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Ground Report : मदरसों में होती है पढ़ाई या दी जाती है धर्मांधता की शिक्षा, जानिए क्या है योगी राज में किए जा रहे सर्वे का सच
Ground Report : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने यूपी के सभी मदरसों का सर्वे करने के आदेश दिए हैं। सत्ताधारी पार्टी का कहना है कि मदरसों में पढ़ाई नहीं होती, बल्कि धर्मांधता की शिक्षा दी जाती है। मदरसों का यही सच यह जानने के लिए जनज्वार मदरसों की दहलीज पर पहुंचा। यह जानने कि योगी सरकार की जांच में मदरसों को क्या लाभ मिलेगा या फिर यह सिर्फ मदरसों को बदनाम करने का नया हथकंडा है। बनारस पहुंची जनज्वार टीम ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में यह पता लगाया कि सरकार द्वारा मदरसों को कितनी सुविधाएं दी जाती है और मदरसों में सरकार की क्या भागीदारी है। साथ ही यह भी जाना कि मदरसों में पढ़ाई कैसे होती है।
मदरसों की जांच का नहीं मिला है कोई आधिकारिक नोटिस
मदरसा नूरिया रिजविया के प्रिंसिपल मोहम्मद नासिर हुसैन ने बताया कि प्रदेश सरकार की तरफ से मदरसे की जांच का कोई आधिकारिक नोटिस नहीं मिला है। हमें सरकार की मंशा की कोई जानकारी नहीं है कि वह सर्वे क्यों करवाना चाहती है। यदि मदरसे का सर्वे करवाने के बाद कुछ अच्छा काम करना चाहती है और मदरसे की तरक्की के लिए कार्य करना चाहती है तो हम इस सर्वे में पूरा सहयोग करेंगे। योगी सरकार द्वारा मदरसों की जांच करवाना एक साजिश है। ऐसा करके वह एक बड़े तबके को पढ़ाई करने से रोक रहे हैं।
मदरसे में पढ़ाए जाते हैं सभी सब्जेक्ट
पीवीसीएचआर के संयोजक लेनिन रघुवंशी ने बताया कि मदरसों की बड़ी भूमिका आजादी के आंदोलन में रही है। आजादी की लड़ाई में 60% मुसलमानों की शहादत रही है। मदरसों में दो तरह के पढ़ाई होती है एक दीनी तालीम है, जो उनके पैसों से चलती है। दीनी तालीम में 72 से लेकर 74 तरीके के फिकरे हैं और दूसरी तालीम दुनिया की तालीम है, जिसमें यूपी बोर्ड और एनसीईआरटी और सीबीएसई के सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं। ज्यादातर सभी राज्यों के सिलेबस पढ़ाए जा रहे हैं। बजरडीहा के दलित बस्ती में ना प्राइमरी स्कूल है और न ही हाईस्कूल है। मदरसे में जो पढ़े हुए बच्चे हैं, वह डॉक्टर और इंजीनियर बन कर निकल रहे हैं।
मदरसे में पढ़ाती हैं हिंदू शिक्षिका
बनारस के मदरसा की शिक्षिका गीता श्रीवास्तव ने बताया है कि वह एक हिंदू है और मदरसे में पढ़ाती हैं लेकिन जैसा मदरसों के बारे में अफवाहें उड़ाई जा रही है, उस तरह का कुछ भी उन्होंने यहां नहीं देखा है। यहां सभी प्रकार के भाषाएं पढ़ाई जाती है। हिंदी, इंग्लिश, मैथ, उर्दू संस्कृत सभी तरह के सब्जेक्ट पढ़ाए जाते हैं।
शिक्षिका ने आगे कहा कि पहली बार जब वह यहां आई तो मीडिया और यूट्यूब पर जिस तरह की बातें दिखाई जा रही है, उसे देख कर पहली बार उन्हें डर लगा था लेकिन जब वह यहां आई तो सारी बातें अफवाह साबित हुई। साथ ही मदरसे में बच्चों को पढ़ने में काफी रुचि है। अगर कहीं पढ़ाई नहीं करवाई जाती हैं और वहां कट्टरता सिखाई जाती है तो बच्चे वहां पढ़ने में रुचि नहीं दिखाते हैं। मदरसे के बच्चे और टीचर बहुत ज्यादा अच्छे हैं। एक हिंदू टीचर होने के नाते यहां पर मेरा सम्मान किया जाता है। मेरी समस्या को सुनते हैं, समझते हैं और उसका समाधान भी करते हैं। शुरुआत में जब मैं यहां के रास्तों से अनजान थी तो बच्चे मुझे रास्ता दिखाया करते थे। इस मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे टीचर, डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस बनना चाहते हैं।
बजरडीहा में सरकारी स्कूल की सुविधा नहीं
मदरसा के शिक्षक मोहम्मद फरीद आलम का कहना है कि सरकार की एक कमी है कि उन्होंने हमें स्कूल नहीं दिया। अगर उन्होंने स्कूल दिया होता तो हमें मदरसे में इतने सारे सब्जेक्ट नहीं पढ़ाने पड़ते। ढाई लाख की आबादी में सरकार की तरफ से ना आंगनवाड़ी है, ना उतने प्राइमरी स्कूल है, ना ही मिडिल स्कूल है और ना ही हाई स्कूल है। बजरडीहा प्रधानमंत्री का क्षेत्र है लेकिन यहां पर एक भी स्कूल नहीं है। यहां अधिकारी से मैंने खुद जाकर बात की थी कि हमारे मदरसे में पांचवी कक्षा तक बच्चों को पढ़ाया जाता है लेकिन उसके बाद छठी और सातवीं में बच्चे कहां पढ़ेंगे। उस स्कूल का नाम बता दीजिए तो उनका कहना था कि मैंने अभी ज्वाइन किया है। मैं बाकी अधिकारियों से बात करके आपको बता दूंगा लेकिन आज तक उनका कोई जवाब नहीं आया है।
मदरसों में बच्चों को दिए जाते हैं पसंद के सब्जेक्ट
मोहम्मद फरीद आलम ने आगे कहा कि मदरसे में बच्चों की पसंद के सब्जेक्ट उन्हें दिए जाते हैं। अगर बच्चे हिंदी लेना चाहते हैं या इंग्लिश लेना चाहते हैं या फिर संस्कृत लेना चाहते हैं तो वे उस भाषा में सब्जेक्ट्स को पढ़ते हैं। हम सर्वे करने वाले अधिकारी और अल्पसंख्यक मंत्री का स्वागत करते हैं। पहले से जो मदद से रजिस्टर्ड हैं ]उसमें साइंस टीचर को 5 साल बाद सैलरी मिलती है। मुख्तार अब्बास नकवी जब केंद्रीय मंत्री थे तब उन्होंने पार्लिमेंट में कहा था कि उन्हें 5 करोड़ रुपए देने हैं। अगर 1000 करोड़ रुपए दे देंगे तो बच्चों को स्कॉलरशिप मिल जाएगी। जहां 4000 करोड़ रुपए का कुंभ मेला होता है, वहां शिक्षा के नाम पर गरीब बच्चों के लिए 1000 करोड़ रुपए का बजट पास नहीं कर पाते है। उत्तर प्रदेश में मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त और साथ ही एडेड मदरसे हैं। चाहे मान्यता प्राप्त मदरसे हो या गैर मान्यता प्राप्त, दोनों ही मदरसे को सरकार खर्च के लिए 1 रुपए नहीं देती है।
सरकार की तरफ से मदरसे में कोई सुविधा नहीं
मदरसे के शिक्षक का कहना है कि कोई सुविधा सरकार की तरफ से नहीं हो रही है। यहां पर जो भी इंतजाम है, वो खुद अपने से करते हैं और साथ ही कुछ लोगों के चंदे से यह मदरसा चलता है। यहां 5 से 6 लाख की आबादी है और यहां कोई सरकारी स्कूल नहीं है। प्राइमरी स्कूल में पांचवी कक्षा तक पढ़ाई होती है। एक-दो सरकारी मदरसे हैं। अगर निजी मदरसे नहीं होंगे तो ये बच्चे कहां जाएंगे।
वहीं एक बच्चे के अभिभावक ने बताया कि यहां स्कॉलरशिप का फॉर्म भरा जाता है। जिनके पास डॉक्यूमेंट है वह इस स्कॉलरशिप के फॉर्म को भर सकते हैं। बस केवल यही एक फंड सरकार के माध्यम से बच्चों को मिलता है। पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक के बच्चों के लिए साल के 1000 रुपए, आठवीं और सातवीं कक्षा के लिए 1200 रुपए, नौवीं और दसवीं कक्षा के लिए 1300 रुपए सरकार दे रही है। बच्चों के लिए बस केवल मदरसे के लिए सरकार की तरफ से यही सुविधा आती है। इसके अलावा कोई भी मदद सरकार की तरफ से मदरसों को नहीं मिलती है।
ऐसे में भी कुछ मदरसों का कहना है कि उनकी स्कॉलरशिप के पैसों में भी कटौती की गई है क्योंकि उनके मदरसों के फंड में कटौती की गई है। बजरडीहा और लोहता इन दोनों इलाकों में लाखों की संख्या में बच्चे हैं। लाखों की आबादी है लेकिन स्कूलों की सुविधा नहीं है। ऐसे में इन बच्चों के तालीम के जिम्मेदारी सरकार की है लेकिन यहां बुरी स्थितियों में बच्चे पढ़ रहे हैं और असुविधाओं में शिक्षा हासिल कर रही हैं।
योगी सरकार सर्वे कर क्या जांच करेगी
एडेड मदरसे यूपी में 2 प्रतिशत भी नहीं हैं। सबसे ज्यादा मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं और मान्यता प्राप्त सिर्फ 18 हजार के आसपास हैं। गैर मान्यता प्राप्त की तो बात छोड़िए, मान्यता प्राप्त मदरसों को भी यूपी सरकार एक रुपए का अनुदान नहीं देती। मान्यता प्राप्त मदरसों को भी वहां पढ़ने वाले बच्चों पर आरटीई लागू नहीं होती यानी वे सरकार की ओर से मिलने वाले मिड डे मील व ड्रेस के भी हकदार नहीं होते। सबसे बड़ी बात है कि 2017 से मदरसों मे पढ़ाई जाने वाली किताबें बाजार में नहीं आ रही हैं। वह पब्लिश ही नहीं हो रही हैं। अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसी सरकार मदरसे का सर्वे कर किस बात की जांच करेगी।