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Congress Party News : कांग्रेस को पूर्णकालिक नेताओं की जरूरत, पार्टी की अदूरदर्शिता ने इसे जनता से कर दिया है अलग-थलग
उमाकांत लखेड़ा की टिप्प्णी
Congress Party News : बीते विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में कांग्रेस (Congress) की हार कोई नई चीज नहीं है। कांग्रेस जिस रास्ते बीते सालों में चल रही है वैसे में इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती है। विचारधारा राजनीतिक दलों या राजनीति करने का मूलमंत्र होता है। किसी भी राजनीतिक दल को चलाने के लिए यह जरूरी है पर यदि किसी पार्टी ने समय के अनुसार उसमें समायोजन नहीं किया। उसमें लोचकता नहीं ला पाए तो वो मर जाती है। कांग्रेस की जो विचारधारा है उसने आजादी के बाद से देश की विविधता में एकता को बचा कर रखा कांग्रेस जो कर पायी उसका उसको फायदा हुआ। पर यही कांग्रेस देश की बदलती चुनौतियों के अनुरुप अपने-आपको ढालने में नाकाम रही है। कांग्रेस पार्टी आज कमजोर इसलिए हो गयी क्योंकि कांग्रेस में परिवारवाद का वर्चस्व हो गया। इससे कांग्रेस से लोग धीरे-धीरे टूटते चले गए। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने कहा था कि मैं एक नई कांग्रेस बनाना चाहता हूं। पर वह आज तक नहीं बन पायी। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि किसने आपको नई कांग्रेस बनाने से रोका था। सच्चाई तो यही है कि कांग्रेस की नाव आप समुद्र में ले जा रहे थे उसमें थोड़ा संकट आया और आप जहाज से कूदकर भाग गए।
एक सवाल यह भी है कि जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया तो फिर कांग्रेस के महत्पवूर्ण फैसलों पर किसने मुहर लगायी। जब किसी राज्य में कांग्रेस पर संकट आया तो फिर जब राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं ही नहीं तो फिर उनके साथ उन प्रदेशों के नेताओं की दो-दो, तीन-तहन घंटे की बैठक क्यों हुई। असल में यह गुड़ खाओ गुलगुले से परहेज जैसी स्थिति है। यह स्थिति समझ से परे हैं। लोगों का यह भी विचार है कि कांग्रेस पार्टी की समस्या परिवार है। पर मैं यह मानता हूं कि कांग्रेस पार्टी की समस्या परिवार नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी के समाने आज बहुआयामी समस्या हैं। आप उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में बिना तैयारी के मैदान में उतर गए। बूथ पर आपके वर्कर नहीं है। चाहे कानपुर हो या फरीदाबाद, पीलीभीत या गाजियाबाद हर जगह प्रियंका गांधी की रैलियों में भीड़ देखकर आपने समझ लिया कि ये भीड़ हमारा वोटर है। पर फिर भी आपका वोट प्रतिशत छह प्रतिशत से दो-ढाई प्रतिशत पर पहुंच गया।
इस अदूरदर्शिता से जो शुन्यता पैदा हुई है वह कांग्रेस पार्टी के बारे में यही बताती है कि कांग्रेस देश का नब्ज पहचानने में विफल रही है। क्या आप इसे पहचानने में इतने असमर्थ हो गए। यदि आप नब्ज नहीं पहचानते तो क्यों आपने इतना बड़ा जोखिम उठाया। यदि भाजपा (BJP) जैसी मजबूत पार्टी से लड़ाई लड़ रहे थे तो क्यों नहीं कांग्रेस पार्टी ने समान विचार वाले दलों के साथ साझेदारी की। इस बार के चुनाव परिणामों में हमने देखा कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) 2017 के मुकाबले मजबूरी के साथ उभरी। प्रयोग के तौर पर कांग्रेस पार्टी को भी सबको साथ लेकर चलने का जोखिम उठाकर भाजपा को आपको वन टूवन फाइट देने की कोशिश करनी चाहिए थी। ऐसे में यूपी की संसदीय राजनीति में आपका अस्तित्व बचा रहता। पर पार्टी ऐसा करने में बुरी तरह से विफल रही।
अब 2024 के लोकसभा चुनावों (General Elections) के पहले मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh), छत्तीसगढ़ (Chattishgarh), राजस्थान (Rajasthan) गुजरात (Gujrat) और हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में चुनाव होने हैं। वहां सीधे तौर पर भाजपा का कांग्रेस से मुकाबला है। इस परिस्थिति में जो वर्तमान स्थिति बनी है यह कांग्रेस पार्टी के लिए निराशाजनक है। इस झंझावत से निपटना कांग्रेस के लिए चुनौती है। इस बिखराव की वजह से यूपी में पांच छह युवा नेता छोड़कर चले गए। ज्यातिरादित्य सिंधिया और जतिन प्रसाद जैसे बड़े चेहरों को भी कांग्रेस पार्टी अपने साथ नहीं रख पायी। ये जो सबकी कांग्रेस बनाने की बात हो रही है यह भी कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाने का कोई हल नहीं है। जो बनाने की कोशिश कर रहे हैं वे अपने बल पर पांच हजार वोट भी नहीं ला पाएंगें क्योंकि इन नेताओं का कोई जमीनी आधार नही हैं। ऐसे में इन नेताओं का कांग्रेस पार्टी से नाराजगी का कोई कारण ही है। राजनीति में सबसे जरूरी है बात है संवाद। जनता से कनेक्ट। लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े मुदृदे जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार पर सवाल उठाने की जरुरत पर कांग्रेस पार्टी इन सब चीजों में भाजपा से बहुत पीछे रह गयी है। सत्ताधारी दल की ओर से जो रेवड़िया बांटकर कहा गया कि आप लोगों ने हमारा नमक खाया है। उसका भी प्रतिकार कांग्रेस सही ढंग से नहीं कर पायी। गरीबों को मुफ्त अनाज कांग्रेस पार्टी के 20 सूत्री कार्यक्रम हिस्सा था।
हालांकि कांग्रेस पार्टी ने कभी किसी को नहीं कहा कि हमारा नमक खाया आपने। पर अब कांग्रेस ऐसे मसलों पर भी अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पा रही है। कांग्रेस जनता से कटी हुई है ये वैसा ही है जैसे जंगल में मोर नाचा किसने देखा। यही बात अखिलेश पर भी लागू होती है। आप यूपी की इतनी बड़ी पार्टी हैं। अकेले दम पर सत्ता में रह चुके हैं पर वे भी भाजपा की गलतियों से लाभ नहीं उठा पाए। सपा के लोग कहीं किसान आंदोलन में नजर नहीं आए। गंगा में तैरती लाशों के दौरान भी विपक्षी दलों के वालेंटियर गायब थे। नेताओं ने सिर्फ ट्विटर पर बयान दिया। पर ये नेता ये भूल गए कि ये जो ट्विटर है वह यूपी में जहां 30 से 40 प्रतिशत लोगों के पास भोजन की भी व्यवथा नहीं हैं उन लोगों के बीच अपनी पहुंच आज भी नहीं रखता है।
पहले जब कांग्रेस ताकतवर थी। उस समय नेता एक्टिव रहते थे। उस दौर में जनसंघ था, बिखड़े हुए समाजवादी नेता थे, बिखड़े हुए वामपंथी थे। पर फिलहाल जो सामने नरेद्र मोदी की बीजेपी है वह संसाधन से लेकर रणनीति हर मामले में कांग्रेस पर भारी पड़ती है। हमने देखा कि चुनाव में जीत के अगले ही दिन प्रधानमंत्री गुजरात में रोडशो कर रहे थे। कांग्रेस इस तरह से एक्टिव क्यों नहीं हो पा रही है। जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ा था उस समय कांग्रेस पार्टी में यह तय हुआ था कि एक चिंतन शिविर होगा। जिसमें पार्टी की समस्याएं दूर की जाएंगी। वो चिंतन शिविर आज तक नहीं हुआ। कांग्रेस की घड़ी ढाई साल पीछे चल रही है। जी 23 नेता कुछ मुद्दे उठा रहे हैं। वे पार्टी के खिलाफ प्रचार करने नहीं जा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी है कि वे सभी नाराज नेताओं को साथ में बिठाए और बातचीत करे। पार्टी को सक्रिय करने की जरूरत है। वर्तमान सरकार की नाकामियों की आप सही ढंग से काट निकाले जाने की जरूरत है।
कांग्रेस की जमीनी हकी यह है कि यह पार्टी जनता से डिस्कनेक्ट है। इसके संगठन पर ध्यान नहीं दिया गया। कार्यकर्ताओं को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया। प्रियंका गांधी का एक बयान जिसमें उन्होंने कहा कि जो हमें वोट दे सकता है वो हमें वोट दे और बाकी समाजवादी पार्टी को वोट दे दें। प्रियंका दमखम से बाजार में उतरी पर इन बयानों में पॉलिटकल समझदारी नहीं दिखी। कांग्रेस के पास ना कोई रणनीति है, ना कोई तैयारी है, ना कोई कैडर है, ना बूथ मैनेजमेंट हैं। ना ही कांग्रेस के पास वो साधन है जो नरेंद्र मोदी की भाजपा के पास है। कांग्रेस के वर्तमान नेता पार्टटाइमर नेताओं की तरह काम करते दिखते हैं।
आज की भाजपा ने राजनीति को संस्थागत कर दिया है। धर्म और राजनीति का उन्होंने ऐसा सामंजस्य स्थापित कर दिया है कि आप उससे बाहर निकल ही नहीं सकते हैं। भारत के संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि आप धर्म या जाति के आधार पर पार्टी बनाएं और राजनीति करें। पर वर्तमान में सत्ताधारी पार्टियां ऐसा कर रही हैं। जहां आप संविधान के अनुसार काम नहीं कर सकते वहां ईवीएम कूड़े के ढेर में मिल रही है। ईवीएम मशीने रिटर्निंग अफसरों के घर में मिल रही है। पर कांग्रेस और विपक्षी दलों की विडंबना यह है कि वे सत्ताधारी दल की गंभीर गलतियों पर भी आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। कांग्रेस को पूर्णकालिक नेताओं की जरूरत है। बिना उसके जनसमर्थन हासिल करना तो दूर की बात है भाजपा का मुकाबला ही नहीं कर सकती है। ऐसे ही चलता रहा तो कांग्रेस पार्टी एक दिन इतिहास बन जाएगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब (Press Club) के अध्यक्ष हैं।