Begin typing your search above and press return to search.
ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : गांधी के गुजरात में अंधश्रद्धा में डूबे हजारों युवा, आंदोलन-संघर्ष और जनमुद्दों से नहीं कोई वास्ता

Janjwar Desk
8 Oct 2022 5:34 AM GMT
Ground Report : गुजरात में अंधविश्वास में डूबे हजारों युवा, आंदोलन-संघर्ष और जन मुद्दों से नहीं है कोई वास्ता
x

Ground Report : गुजरात में अंधविश्वास में डूबे हजारों युवा, आंदोलन-संघर्ष और जन मुद्दों से नहीं है कोई वास्ता

Ground Report : सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर माता के दर्शन करने जा रहे युवा कहते हैं, आंदोलनों में जाने के लिए समय नहीं है लेकिन यह श्रद्धा का विषय है इसलिए समय निकालना पड़ता है...

Ground Report : गुजरात में इस साल चुनाव होने वाले हैं। जल्द ही चुनाव की तारीख घोषित कर दी जाएगी। इस राज्य में पिछले 27 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में है। मोदी सरकार भी तमाम जगह उपलब्धियां गिनाते वक्त गुजरात मॉडल का जिक्र करती रहती है। सरकार का दावा होता है कि गुजरात के विकास के लिए बहुत काम किया है। इसके साथ ही युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए भी काम किया है। आगामी चुनाव में गुजरात में सभी राजनीतिक पार्टियां अपना जोर लगा रही हैं। जनता को लुभाने में तरह तरह से जुटी हुयी हैं। सभी राजनीतिक पार्टियों का वोट मांगने का जो मुद्दा होता है, वो ज्यादातर युवाओं के विकास और उनकी नौकरियों पर केंद्रित होता है, लेकिन गुजरात में चुनाव के समय अपनी मांगों और अधिकारों पर ध्यान देने से ज्यादा यहां के युवाओं के लिए अंधविश्वास जरूरी है।

अंधश्रद्धा के सागर में गोते लगा रहे युवा

गुजरात में भाजपा की सरकार को 27 साल हो चुके हैं। ऐसे में चुनाव के समय जनज्वार की चुनावी यात्रा चल रही है। गुजरात में युवाओं की क्या मांग है और वो इस चुनाव में अपने अधिकारों के लिए किस तरह से सरकार से लड़ रहे हैं, यह यह जानने के लिए जनज्वार ने युवाओं से बात की, लेकिन यहां एक अलग ही नजारा देखने को मिला। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के बजाय युवा यहां अंधश्रद्धा में डूबे हुए नजर आए।

पैदल यात्रा करते हुए माता के मंदिर जा रहे युवा

नवरात्रि के वक्त गुजरात में हजारों हजार युवा भुज क्षेत्र से होते हुए कई किलोमीटर पैदल चलते हुए आशापुरा माता के मंदिर जाते हुए नजर आये। हर साल की यह यात्रा सितंबर-अक्टूबर महीने के दिनों में होती है। हजारों-हजारों की संख्या में लड़के, युवक, युवतियां, महिलाएं और बुजुर्ग और यहां तक कि छोटे बच्चे भी पैदल यात्रा करते हुए मंदिर जाते हैं। इन श्रद्धालुओं से जनज्वार ने बात की और यह जाना कि आखिर क्यों यह पैदल यात्रा करते हुए मंदिर जाते हैं? क्या मनौती होती है और क्या इस तरह कभी इन्होंने अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाई है?

अपने परिवार के साथ पैदल यात्रा कर रही एक महिला कहती है वह माता के दर्शनों के लिए मुंबई से आई हैं। महिला के साथ एक छोटी बच्ची भी दिखाई दी। वह बच्ची भी कई किलोमीटर पैदल यात्रा करते हुए अपने परिवार के साथ चल रही है। महिला का कहना है कि उनके कोई मान्यता या मनौती नहीं है। वह केवल माता के दर्शन की इच्छा लेकर आए हैं।

500 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं पैदल

युवाओं के एक समूह ने बात करते हुए बताया कि वह द्वारका से पैदल यात्रा करते हुए आए हैं और अब तक वो 500 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर चुके हैं, यह उनका सातवां दिन है। युवाओं का कहना है कि वह कोई मन में मनौती लेकर नहीं आए हैं। उनकी देवी मां पर श्रद्धा है, इसलिए वो लोग उनके दर्शन करने आए हैं।

इन युवाओं से यह पूछने पर कि आप सब युवा हैं और देश अब अलग मोड़ पर है। देश में बहुत महंगाई और बेरोजगारी है तो इसको लेकर सरकार के खिलाफ कई आंदोलन हो रहे हैं तो अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए कभी आंदोलनों में हिस्सा लिया है? इस पर युवाओं का कहना है कि उन्होंने कभी किसी तरह के आंदोलनों में हिस्सा नहीं लिया है। युवाओं ने बताया कि इस यात्रा में सबसे ज्यादा क्षत्रिय और राजपूत जाति के लोग जाते हैं।

अंधविश्वास के लिए समय है, लेकिन आंदोलन के लिए नहीं

आशापूरा माता के दर्शन के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर आ चुके गांधीधाम से आ रहा एक युवा कहता है, उनकी यात्रा का यह सातवां साल है। वह हर साल यात्रा करते हैं। मन में कोई मनौती या इच्छा लेकर नहीं आए है। केवल श्रद्धा लेकर माता के दर्शन के लिए आए हैं। युवा कहता है वह इस तरह कभी किसी आंदोलन में नहीं गए हैं। कभी अपने अधिकारों के प्रति आवाज नहीं उठाई है। वह अभी नौकरी कर रहे हैं और उनके पास आंदोलनों में जाने के लिए या फिर अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाने के लिए समय नहीं है। केवल श्रद्धा के कारण भगवान के लिए समय निकाल लेते हैं और दर्शन करने आ जाते हैं। इस यात्रा में जा रहे सभी युवा श्रद्धा से माता के मंदिर जा रहे हैं। आंदोलनों में जाने के लिए युवाओं के पास समय नहीं है लेकिन यह श्रद्धा का विषय है इसलिए माता के मंदिर आने के लिए समय निकालना पड़ता है।

अन्य युवाओं के समूह ने बताया कि वह द्वारका से आ रहे हैं और वह अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं। युवा अच्छी पढ़ाई करते हैं, ताकि उन्हें नौकरी मिल सके। इस समय वह नौकरी के लिए तैयारी करते हैं। वहीं देभभर में लाखोंलाख युवा सरकार से सरकारी नौकरी के पद निकालने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन इन युवाओं का कहना है कि वह जरूरी नहीं है। अधिकारों के लिए आंदोलनों को लेकर इन युवाओं की सोच है कि आंदोलन बेकार होते हैं, हमको केवल माता रानी के दर्शन करने हैं, वही हमारा बेड़ा पार करा देंगी। एक युवा का कहना है कि माता रानी के दर्शन हो जाएंगे तो सब कुछ सफल और शुभ होगा ही होगा। वहीं अन्य युवाओं का कहना है कि देवी मां की कृपा है इसलिए आंदोलन करने की जरूरत नहीं पड़ती है।

किन युवाओं के लिए हो रही है राजनीति

देश में बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी और गरीबी जैसी कई सारी समस्याएं अपने कदम जमाए हुए हैं। युवाओं को इन समस्याओं का समाधान ढूंढने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही सरकार से अपने अधिकारों की मांग करनी चाहिए लेकिन इसके उलट वह अंधविश्वास में डूबे हुए नजर आ रहे हैं। इन्हें अपनी मांगों के लिए युवाओं को आंदोलन करना चाहिए। कई किलोमीटर पैदल पदयात्रा निकालनी चाहिए, लेकिन गुजरात में अभी इस समय हजारों-हजार युवा कई किलोमीटर पैदल चलकर अंधविश्वास के सागर में गोते लगा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब युवा ही अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं हैं तो सभी राजनीतिक पार्टियां युवाओं के भविष्य को आधार बनाकर अपने लिए वोट मांगती कैसे है और युवाओं पर कैसे राजनीति करती है। ऐसे में जब युवा अंधविश्वास में फंसते चले जा रहे हैं तो राजनीतिक पार्टियां किसके लिए योजनाएं बना रही है और किसका विकास कर रही है। किन युवाओं के लिए राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।

अंधविश्वास के चक्रव्यूह में फंसे युवा

युवाओं के जवाब सुनने के बाद ऐसा लग रहा है कि यह मुल्क किसी और दिशा में ही जा रहा है। हजारों-हजार की संख्या में आशापुरा माता के मंदिर में जा रहे ये युवा कभी आंदोलन में नहीं गए, संघर्ष भी नहीं किया, समस्याओं के खिलाफ लड़ना नहीं चाहता है चाहते हैं और ना ही उनमें एकता और एकजुटता नजर आती है लेकिन भगवान के दरबार में लगातार जय माता दी के नारे लगाते हुए जा रहे हैं। अंधविश्वास में डूबे हुए युवाओं को ठीक से यह भी नहीं पता कि आंदोलन होता क्या है। अपने अधिकारों के खिलाफ लड़ना किसे कहते हैं और कैसे अपना हक हासिल किया जाता है। ऐसे में सवाल यह है कि देश की तस्वीर और तकदीर बदलने में लगी राजनीतिक पार्टियों को सोचना चाहिए कि आखिरकार देश बदलेगा कैसे? जब युवा के दम पर क्रांति आगे बढ़ती है। कहा जाता है कि युवाओं के कंधों पर क्रांति का पथ आगे बढ़ता है लेकिन युवाओं में वह क्रांति आएगी कैसे? जब उनके कंधों पर धर्म की तलवार और ध्वज लदी पड़ी है। इसी अंधश्रद्धा और धर्म का चक्रव्यू सदियों से युवा ढोते चले आ रहे हैं।

Next Story

विविध