभी कुछ ही महीने पहले सुबह उठकर खेत में फसलों का निरीक्षण करने नदी किनारे स्थित अपने खेत के पास पहुंचा तो खेत की मेड़ पर पसरे मगरमच्छ को देख मैं घबरा गया। फिर आसपास के लोगों को बुलाया। हो-हल्ला करने पर मगरमच्छ नदी में उतर गया। इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। बहुत लोगों के खेत नदी किनारे स्थित हैं, जिनमें मगरमच्छों के डेरा है। पहले भी ये नदी में रहते थे, लेकिन इतने खूंखार नहीं होते थे। अब तो छह महीने भी नहीं बीतते कि कुछ न कुछ हादसे भी हो जाते हैं. प्रशासन और वन विभाग को चाहिए कि वे जिन मगरमच्छों के मुंह में खून लगा गया है। उन्हें पकड़वाकर इलाके के बड़े बांधों में छुड़वा दे. जिन नदी घाटों पर ग्रामीणों का आना-जाना लगा रहता है। वहां लाइट लगाने और पक्के घाट निर्माण का विचार प्रशासन को करना चाहिए।'

मगरमच्छ को बांध में छोड़ने की मांग

विजयपुरवा की ग्राम प्रधान रानी बेगम के पति पतालु ने बताया कि हमारे गांव में मगरमच्छ के हमले से अब तक की छठवीं मौत है। बच्चे नहा रहे थे। मगरमच्छ आया और पकड़कर ले गया। इसके पहले साल 2017 में जित्तू साहनी को ले जाकर मार डाला था। कुछ ही महीने पहले नदी किनारे अमरूद की बाग की रखवाली करने वाली महिला को मगरमच्छ खा गया था। ये मगरमच्छ बाढ़ और बारिश में मुजफ्फरपुर बंधी से उतरकर नदी में आ गए हैं।

'अब उनकी संख्या 30 से अधिक हो चली है। मगरमच्छ, इंसानों के अलावा मवेशियों को भी शिकार बना रहे हैं। घटना के बाद एसडीएम ने नदी की सफाई और आदमखोर मगरमच्छ को पकड़कर बंधी में छोड़वाने का आश्वासन दिया है। हमारे प्रधानी के कोटे में उतना बजट आता नहीं कि मैं सुरक्षा की कोई व्यवस्था कर सके. फिलहाल, घटना से लोगों में नाराजगी है।'

जिला पंचायत सदस्य बृजेश सोनकर ने कहते हैं कि हमारे इलाके से चन्द्रप्रभा नदी गुजरती है। कई गांवों के पास इस नदी में मगरमच्छ पाए जाते हैं। ऐसी जानलेवा मामलों से पूरे क्षेत्र में रोष है। हम लोगों ने भी इन समस्या के निराकरण के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष से मांग की है।

कहां से आते हैं मगरमच्छा

चकिया-नौगढ़ में एक दर्जन से अधिक छोटे-बड़े बांध हैं। इनमें मूसाखाड़ बांध, मॉन्टेनरी डैम, कौवा-खोंच, लतीफशाह और मुजफ्फरपुर बांध प्रमुख हैं। बाढ़ के समय में ये बांध लबालब भर जाते हैं और पानी छलकने लगता है। आषाढ़ में लगातार हो रही और बांध में चेतावनी बिंदू से अधिक पानी होने से यह पानी बांध के फाटकों को खोलकर पानी निकाला जाता है। इस दौरान पानी डिस्चार्ज के समय फाटक की जद और पानी की धारा में आने से कुछ मगरमच्छ नदी में आ जाते हैं। इनका फिर वापस बांध में लौटना नहीं हो पाता है। इससे ये नदी में यहां से वहां तक विचरण करते रहते हैं। भूख बढ़ने और हैचिंग पीरियड शुरू होने पर मगरमच्छ हमलावर हो जाते हैं। बांधों में 300-400 की आबादी वाला बड़ा कुनबा रहता है।

हादसे के बाद भी आधी नींद में वन विभाग

चन्दन की मौत के बाद सो कॉल्ड हरकत में आए वन विभाग ने सिकंदरपुर-विजयपुरवा से गुजरने वाली चन्द्रप्रभा नदी के पुल पर नदी में मगरमच्छ होने का चेतावनी बोर्ड लगाया है। इस पर जानकारी दी गई है। नदी में मगरमच्छ रहते हैं। लिहाजा, नदी के किनारे मवेशी को ले जाने और खुद जाने से बचें। मगरमच्छ द्वारा नुकसान पहुंचाने वाली घटना या अंदेशा होने पर फोन कर वन अधिकारी को सूचित करें। वो अलग बात है कि इसी बोर्ड में लिखे मोबाइल नंबर पर फोन कर चन्दन के मौत मामले में वन अधिकारी का पक्ष जानने की कोशिश की गई तो फोन नहीं उठा। इससे वन विभाग के सक्रियता और दायित्यों के प्रति गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

(विजयपुरवा और सिंकदरपुर में बहने वाली चन्द्रप्रभा नदी में मगरमच्छ के खतरों से अगाह करते वन विभाग का चेतावनी बोर्ड को दिखाते स्थानीय मनोज सिंह मौर्य)

उपजिलाधिकारी निभाएंगे अपना वादा ?

अपनी कार्यशैली से उत्तर प्रदेश में चर्चा में आये उपजिलाधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा (SDM Prem Prakash Meena) ने इस घटना को चुनौती के रूप में लिया है। मगरमच्छ के हमले से चन्दन की मौत होने के बाद आक्रोशित ग्रामीणों के आगे किसी भी अधिकारी नहीं चल रही थी और अंधेरा गहराने के साथ विरोध और आक्रोश बढ़ता जा रहा था। सड़क पर उतरे हजारों ग्रामीणों ने नदी मगरमच्छ को पकड़कर बांध में छुड़वाने, पीड़ित को आर्थिक मुआवजा और विशेष घाटों पर रोशनी के प्रबंध की मांग की। उपजिलाधिकारी ने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि उनकी मांग पूरी की जाएगी। तब जाकर ग्रामीण शांत हुए।

पोकलेन मशीन का इंतज़ार ...

घटना के सम्बन्ध में चकिया उपजिलाधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा ने 'जनज्वार' को बताया कि 'पहले भी यहां जानलेवा घटनाएं हो चुकी हैं। इस इलाके में काफी मगरमच्छ हैं। यहां की नदियों में पानी कम और कई मगरमच्छ हैं। ग्रामीणों को बताया जाता रहा है कि इस नदी में मगरमच्छ, सांप और जंगली लाल चींटियां हैं। हाल की घटना के बाद नदी की सफाई के बाद मगरमच्छ को पकड़कर बांध में छोड़ा जाने की रणनीति बनाई गई। पानी कम होने की वजह से मोटरबोट, सफाईकर्मी और जाल की व्यवस्था की गई थी लेकिन पानी कम होने से सफाई टीम पर मगरमच्छ के हमले की आशंका को देखते हुए यह प्लान फेल हो गया है। दूसरी योजना यह है कि पोकलेन मशीन मांगकर नदी की सफाई कराई जाएगी। इसके लिए विभागीय स्तर से प्रयास जारी है। पोकलेन मशीन मिलते ही नदी की सफाई के बाद आदमखोर मगरमच्छ को पकड़वाकर बांध में छोड़ा जाएगा।'

(ग्रामीणों को उनकी मांग को पूरा करने का भरोसा देते उपजिलाधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा)

दर्दनाक मौत से सहम जाते हैं ग्रामीण

6 अक्टूबर, दिन बुधवार, 2021- चकिया के भीषमपुर गांव में चंद्रप्रभा नदी के किनारे घास काट रही पार्वती सोनकर (45) की बुधवार सुबह मगरमच्छ के हमले से मौत हो गई। मगरमच्छ के जबड़े में महिला का शव फंस गया। ग्रामीणों ने जाल के सहारे मगरमच्छ को बाहर खींचा और जान जोखिम में डालकर किसी तरह से उसके जबड़े से शव को बाहर निकाला। इसी तरह साल 2018 में सिकंदरपुर के राहत अली को मगरमच्छ ने अपने जबड़े में दबोचकर गायब कर दिया। एनडीआरएफ की टीम बुलानी पड़ी। कड़ी मशक्कत के बाद घटना के दूसरे दिन मृतक राहत के शव को बरामद किया जा सका। लिहाजा, मगरमच्छ के हमलों से जान गवांने वाले के दर्दनाक मंजर देख ग्रामीण सहम जाते हैं।

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