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जनज्वार विशेष

कभी परिवार चलाने के लिए अखबार बेचा करते थे एपीजे अब्दुल कलाम और एक दिन बन गये भारत के राष्ट्रपति

Janjwar Desk
27 July 2023 7:22 AM GMT
कभी परिवार चलाने के लिए अखबार बेचा करते थे एपीजे अब्दुल कलाम और एक दिन बन गये भारत के राष्ट्रपति
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APJ Abdul Kalam death anniversary : कलाम की हायर स्टडी में एडमिशन के लिए 1 हजार रुपये की जरूरत थी, जो उस वक्त बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। इसके लिए उनकी बड़ी बहन जोहरा ने अपने गहने गिरवी रख दिए थे। और पैसों का इंतजाम किया था, उस दिन कलाम ने प्रण किया कि वह अपनी मेहनत के बल पर अपनी बहन के गहने छुड़ाएंगे...

APJ Abdul Kalam death anniversary : कैसे एक आम व्यक्ति अपने सपनों के जुनून और मेहनत के बल पर महान बन सकता है। वो सफलता की उन ऊंचाइयों को छू सकता है, जहां पहुंचने के लिए लोग सिर्फ ख्वाब देखते रह जाते हैं। इसके जीते जागते मिसाल थे डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम। डॉ. कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। 15 अक्टूबर 1931 को इनका जन्म रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव के मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था।

माता का नाम आशीयम्मा था, जो की हाउसवाइफ थीं। पिता का नाम जैनुलअब्दीन था। पिता नाव किराए पर देने व बेचने का काम करते थे। अब्दुल कलाम अपनी एक बहन व चार भाइयों में सबसे छोटे थे। कलाम के पिता पढ़े-लिखे नहीं थे। बेशक वो अनपढ़ थे लेकिन विचार आम सोच से कहीं ऊपर थी। वो उच्च विचारों वाले थे। और यही वजह थी कि खुद अनपढ़ होकर भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहते थे।

कलाम को मिले थे बचपन में 3 मंत्र

कलाम का बचपन आर्थिक अभावों में बीता। उन्होंने परिवार को आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए अखबार बेचने का भी काम किया था। कलाम की प्रारंभिक शिक्षा श्वार्ज हायर सेकेंडरी स्कूल (Schwartz higher secondary school) रामनाथपुरम से पूरी हुई। वहां पर वह अपने शिक्षक अय्यादुरई सोलोमन से प्रभावित थे। उनके शिक्षक ने सफलता के 3 मूल मंत्र उन्हें बताए थे। ख्वाहिश, उम्मीद और यकीन। यही वो तीन मंत्र थे जिसके सहारे अब्दुल कलाम ने ना सिर्फ उड़ी ऊंचान भरी बल्कि जिंदगी के आख़िरी पड़ाव तक भी उसी पर कायम रहे थे।

एडमिशन के लिए 1000 रुपये नहीं थे, तो बहन ने गहने रखे गिरवी

उनके शिक्षक का मानना था कि सफलता के लिए इन तीन ताकतों पर काबू होना आवश्यक है। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद डॉ कलाम ने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से ग्रेजुएशन (बीएससी) की डिग्री ली। ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का एंट्रेंस एग्जाम पास कर लिया। लेकिन एडमिशन के लिए 1 हजार रुपये की जरूरत थी। जो उस वक्त बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। इसके लिए उनकी बड़ी बहन जोहरा ने अपने गहने गिरवी रख दिए थे। और पैसों का इंतजाम किया था। उस दिन कलाम ने प्रण किया कि वह अपनी मेहनत के बल पर अपनी बहन के गहने छुड़ाएंगे।

3 दिन में बनाना था रॉकेट, 24 घंटे में ही बना दिया

3 वर्ष का एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का कोर्स करने के बाद एक प्रोजेक्ट पर काम करने लगे थे। उनके प्रोजेक्ट इंचार्ज ने उन्हें 3 दिन के अंदर रॉकेट का मॉडल पूरा करके देने के लिए कहा था। साथ में ये भी कहा था कि अगर ये प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ तो स्कॉलरशिप रद्द कर दी जाएगी। फिर क्या था। वैसे तो ऐसे तमाम मौके उनकी जिंदगी में आए थे जो बेहद ही चुनौती भरे थे। लिहाजा, ये चुनौती उनकी पुरानी चुनौती के सामने कुछ खास बड़ी नहीं थी लेकिन आसान भी नहीं थी।

इसलिए कलाम ने चुनौती स्वीकार की और जुट गए जुनून से उसे पूरा करने में। फिर क्या भूख और क्या प्यास। क्या सोना और क्या जगना। 3 दिन के लक्ष्य को उन्होंने मात्र 24 घंटे में ही पूरा कर लिया। और फिर राकेट का मॉडल तैयार हो गया। उनके प्रोजेक्ट अध्यक्ष को जब इस मॉडल के बारे में पता चला और उन्होंने रॉकेट को देखा तो पहले तो यकीन ही नहीं हुआ। ऐसे रॉकेट को सिर्फ 24 घंटे में कैसे तैयार किया जा सकता है। लेकिन आंखों के सामने उसे देखकर वो भी आश्चर्यचकित रह गए थे।

पहली बार DRDO में शुरू की नौकरी

एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद कलाम ने एयर फोर्स और मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस दोनों में अप्लाई किया। दिल्ली में डिफेंस मिनिस्ट्री में उनका इंटरव्यू अच्छा हुआ था। फिर वो एयर फोर्स के इंटरव्यू के लिए देहरादून गए, जहां 25 कैंडिडेट्स में से उन्हें 9वां स्थान मिला था, जबकि जरूरत थी सिर्फ 8 कैंडिडेट की ही। इस तरह से कलाम वापस दिल्ली आ गए। यहां उन्हें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO ) में 250 रुपये प्रति माह की सैलरी पर सीनियर साइंटिफिक असिस्टेंट के पद पर नियुक्त किया गया।

डॉ. कलाम की वैज्ञानिक उपलब्धियां

1962 में कलाम ने अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) से जुड़कर प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पद पर रहते हुए, भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह SLV- ।।। लॉन्च किया। जो कि भारत की विकासशील देश के रूप में विश्व में बड़ी सफलता थी।

1980 में भारत इंटरनेशनल स्पेस क्लब का सदस्य बना। कलाम की टीम द्वारा रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। कलाम ने भारत के लिए अग्नि, त्रिशूल और पृथ्वी जैसी मिसाइल बनाई और पूरी दुनिया में भारत के मिसाइल मैन के नाम से ख्याति मिली।

1998 में कलाम ने पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बना।

डॉ. कलाम को राष्ट्रपति पद

डॉ कलाम राष्ट्रपति बनने के पहले साल 1992 से 1999 तक प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और DRDO के सेक्रेटरी थे। बीजेपी कार्यकाल में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया। उन्हें 90% से भी ज्यादा मतों से जीत मिली। 25 जुलाई 2002 को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और 25 जुलाई 2007 को सफलतापूर्वक कार्यकाल अपना पूरा किया। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

किताबें और उपलब्धियां

इंडिया 2020, इगनाइटेड माइंड्स, मिशन इंडिया, द लुमिनस स्पार्क इंस्पायरिंग थॉट्स जैसी दुनिया की सबसे चर्चित किताबें डॉक्टर कलाम ने लिखीं। देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए, व्हाट कैन आई गिव (What can I give?) के नाम से युवाओं के लिए एक मिशन शुरू किया।

उन्हें बच्चों और विद्यार्थियों से विशेष लगाव था इसलिए 15 अक्टूबर उनका जन्म दिवस विश्व छात्र दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफिस स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी में चांसलर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। जेजेएस यूनिवर्सिटी मैसूर, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, अन्ना यूनिवर्सिटी चेन्नई, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद और इंदौर में बतौर गेस्ट प्रोफेसर के रूप में सेवाएं प्रदान कीं। डॉ कलाम को भारत और विदेशों के 40 से भी अधिक विश्वविद्यालयों व संस्थानों, द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।

इसके अलावा साल 1981 में उन्हें पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 1997 में उन्हें भारत रत्न का सम्मान मिला। भारत रत्न यानी देश के सर्वोच्च नागरिक का सम्मान। डॉ. कलाम की आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर पहले अंग्रेजी में और फिर 13 भाषाओं में प्रकाशित हुई। डॉ कलाम की टीम ने भारत का पहला रॉकेट एसएलवी-3 बनाया। पोखरण का द्वितीय सफल परमाणु परीक्षण किया। उन्होंने डीआरडीओ और इसरो का भी नेतृत्व किया। भारत को अग्नि पृथ्वी और त्रिशूल जैसी मिसाइलें दी।

कलाम की धर्मनिरपेक्षता

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम धर्मनिरपेक्ष शख्सियत थे। वह सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे। एक समय सोशल मीडिया पर न्यूज़पेपर की एक कटिंग शेयर हुई थी। कटिंग में लिखा हुआ था कि मदरसे-कुरान में लिखी हुई बातों को गलत तरीके से पेश करके धार्मिक असहिष्णुता बढ़ा रहे हैं। और उन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

डॉ कलाम के परिवार से संपर्क करने पर पता चला कि वे सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे। लेकिन वह किसी भी धर्म की रूढ़ियों को कभी स्वीकार नहीं करते थे। फेसबुक यूजर jyothsana Lath ने इस पोस्ट को शेयर किया था। इस पोस्ट को 2200 लाइक और 14000 से भी ज्यादा शेयर मिले थे।

कलाम का निधन यानी एक युग का अंत

27 जुलाई 2015 को आईआईटी गुवाहाटी शिलांग में व्याख्यान देते हुए कार्डियक अरेस्ट की वजह से उनका देहांत हो गया था। उनके निधन पर पूरा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई थी। मीडिया में मिसाइल मैन के नहीं रहने पर लगातार दो दिनों तक खबरें आती रहीं। कई अखबारों में तो पूरा-पूरा पेज ही उनकी यादों से भरा पड़ा था। ख़ासतौर पर उनकी बातों को अखबार के पन्नों पर प्रमुखता से जगह दी गई।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की चर्चित कोट्स

खुश रहने का बस एक ही मंत्र है, उम्मीद बस खुद से रखो, किसी और इंसान से नहीं।

सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखें, सपने वो हैं जो आपको नींद ही नहीं आने दे.

केवल ताकत ही ताकत का सम्मान करती है।

इंतजार करने वाले को उतना ही मिलता हैं, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं।

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