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स्वास्थ्य

Health News : लॉकडाउन के बाद 70% से ज्यादा लोगों के खाने में आई कमी, फिर भी मीडिया में नहीं कोई सवाल

Janjwar Desk
21 Sept 2021 1:35 PM IST
Health News : लॉकडाउन के बाद 70% से ज्यादा लोगों के खाने में आई कमी, फिर भी मीडिया में नहीं कोई सवाल
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Health News : ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में भारत इन देशों से नीचे है, दक्षिण एशिया में श्रीलंका सबसे बेहतर 64वें स्थान पर है....

मोना सिंह की रिपोर्ट

Health News जनज्वार। अभी हाल में ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के जन्मदिन को खूब धूमधाम से मनाया गया। देश के कोने-कोने में लोगों ने बड़े-बड़े वजनदार केक काटे। नेशनल मीडिया (National Media) में उनके जन्मदिन (Narendra Modi Birthday) पर बचपन से लेकर अबतक की कहानियां सुनाई गईं। वैक्सीनेशन (Covid 19 Vaccination) का एक नया रिकॉर्ड बनाने का दावा किया गया। लेकिन उस दिन भी भारत में कितने लोग भूखे रहे होंगे? ये किसी ने नहीं बताया होगा।

उस दिन हजारों किलो केक कटे लेकिन उसी दिन कुपोषण (Malnutrition) से भी बच्चे रोए होंगे। लेकिन ये कहीं नहीं आया। अब आप सोच रहे होंगे, ये अचानक क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि जब नेशनल मीडिया में तारीफों की तमाम खबरें आईं तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इस पर खुशी जाहिर की। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री अपने जन्मदिन वाले दिन भी अगर वैक्सीनेशन के साथ देशभर में भूखे पेट सोने वालों को दो रोटी खिलाने की अपील कर देते तो कम से कम एक दिन तो पूरे देश में लोग खाली पेट नहीं सोते। पर अफसोस ऐसा नहीं हुआ।

अब बताते हैं कि आखिर इन बातों की हमने चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि मौजूदा हालात में भारत का हर चौथा बच्चा कुपोषण का शिकार है। यानी करीब 25 फीसदी बच्चों का स्वास्थ्य (Health) औसत से भी बुरे हालात में है। और ये जानकर आपको हैरानी भी होनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी सरकार में ये मामले बढ़े ही हैं। जबकि सरकार बनने की शुरुआत से विकास को प्राथमिकता देने के तमाम दावे किए जाते रहे हैं।

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1998 से 2002 के बीच बच्चों में कुपोषण की दर 17.1 फीसदी थी जबकि साल 2012 से 2016 के बीच ये बढ़कर करीब 21 प्रतिशत हो गई। अब 2019 से 2020 में कुपोषण करीब 25 फीसदी तक पहुंच चुका है। हालांकि, रिपोर्ट में शिशु मृत्यु दर में कमी आने का जिक्र जरूर किया गया है।

इस रिपोर्ट से जानिए क्या है देश के हालात

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey) के छठे राउंड की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से 2020 मतलब पिछले चार-पांच सालों में बच्चों के पोषण में कोई प्रगति नहीं हुई है। बल्कि हालात खराब ही हुए हैं। लेकिन क्या कभी इन पांच सालों में किसी नेशनल मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन या किसी भी दिन ऐसे सवाल उठाए? इसका जवाब आप खुद तय कीजिए।

ये स्थिति लॉकडाउन (Lockdown) में और भी खराब हुई है। और तो और, स्कूलों में मिड-डे-मील और स्वास्थ्य सुविधाएं भी बंद हुईं हैं। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में आई। उन्होंने साल 2015 के अपने पहले बजट में मिड डे मील और आईसीडीएस यानी एकीकृत बाल सेवा विभाग का बजट कम कर दिया। आज भी केंद्र सरकार का बजट इन योजनाओं के लिए 2014 से कम है। तब किसी ने ये सवाल नहीं उठाया कि जब कुपोषण और भूखमरी के हालात बढ़े हैं तो बजट को किस आधार पर कम किया गया?

हाल में आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट देखिए

हाल में ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में भारत को 94वें पायदान पर रखा गया है। मतलब, भारत की भूख को लेकर काफी गंभीर स्थिति है। खराब हालात तो पूरी दुनिया में है। लेकिन जिस पड़ोसी देश पाकिस्तान को लेकर हमारे नेशनल मीडिया में अक्सर वहां की सरकार की आलोचना की जाती रही है वो भी हमसे बेहतर स्थिति में है। लेकिन कभी भी किसी नेशनल मीडिया ने इन दोनों देशों से जुड़ी इस रिपोर्ट को नहीं दिखाया।

भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी (GDP Per Capita) नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों से काफी ज्यादा है। लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में भारत इन देशों से नीचे है। इस रिपोर्ट में श्रीलंका सबसे बेहतर 64वें स्थान पर है। इसके बाद नेपाल 73वें, बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें स्थान पर है। जबकि पाकिस्तान की रैंकिंग 88वीं है।

लेकिन इंडिया 94वें स्थान पर है। अब सवाल ये भी उठ सकता है कि हमारे देश की आबादी पड़ोसी देशों से काफी ज्यादा है। लेकिन फिर सरकार जो विकास के रोज नारे देती है, उसका क्या? ये नारे सिर्फ मीडिया में वाहवाही लूटने के लिए है या फिर धरातल पर भी उसे लागू करने के लिए? जवाब आप खुद सोचिए।

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रिपोर्ट की खास बातें

दुनिया की 69 करोड़ आबादी कुपोषित है। वहीं, भारत की 14 प्रतिशत आबादी अल्प पोषित है।

भारत में हर चौथा बच्चा कुपोषित है। तीसरा बच्चे का कद औसत से छोटा है। आजादी के बाद जहां खाद्यान्न उत्पादन में 5 गुना वृद्धि हुई वहीं पिछले कुछ वर्षों में कुपोषण के मामले में भारत की स्थिति बदतर हुई है।

भारत की औसतन हर दूसरी महिला खून की कमी की शिकार है। यानी लगभग 40 फीसदी महिलाएं खून की कमी से एनीमिया पीड़ित हैं।

कोरोना लॉकडाउन से हालात और बदतर

हंगर वॉच (Hunger Watch) के सर्वे की 2020 की स्थिति को लेकर आई रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से भारत में हालात और बदतर हुए हैं। हजारों की संख्या में परिवार प्रभावित हुए हैं। लोग कम खा रहे हैं। बच्चों और मां-बाप की हालत खराब हुई है। केंद्र सरकार ने सामाजिक नीति को पूरी तरह से राज्य सरकार पर छोड़ दिया है।

भारत के 11 राज्यों में हुए सर्वे में पता चला है कि साल 2015 के बाद से अब तक भूख से कथित तौर पर कम से कम 100 मौतें हुईं हैं। इस सर्वे में दावा किया गया है कि लॉकडाउन के समय देश के कई परिवारों को कई-कई रातें भूखे रह कर गुज़ारनी पड़ीं थीं। क्योंकि इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। इस तरह के हालात से करीब 27 फीसदी लोगों को सामना करना पड़ा था।

इस सर्वे (Survey) में ये भी सामने आया है कि लॉकडाउन से पहले जिन 56 प्रतिशत लोगों को रोज़ खाना मिल जाता था अब उनमें से भी हर 7 में से 1 को सितंबर-अक्टूबर (साल2020) के महीने में अक्सर या कभी-कभी ही खाना मिल पाया। क़रीब 71 प्रतिशत लोगों के भोजन की पौष्टिकता में लॉकडाउन के दौरान कमी दर्ज की गई। इनमें से 40 फीसदी लोगों के भोजन की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई। यानी उन्हें घटिया खाने का इस्तेमाल करना पड़ा। वहीं, दो-तिहाई लोगों के भोजन की मात्रा में कमी आई. 28 फीसदी लोगों के भोजन की मात्रा लॉकडाउन के बाद काफ़ी कम हो गई है।

इसके अलावा भी कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। सर्वे में पता चला है कि 45 फीसदी लोगों को खाने का इंतज़ाम करने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा। ये हालात सिर्फ निम्न आय वर्ग के लोगों की ही नहीं रही बल्कि 15 हजार रुपये या इससे अधिक की हर महीने कमाई करने वाले करीब 42 प्रतिशत लोगों को भी उस समय में पहले की तुलना में अधिक कर्ज़ लेना पड़ा।

इस तरह का ऋण लेने वाले लोगों में दलितों की संख्या सामान्य जातियों के लोगों से 23 प्रतिशत अधिक रही। इसके अलावा, हर चार दलितों और मुसलमानों में से एक और करीब 12 प्रतिशत आदिवासियों को दो वक्त की रोटी के लिए भी भेदभाव का सामना करना पड़ा।

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आपको बता दें कि ये पूरा सर्वे रोजी-रोटी अधिकार अभियान के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था। इस सर्वे में झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों के 3,994 लोगों से बातचीत की गई थी। इसमें गांव और शहर दोनों इलाकों को शामिल किया गया था।

मोदी सरकार को भूख और कुपोषण की चिंता नहीं : ज्यां द्रेज

बीबीसी की एक रिपोर्ट में मशहूर अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज (Jean Drez) ने बताया है कि मौजूदा हालात के लिए मोदी सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। सरकार को भूख और कुपोषण की चिंता नहीं है। सरकार आर्थिक विकास को ही पूर्ण विकास मान रही है।

भारत में मोदी सरकार की नीतियों में स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, बाल एवं महिला विकास जैसे मुद्दों को किनारे रखा गया है। इसे संपूर्ण विकास नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि हंगर वॉच और एनएफएचएस के सर्वे में भारत के बुरे हालात हैं लेकिन सरकार और मुख्यधारा की मीडिया इनसे रूबरू नहीं होना चाहता है।

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