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Ground Report : खुद से जीवनसाथी चुनना अपराध से कम नहीं, महिलाओं से जानिये -अलग जाति में शादी करने वाली लड़कियों के साथ कैसे पेश आता है परिवार
Ground Report : उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के युवा दलित नेता जगदीश चंद्र की निर्मम हत्या में प्रदेश सरकार और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी को लेकर सैकड़ों लोगों ने 'आंखें खोलो चुप्पी तोड़ो' रैली प्रदर्शन का आयोजन कर सरकार को चेतावनी दी कि उत्तराखंड की ऐसी संवेदनहीन सरकार और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
सवर्ण लड़की गीता से शादी करने पर मौत के घाट उतार दिए गए दलित युवा नेता जगदीश चंद्र को न्याय दिलाने के लिए 27 सितंबर को आयोजित आंदोलन में उत्तराखंड के अल्मोड़ा पहुंची आंदोलनकारी महिलाओं से जनज्वार ने बात की और यह जाना कि प्रेम विवाह पर समाज का क्या नजरिया है। जनज्वार से बातचीत के दौरान अल्मोड़ा पहुंची आंदोलनकारी महिलाओं ने बताया कि प्रेम विवाह पर परिवार का क्या नजरिया होता है। अपने पसंद और अलग जाति में शादी करने वाली लड़कियों के साथ परिवार और समाज कैसे पेश आता है।
पितृसत्तात्मक समाज और जातिवादी मानसिकता
प्रदर्शन कर रही एक युवती ने बताया कि जगदीशचंद्र हत्याकांड में दो कारण मूलतः नजर आते हैं, एक पितृसत्तात्मक समाज की सोच और दूसरी जातिवादी मानसिकता। पितृसत्तात्मक सोच के चलते महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है। सुरक्षा और समानता के दृष्टि से देखा जाए तो हम लड़कियों को हमारे अधिकार भी नहीं मिलते हैं। जब बात आती है प्रेम विवाह की तो यह एक इक्छा और अपनी पसंद का चुनाव का विषय है लेकिन पितृसत्तात्मक वाले समाज में इसकी अनुमति नहीं दी जाती है। खासकर हम लड़कियों और नौजवानों को तो बिल्कुल भी इसकी आजादी नहीं है।
दूसरी जाति में प्रेम विवाह की अनुमति नहीं
पितृसत्तात्मक समाज के और जातिवादी मानसिकता के जो ड्राइवर हैं, वह समाज में इस तरह फैले हुए हैं कि अगर आप प्रेम विवाह करना चाहे या पढ़ाई करना चाहे, अगर आप अपने अधिकारियों को लेकर बात करना चाहे तो आप नहीं कर सकते हैं क्योंकि बहुत ज्यादा संकीर्णताएं इस समाज में अभी भी व्याप्त हैं। स्कूल आने के लिए, स्कूल में पढ़ाई करने के लिए कई सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और प्रेम का मामला तो इतना ज्यादा दूर और जटिल है कि आप अपने से दूसरी जाति में विवाह नहीं कर सकते हैं।
समाज में संस्कारी महिला होने का नजरिया
अन्य अधिकारों की बात करें तो एक बार के लिए माता-पिता परमिशन दे देते हैं लेकिन जब बात प्रेम विवाह की आती है तो वह अनुमति नहीं देते हैं क्योंकि वह कहते हैं कि आप लड़की हो तो आपने कैसे पसंद कर लिया। पारिवारिक सोच के चलते लड़कियों पर पुरुष प्रधान समाज की सोच को थोपा जाता है। हमारे समाज में सबसे बड़ी धारणा यह है कि संस्कारी महिला होनी चाहिए। इसी धारणा के तहत महिला को सामाजिक शिक्षा दी जाती है।
लड़कियों को जीवन में करना पड़ता है संघर्ष
एक अन्य युवती ने बताया कि प्रेम विवाह करने की स्थिति में पहले और आज के समाज में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं दिखता है। बस केवल इतना है कि अगर आप अपनी ही जाति में प्रेम विवाह करना चाहते हैं और वह परिवार पैसे से संपन्न है तो एक बार के लिए आपके माता-पिता मान जाते हैं लेकिन अगर बात दूसरी जाति में प्रेम विवाह करने की आती है और उसमें भी अगर वह निचली कास्ट के हैं तो बिल्कुल भी अनुमति नहीं दी जाती है। लड़कियों को बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है, जिसका एक उदाहरण अभी जगदीश हत्याकांड है।
घर की इज्जत मानकर लड़कियों को किया जाता है कैद
युवती ने आगे कहा कि फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले के कारण आज हम पढ़ाई कर रहे हैं। लड़कियों को नौकरी करने की परमिशन भी इसलिए दी जाती है ताकि उनको हाई लेवल पर नौकरी करने वाला दामाद मिलेगा, जो उनकी स्टेटस को मेंटेन रखेगा। परिवार लड़कियों को उनकी इज्जत और संपत्ति समझता है इसलिए उस को कैद कर कर रखना चाहता है। लोकतंत्र है लेकिन लड़कियों के लिए कुछ नहीं है। कोई भी पति यह नहीं चाहता है कि उसकी पत्नी उसे घर में काम करने के लिए कहे। अभी भी पुरानी सोच वही है कि लड़की घर का काम करें उसके बाद नौकरी पर जाए। नौकरी को दूसरे स्थान पर रखा जाता है जबकि सभी लड़कियों के लिए पहला काम घर संभालना ही समझा जाता है।
लड़कियों की जिंदगी पर पुरुष प्रधान सोच हावी
एक अन्य महिला ने बताया कि हमारी जो पितृसत्तात्मक समाज और पुरुषवादी सोच है, वो ये चाहते हैं कि लड़की हमारे अनुसार शादी करें। पितृसत्तात्मक सोच ने लड़की को यह अधिकार नहीं दिया है। महिलाओं के प्रति सोच है कि वो कुछ नहीं कर सकती हैं और उन्हें कमजोर समझा जाता है। इस समाज में यह माना जाता है कि लड़की स्वयं निर्णय नहीं ले सकती है।
सरकार सत्ता के लिए महिलाओं को देवी मानने का करती है ढोंग
वहीं लड़कियों की स्थिति पर बात करते हुए एक महिला ने कहा कि आज कल जो कहा जाता है कि लड़की एक देवी का रूप है। महिला एक देवी का रूप है और उन्हें हम पूज रहे हैं, यह केवल एक ढोंग है। सरकार द्वारा सत्ता चलाने के लिए महिलाओं को देवी के रूप में दिखाया जाता है लेकिन अगर उन्हें सच में देवी का रूप माना जाता तो उन्हें मारा नहीं जाता और ना ही उनका बलात्कार होता। सत्ता में बैठे रहने के लिए यह केवल सरकार का एक ढोंग है।
उच्च शिक्षा देकर लड़कियों को धकेला जाता है पीछे
एक महिला ने कहा कि आज के समाज में लड़कियों को पढ़ाया जाता है और उन्हें उच्च शिक्षा तक दी जाती है लेकिन उन्हें इतना ज्यादा आगे पढ़ाने के बाद उनकी सोच को पीछे धकेला जाता है।
सामिजिक ढांचा महिलाओं को धकेलता है पीछे
एक महिला ने बताया कि 20 साल पहले जो समय था और आज का जो समय है, उसमें केवल इतना फर्क आया है कि आज जो लड़कियां पढ़-लिख लेती है तो वह थोड़ी बहुत बात कह पाती हैं लेकिन हमारा जो समाज का ढांचा है, वह कहीं ना कहीं महिलाओं को पीछे धकेल रहा है। आज भी लड़कियों को अपने पढ़ाई के लिए माता-पिता से परमिशन लेनी पड़ती है और प्रेम विवाह के लिए तो परिवार से पहले ही गाइडलाइंस दे दी जाती है कि अगर किसी को पसंद करना है तो अपनी जाति में पसंद करना, उसके बाद ही तुम्हारी मांग को देखकर हम इजाजत देंगे। अगर दूसरी कास्ट में कोई प्रेम विवाह करना चाहता है तो उसके माता-पिता बोल देते हैं कि अपना जीवन अब खुद देख लो, फिर उस लड़की को अपने जीवन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
महिला ने आगे कहा कि माता-पिता का लड़कियों पर बहुत दबाव रहता है रहता है। शहर हो या गांव सभी जगह महिलाओं के लिए समाज एक जैसा है। पहले जो स्थिति थी आज भी वही है। महिला पहले भी संघर्ष करती थी और आज भी संघर्ष कर रही है।
महिलाओं की आजादी पर हावी रूढ़िवादी सोच
एक महिला ने बताया कि शहर से ज्यादा गांव में लड़कियों की शादियों पर ज्यादा पाबंदी हैं। शहर के मुकाबले गांव में लड़कियों की शादी जल्दी करने के पक्ष में रहते हैं। इसके साथ ही गांव में लड़कियों पर बहुत सी पाबंदियां होती हैं। वो ज्यादा पढ़ लिख नहीं सकती हैं। ऐसे प्रेम विवाह तो दूर की बात है। गांव में लड़कियां पढ़ लिख भी ले लेकिन उनकी आजादी गांव के सोच के तले दबा दी जाती है।
समाज से लड़ने के लिए परिवार से करनी होगी शुरुआत
लड़कियों को हमेशा कैद रखा जाता है। उनको सामाजिक शिक्षा भी इसी के अनुरूप मिलती है। अगर लड़कियों को आगे बढ़ना है तो इसके लिए उन्हें पहले अपने परिवार से ही शुरुआत करनी होगी क्योंकि परिवार ही समाज की पहली इकाई है, जो लड़कियों को उसके अनुरूप चलने से रोकता है।
महिलाओं को जीवनसाथी चुनने का होना चाहिए अधिकार
सभी महिलाओं का मानना है कि अगर जीवनसाथी का चुनाव अच्छा है तो किसी भी जाति या धर्म की लड़की हो, उसे अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार होना चाहिए। एक युवती ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि 'मैंने भी दूसरे कास्ट में शादी की है, जिसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। काफी संघर्ष के बाद माता-पिता तो मान गए लेकिन रिश्तेदार नहीं माने लेकिन जब उन्हें लगा कि अब मैं उनका सहारा हूं तो तब उन्होंने अपना जातिवादी द्वेष छोड़ा है।