दिल्ली में कोरोना इलाज का मैक्स हॉस्पिटल ने वसूला 1.8 करोड़ का बिल, स्वास्थ्य मंत्री ने किया जवाब-तलब
( हॉस्पिटल सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली कि मरीज को कोविड हुआ था साथ ही उसे निमोनिया की भी शिकायत थी। )
जनज्वार। देश की राजधानी दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल (Max Hospital) ने एक मरीज से कोविड-19 (Covid 19) के इलाज के लिए 1.8 करोड़ रुपये लिए हैं। कोरोना के इलाज के नाम पर इसे देश में अबतक का सबसे अधिक शुल्क माना जा रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका (US) में तीन माह पूर्व आई एक ऐसी ही खबर मे कहा गया कि वॉशिंगटन (Washington) में कोरोना वायरस से संक्रमित एक मरीज को अस्पताल ने 11 लाख डॉलर (करीब 8.14 करोड़ रुपये) का बिल थमाया था। दोनों देशों में निजीकरण (Privatization) को लेकर होड़ मचा है। इसके बाद भी अमेरिका में कुछ खास है, जो सबसे अलग करता है।
हम पहले बात करते हैं दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल का। हॉस्पिटल सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली कि मरीज को कोविड हुआ था साथ ही उसे निमोनिया की भी शिकायत थी। मरीज की हालत काफी गंभीर थी, मरीज को लीवर में इन्फेक्शन और क्लॉट्स थे जिसके बाद उसे 75 दिनों तक ऑक्सीजन के सहारे रखना पड़ा। मरीज को 28 अप्रैल को मैक्स हॉस्पिटल (Max Hospital) में भर्ती किया गया था और करीब 4.5 महीने अस्पताल में इलाज के बाद उसे 6 सितंबर को डिस्चार्ज किया गया है।
इस मामले पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र लिखा है। कांग्रेस नेता ने मांग की है कि ऐसी घटनाओं से बचने के लिए एक रेगुलेटर नियुक्त किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री को लिखे पत्र में, तिवारी ने लिखा, 'मैं आपसे तुरंत स्पष्टीकरण मांगूंगा कि अस्पताल ने एक मरीज से इतनी अधिक राशि क्यों और कैसे ली, चाहे वह कितना भी अस्वस्थ हो या ना हो। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को तुरंत एक रेगुलेटर नियुक्त करने के लिए एक विधेयक लाना चाहिए।
आम आदमी पार्टी (AAP) के मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती (Somnath Bharti) ने 1.8 करोड़ रुपये चार्ज करने को लेकर सवाल किया कि क्या आजतक इतना बिल किसी अस्पताल ने लिया है? इन सबके बावजूद सरकार द्वारा कोई ठोस बयान अब तक नहीं आया है। चिकित्सक डॉ.वाचस्पति शुक्ला कहते हैं कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के गाइडलाइन के मुताबिक भी उचित नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र यादव कहते हैं कि ऐसे हाल में समान्य मरीजों का क्या होगा? गरीब को इलाज के नाम पर 5 लाख रुपए तक सहायता देने वाली सरकार आखिर ऐसे सवाल पर चुप क्यों है। कोरोना के पहले व दूसरे दोनों लहरों में देखने को मिला कि इलाज के नाम पर लोगों के घर व जमीन तक बिक गए। जान गंवाने के बाद भी परिजनों को एक बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ा।
दूसरी लहर में गौतमबुद्ध नगर जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई शुरू की थी। इसका योगी सरकार ने भी खूब प्रचार प्रसार किया। जिससे कि लोगों में एक बेहतर संदेश जा सके। प्रशासन ने एक्शन लेते हुए गौतमबुद्ध नगर के 8 प्राइवेट अस्पतालों को मरीजों से इलाज के नाम पर ज्यादा राशि वसूलने का दोषी पाया। जिसके बाद कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने मरीजों को उक्त अस्पतालों से पैसे वापस कराए हैं। हालांकि इलाज के नाम पर सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अब बात करते हैं अमेरिका की। एक मरीज की कोविड-19 के कारण हालत काफी खराब हो गयी थी। मीडिया में आई खबर के मुताबिक माइकल फ्लोर बीमारी की वजह से इतने कमजोर हो गए थे कि उनकी पत्नी और बच्चे भी उनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ चुके थे।
62 दिन अस्पताल में भर्ती रहे मरीज के संबंध में सिएटल टाइम्स की खबर के मुताबिक फ्लोर हालांकि ईशाक स्थित स्वीडिश मेडिकल सेंटर में इलाज के बाद ठीक हो गए । उन्होंने बताया कि उनके इलाज के एवज में 11 लाख डॉलर का बिल दिया गया है। उल्लेखनीय है कि फ्लोर ने स्वीडिश मेडिकल सेंटर में 62 दिनों तक कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ी और अस्पताल में सबसे लंबे समय तक इलाज कराने वाले मरीज हैं।अमेरिकी संसद के पहल के बाद उन्हें आखिकार भुगतान नहीं करना पड़ा।
अखबार के मुताबिक फ्लोर के पास स्वास्थ्य बीमा था, जिसमें छह हजार डॉलर की कटौती के बाद सामान्य तौर पर सभी खर्चे बीमित होने का प्रावधान है। कांग्रेस (संसद) ने कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए विशेष कानून लागू किया है । जिसके चलते फ्लोर को कोई भुगतान नहीं करना पड़ा। फ्लोर ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण को मात देने से वह स्वयं चकित हैं।
खास बात है कि निजीकरण की वकालत करने वाले दोनों देश में अलग-अलग हालात देखने को मिले। अमेरिकी संसद ने ऐसे सवाल पर अपनी जवाबदेही दिखाई। जबकि भारत सरकार द्वारा ऐसे ही मामले में अब तक चुप्पी दिखी है। खास बात यह है कि अमेरिकी मरीज के इलाज का बिल इससे तकरीबन आठ गुणा अधिक था। ऐसी परिस्थिति में कहा जा सकता है देश में समान्य मरीजों के उपचार के लिए अब भी कोई ठोस इंतजाम नजर नहीं आ रहे हैं।
चिकित्सक डा. डीके पांडेय कहते हैं कि ऐसे मे कोरोना संक्रमण के मामले में तो स्थिति और खराब हो जाती है। सरकार को जनहित में ऐसे मामलों में संवेदनशील रवैया अपनाते हुए कोई कानून लाना चाहिए। इसमें विपक्ष को भी सरकार पर दबाव बनाने के लिए रचनात्मक भूमिका निभानी होगी।