Begin typing your search above and press return to search.
कोविड -19

एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी ने कोरोना महामारी को कैसे हराया?

Janjwar Desk
1 July 2020 12:39 PM GMT
एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी ने कोरोना महामारी को कैसे हराया?
x
Representative Image
धारावी में कार सेल्समेन विनोद कांबले कहते हैं, मुझे लगा था कि जैसे धारावी नष्ट हो जाएगी और कुछ भी नहीं बचेगा। झुग्गी में संक्रमण से बचने की असंभावना थी....

मुंबई। अप्रैल के महीने में जब कोरोना वायरस ने भारत की सबसे बड़ी झुग्गी में एक व्यक्ति को जब अपना पहला शिकार बनाया तो कई लोगों को डर था कि महामारी भीड़भाड़ वाली सड़कों को कब्रिस्तान में बदल देगी, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग और कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग असंभव है।

लेकिन शहर के अधिकारी किरण दिघावकर के अनुसार वायरस का पीछा करते हुए आक्रामक रणनीति के बदौलत मुंबई की धरावी तीन महीने बाद एक उम्मीद प्रदान कर रही है। आर्थिक राजधानी की इन विशाल झुग्गियों के लिए लंबे समय से आय में असमानताएं हैं। इन झुग्गियों में अनुमानित दस लाख लोग रहते हैं जो फैक्ट्री में काम करने वाले या नौकरों को रूप में मुंबई में रहने वाले लोगों की मदद करते हैं।

एक ही कमरे में एक दर्जन लोग आमतौर पर सोते हैं और सैकड़ों लोग एक ही सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करते हैं। अधिकारियों को जल्दी ही उसका अहसास हुआ। दिघावकर ने कहा, सोशल डिस्टेंसिंग की संभावना नहीं थी, होम आइसोलेशन का भी विकल्प नहीं था और एक ही शौचालय का उपयोग करने वाले इतने सारे लोगों के साथ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एक बड़ी समस्या थी।

शुरूआत में डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग की गई थी। तंग गलियों के बीच मुंबई मे गर्मी और उमस के बाद मेडिकल कर्मचारियों ने मेडिकल उपकरणों के अंदर घुटन महसूस की। लेकिन संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था और जांच के कोरोना के लक्षणों वाले मरीजों की संख्या 50,000 के पार हो गई थी, इसलिए अधिकारियों को तुरंत आगे बढ़ने और रचनात्मक होने की आवश्यकता थी।


इसके बाद 'मिशन धारावी' शुरू किया गया। प्रत्येक दिन चिकित्साकर्मियों ने झुग्गियों से अलग एक हिस्से में 'फीवर कैंप' स्थापित किए ताकि निवासियों के लक्षणों की जांच की जा सके और यदि आवश्यक हो तो कोरोना वायरस के लिए परीक्षण भी किया जा सके। स्कूल, मैरीज हॉल और स्पोर्ट्स कैंपस को क्वारंटीन की सुविधा के लिए खरीदा गया जिसमें मुफ्त भोजन, विटामिन, और योग सत्र कराया जाता था।

वायरस हॉटस्पॉट में सख्त कंटेनमेंट के कदम उठाए गए ताकि 1,25,000 लोगों की जान बचाई जा सके। लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया और पुलिस को अलर्ट पर रखा गया जबकि स्वयंसेवकों की एक बड़ी सेना ने राशन बांटा ताकि लोगों को भूख न लगे। बॉलीवुड स्टारों और बिजनेस टायकूनों ने मेडिकल उपकरणों के लिए आर्थिक मदद किया तो फिर धारावी पार्क में 200 बेड के अस्पताल का तुरंत अस्पताल का कंस्ट्रक्शन किया गया।

जून के अंत तक झुग्गियों में रहने वाली आधी आबादी के लक्षणों की जांच की गई और लगभग 12,000 लोगों का कोरोना परीक्षण किया गया। धारावी में अबतक सिर्फ 82 लोगों की मौत की सूचना है जबकि मुंबई में 4500 से ज्यादा लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है।

यह संकट जब चरम पर था तब 44 वर्षीय डॉक्टर अभय तावरे रोजाना 100 मरीजों को देखते थे। वह कहते हैं, 'हम जीत की कगार पर हैं, मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है।' जब वह अप्रैल के महीने में कोरोना के संपर्क में आए तो उन्हें और उनके पिता दोनों को कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़नी पड़ी।

समाचार एजेंसी एएफपी से वह कहते हैं कि मुझे काम पर लौटने के बारे में उन्हें 'कोई संदेह नहीं' था। उन्होंने कहा, मुझे लगा कि मैं अपने रोगियों को दिखा सकता हूं कि एक व्यक्ति के पॉजिटिव होने का मतलब सबकुछ खत्म होना नहीं है। हालांकि तावरे जैसे डॉक्टरों ने चिंतित निवासियों को आश्वस्त करने का काम किया।

अस्पताल में 25 दिन का आइसोलेशन और क्वारंटीन में दो सप्ताह बिताने के बाद सुशील (वास्तविक नाम नहीं) कहते हैं कि उसे अब भेदभाव का डर सता रहा है, अगर लोगों को उसके पॉजिटिव होने के बारे में पता चला। 24 वर्षीय सुशील ने कोरोना को लेकर सावधानी बरतने की चेतावनी को लेकर एक नोट में लिखा कि लोगों को को यथासंभव सावधानी बरतने की आवश्यकता है। संख्या कम हो सकती है लेकिन वे फिर से बढ़ भी सकते हैं।


राजधानी दिल्ली और मुंबई एक तरह जहां कोरोना से लड़ने में संघर्ष कर रहे हैं वहीं देशभर में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या आधा मिलिनय (पांच लाख) पहुंच गई है, अधिकारी भी जल्द ही जश्न मनाने में सावधान रह रहे हैं।

दिघावकर कहते हैं, 'यह एक युद्ध है, सबकुछ गतिशील है। अभी हमें लगता है कि हम स्थिति के शीर्ष पर हैं।' धारावी में अरबों डॉलर के चमड़े और रिसाइकिलिंग इंडस्ट्री का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा 'जब फैक्ट्रियां फिर से खुलेंगी, तब यह एक बड़ी चुनौती होगी।

कार सेल्समेन विनोद कांबले कहते हैं, मुझे लगा था कि जैसे धारावी नष्ट हो जाएगी और कुछ भी नहीं बचेगा। झुग्गी में संक्रमण से बचने की असंभावना थी। 32 वर्षीय कांबले कहते हैं, हमें बेहतर बुनियादी ढांचे की जरूरत है। नहीं तो अगलीबार इस तरह की बीमारी सामने आएगी, मुझे नहीं लगता कि फिर धारावी बच पाएगी।

(यह रिपोर्ट पहले अल-जजीरा पर प्रकाशित की जा चुकी है।)

Next Story