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UP Election 2022 : गोविंदनगर विधानसभा में अपवादों को छोड़ BJP और ब्राह्मणों का रहा है दबदबा, पर इस बार जनता जुमलों से खफा है!
मनीष दुबे की रिपोर्ट
UP Election 2022 (जनज्वार) : कानपुर की गोविंदनगर विधानसभा चुनाव में मतदाता हर बार खुला खेल फर्रुखाबादी के मूड में दिखता है। इस विधानसभा के अतीत की बात करें तो ब्राह्मण बाहुल्य और पूर्वांचल की फिजा को समेटे गोविंदनगर को बालचंद्र मिश्र ने 30 साल पहले भाजपा के गढ़ में तब्दील किया था। भितरघात के चलते भाजपाई दुर्ग में दो मर्तबा कांग्रेसी अजय की जय-जय हुई, लेकिन परिसीमन बदलते ही उन्हें भी रणछोड़ बनकर दूसरा रणक्षेत्र तलाशना पड़ा था। जातिगत नजरिए से देखें तो गोविंदनगर सीट के लिए 17 मर्तबा चुनाव हुए हैं जिसमें ग्यारह बार ब्राह्मण उम्मीदवार के सिर सेहरा बंधा है।
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इस विधानसभा में पूर्वांचल के ब्राह्मण बालचंद मिश्र ने लगातार चार बार कमल खिलाया। मिश्र के टहलाने और टरकाने के रवैये से मतदाता नाराज हुआ तो कांग्रेस के अजय कपूर ने भगवा किला ध्वस्त कर दिया। उस चुनाव बालचंद को 52960 वोटों से शिकस्त मिली थी, अजय कपूर अगले चुनाव में अजेय जरूर रहे, लेकिन उन्हें इलाके की फिजा समझ में आ गई थी।
इस चुनाव में भाजपा से हनुमान मिश्र, सपा से वीरेंद्र दुबे और बसपा से राजेंद्र तिवारी मैदान में थे। ब्राह्मण वोट बिखर गया और अजय करीब चालीस हजार वोटों से जीत गए। अगले चुनाव यानी वर्ष 2012 में अजय कपूर किदवई नगर से लड़े तो सत्यदेव पचौरी ने गोविंदनगर में भगवा परचम लहरा दिया। सत्तर हजार वोटों के अंतर से जीत का सिलसिला वर्ष 2017 में भी कायम रहा।
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इसके बाद 2017 में सत्यदेव पचौरी लोकसभा पहुँचे तो सुरेंद्र मैथानी ने गोविंदनगर से बाजी मार ली। कांग्रेस से करिश्मा ठाकुर, और समाजवादी पार्टी से सम्राट विकास यादव तथा बसपा से देवी तिवारी मैदान में थे। लेकिन ब्राहमणवाद का पलड़ा सुरेंद्र मैथानी की तरफ हावी हो गया और उन्होने बाजी पलट दी।
2019 चुनाव में भाजपा और बसपा ने ब्राह्मण चेहरों पर दावं लगाया, जबकि कांग्रेस ने ठाकुर और सपा ने यादव को मैदान में उतारा था। जबकि इस गोविंदनगर विधानसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण हमेशा से ब्राह्मण उम्मीदवार के पक्ष में रहे हैं। उम्मीदवार का नाता पूर्वांचल से जुड़ जाए तो जीत को सौ फीसदी पक्का माना जाता है।
ब्राह्मण तय करते हैं हार-जीत का फैसला
2019 के चुनाव मतगणना के अनुसार गोविंद नगर में कुल तीन लाख उनचास हजार एक सौ अस्सी (3, 49,180) मतदाता हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से आंकलन है कि 1.60 लाख ब्राह्मण मतदाता हैं, जबकि अनुसूचित मतदाताओं की संख्या 50 हजार और 41 हजार पिछड़ी जाति के वोटर्स हैं। पंजाबी वोटर्स 21 हजार, मुस्लिम मतदाता 19 हजार, क्षत्रिय मतदाता 13 हजार, वैश्य 9 हजार, सिंधी मतदाता 14 हजार हैं।
पूर्वांचल इफेक्ट का भी है असर
इस सीट का दूसरा नजरिया यह है कि साढ़े तीन लाख मतदाताओं में करीब दो लाख पूर्वांचल से नाता रखते हैं। इसी समीकरण के कारण गोविंद नगर सीट भाजपा की परंपरागत सीट बन गई है, जहां भाजपा को परास्त करना मुश्किल रहा है। यहां जब कभी भाजपा हारी तो अंतर बेहद कम रहा। कांग्रेस की उम्मीदवार के ठाकुर बिरादरी से होने के अलावा पार्टी में भितरघात और असंतोष के कारण उम्मीद कमजोर हुई थी।
इस बार भाजपा से नाराज है जनता
जनज्वार की टीम को मिले आंकड़ों की अगर बात करें तो इस चुनाव यानी 2022 आम जनता महंगाई और भृष्टाचार से आजिज आ चुकी है। नेताओं के हवाई वादे और सत्ता के जुमलों की मार जनता पर सीधी पड़ रही है। डीजल-पेट्रोल से लगाकर रसोई गैस तक की मार झेलती जनता को अब भाजपा से उम्मीद के सभी रास्ते बंद हैं। बावजूद इसके यह भी ध्यान रखना होगा की गोविंदनगर सीट भाजपा के लिए नाक का सवाल रहती है। और वह इसे करो या मरो की लड़ाई से जोड़कर चलती है।
कौन-कौन हो सकता है दावेदार?
सत्ताधारी दल की तरफ से पार्टी में इस बार का उम्मीदवार कौन होगा यह कहना मुश्किल है क्योंकि इस चुनाव प्रत्याशियों का बहुत कुछ दारोमदार योगी पर नहीं बल्कि मोदी और शाह के मुताबिक चलना बताया जा रहा और इसी के तहत योगी का कद छोटा कर दिखाने का प्रयास किया जा रहा। समाजवादी पार्टी सम्राट विकास यादव पर एक बार फिर दांव खेल सकती है। तो वहीं कांग्रेस की अगर बात करें तो करिश्मा ठाकुर और विकास अवस्थी में एक चुना जाएगा। करिश्मा ठाकुर यहां से पिछली दफा हार का मुँह देख चुकी हैं जिसके बाद अब माना जा रहा विकास अवस्थी दावेदार हो सकते हैं और कहा यह भी जाता है कि वह ब्राहमण चेहरा होने के साथ ही साथ प्रियंका व अजय लल्लू के करीबी भी हैं।