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Ground Report : बिहार के सबसे गरीब जिले अररिया में गैर पारंपरिक ऊर्जा की डगर कितनी आसान !
अररिया से अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार में कोसी नदी के इलाके में बसे सीमांचल क्षेत्र के प्रमुख जिले के रूप में चर्चित अररिया में गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का इतिहास, संभावनाएं और सीमाएं जानना बेहद दिलचस्प है। अररिया में बॉयोमास ऊर्जा के जनक के रूप में ख्यात एचएल शरण देश और दुनिया के चंद वैज्ञानिकों में से एक हैं जिनका गैर पारंपरिक ऊर्जा को सुलभ और सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है।
करीब 15 वर्ष पहले एचएल शरण ने अररिया में गैर पारंपरिक ऊर्जा कंपनी की शुरुआत की और नाम रखा देसी पॉवर। उस कंपनी ने अररिया के बेहद पिछड़े जोकीहाट और बाहरबाड़ी इलाकों में पहली बार लोगों के घरों में रौशनी दी। उसके बाद किसानी से लेकर दुकानों तक में बिजली आपूर्ति बॉयोमास और सौर ऊर्जा के जरिए होने लगी। बॉयोमास और सौर ऊर्जा की मदद से अररिया में आटा चक्की, मसाला चक्की, आरओ प्लांट, ड्रॉयर और जलावन के लिए सूखा ईंधन बनने लगा। गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के प्रयासों के कारण इलाके के लोगों को न सिर्फ सक्षम होने में मदद मिली, बल्कि वह समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए।
अररिया में गैर पारंपरिक ऊर्जा की कहानी काफी उत्साहजनक और उम्मीद जताने वाली रही है। पिछले कुछ वर्षों में बिहार सरकार ने Bihar Renewable Energy Development Agency (BREDA) के जरिए भी गैर पारंपरिक ऊर्जा के कुछ प्रयास किए हैं। अब क्या है हाल, कितना विस्तार हुआ है और सरकार की सौर ऊर्जा को लेकर जारी तरह-तरह की पहलकदमी की क्या स्थिति है, यह जानना हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है, जिसे पर्यावरण की चिंता है और जो बढ़ते वायुमंडलीय खतरों से चिंतित है।
देखिये ग्राउंड जीरो से वीडियो रिपोर्ट
(इस रिपोर्ट को EJN (Earth Journalism Network) के लिए वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश ने तैयार किया है।)