- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- देश में लोकतंत्र बचाने...
देश में लोकतंत्र बचाने वाले देशद्रोही और लोकतंत्र की सरेआम हत्या करने वालों को देशभक्त का तमगा
भारत में तेजी से हो रहा प्रजातंत्र का खात्मा
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। देश की सरकार शायद जय श्री राम के जयकारे के बीच भगवा कपड़ों में इमरजेंसी बैठक कर रही होगी – 6 वर्ष से भी अधिक समय तक लगातार लोकतंत्र को नष्ट करने की कड़ी मेहनत के बाद भी अभी देश सिर्फ आंशिक लोकतंत्र तक ही पंहुच पाया है। सरकार व्यवस्थाओं को नष्ट करने में या बेचने में कभी असफल नहीं होती, पर लोकतंत्र तमाम कोशिशों के बाद भी ख़त्म नहीं हुआ है, यही सरकार की शायद सबसे बड़ी असफलता है।
कितने जतन किये – नोटबंदी की, जीएसटी लागू किया, जम्मू और कश्मीर को तोड़ कर सेना के हवाले कर दिया, हरेक राज्य में विपक्षी विधायक खरीदे, सारे संवैधानिक संस्थाओं को पालतू बना लिया, न्यायपालिका की आँखे बंद कर दीं, मीडिया को सरकारी भोपू बना दिया, दंगे करवाए, मानवाधिकार का हनन लगातार किया, अंग्रेजों से अधिक राजद्रोही पैदा कर दिए, पुलिस को अपराधियों को पकड़ने के बदले सरकारी नीतियों के विरोधियों को पकड़ने का ठेका दे दिया, आन्दोलनों को कुचला और भी बहुत कुछ किया – पर आश्चर्य है की लोकतंत्र को कुचलने में सफलता अभी तक नहीं मिली। अब तो सरकार को नए सिरे से इस असफलता का विश्लेषण करना पड़ेगा।
3 मार्च 2021 को अमेरिका के वाशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस ने वर्ष 2020 की वार्षिक रिपोर्ट "डेमोक्रेसी अंडर सीज" के नाम से प्रकाशित किया है। इसके अनुसार भारत, जो वर्ष 2019 तक लोकतंत्र था, अब कुल 67 अंक के साथ आंशिक लोकतंत्र है। देश को जानने वाले, जिनका मस्तिष्क अभी तक गलत को गलत ही समझता है, इस आंशिक लोकतंत्र के तमगे से निश्चित तौर पर चकित नहीं हुए होंगे।
आश्चर्य तो यह है कि अभी तक दुनिया हमें लोकतंत्र ही समझ रही है। पिछले वर्ष हमारा देश 71 अंकों के साथ लोकतंत्र था। देश के लोकतंत्र को चार अंकों का नुकसान कट्टरपंथी राष्ट्रवादी सोच, मुस्लिमों के प्रति घृणा फैलाने, मानवाधिकार हनन, अभिव्यक्ति की आजादी और आन्दोलनों को बर्बर तरीके से कुचलने के कारण उठाना पड़ा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में भारत लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विश्वगुरु बनाने का सपना छोड़ चुका है और मानवाधिकार और लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों की तिलांजलि देकर संकीर्ण राष्ट्रवाद की तरफ बढ़ गया है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार भारत को आंशिक लोकतंत्र का तमगा देना इस रिपोर्ट की सबसे ख़ास बात है।
यह पहला मौका या रिपोर्ट नहीं है, जब देश के लोकतंत्र पर प्रहार किया गया है। राज्यसभा के हाल के भाषण में प्रधानमंत्री जी ने लोकतंत्र पर खूब प्रवचन दिए थे, कहा भारत का लोकतंत्र तो दुनिया के लोकतंत्र की माँ है। इस भाषण के ठीक दो दिनों पहले ही द इकोनॉमिस्ट ग्रुप के इकोनॉमिक्स इंटेलिजेंस यूनिट ने डेमोक्रेसी इंडेक्स 2020 में दुनिया के 167 देशों के इंडेक्स में प्रधानमंत्री जी के लोकतंत्र की माँ को 53वें स्थान पर रखा है और इसे "दोषयुक्त लोकतंत्र" वाले देशों में वर्गीकृत किया है।
वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार को जब जनता ने बहाल किया था तब इस इंडेक्स में भारत 27वें स्थान पर था। इसके बाद से प्रधानमंत्री जी ने लोकतंत्र का खूब डंका पीटा और हम गिरते हुए 53वें स्थान पर पहुँच गए। वर्ष 2014 में हमारा देश इस इंडेक्स में अब तक के सबसे ऊंचे स्थान पर था और इस वर्ष यह सबसे निचले स्थान पर है।
दरअसल वर्ष 2014 के बाद से देश में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी गई है। सत्ताधारी और उनके समर्थक कुछ भी करने को आजाद हैं – वे अफवाह फैला सकते हैं, हिंसा फैला सकते हैं, ह्त्या कर सकते हैं और दंगें भी करा सकते हैं। दूसरी तरफ, सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले चुटकियों में देशद्रोही ठहराए जा सकते हैं, जेल में बंद किये जा सकते हैं या फिर मारे जा सकते हैं। मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और अधिकतर न्यायालय सरकार के विरोध की हर आवाज को कुचलने में व्यस्त हैं, इसके बाद भी लोकतंत्र से सम्बंधित इंडेक्स में 167 देशों में हम 167वें स्थान पर नहीं हैं तो यह चमत्कार ही है।
देश के लोकतंत्र का उदाहरण इन दिनों उफान पर है। दिल्ली में किसान आन्दोलन कर रहे हैं और पश्चिम बंगाल में कुछ महीनों के भीतर चुनाव होने वाले हैं। दिल्ली में शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने के लिए दिल्ली की सीमाएं भारत-पाकिस्तान की सीमा से भी अधिक सुरक्षित कर दी गईं हैं, दूसरी तरफ बिना सरकारी इजाजत के और मामला न्यायालय में होने के बाद भी केंद्र में सत्ता में बैठी पार्टी बड़े तामझाम से रथयात्रा निकाल रही हैं, रोड शो कर रही है और हरेक तरीके से हिंसा फैलाने में व्यस्त है।
लोकतंत्र भी शर्म से मर जाता होगा जब बीजेपी के नेता बताते हैं कि बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, इसे रथयात्रा की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। मतलब साफ़ है, बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए सारे नियम-क़ानून से और देश से भी ऊपर है। देश इस समय ऐसी सरकार के हाथों में है जो अपने विरोधियों को जेल में डालने के लिए भीमा-कोरगांव काण्ड करा सकती है और दंगे भी करा सकती है। इसके बाद भी लोकतंत्र पर बेशर्मी से भाषण भी सुना सकती है।
दुनियाभर में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी सरकारें देश पर अपना घोषित-अघोषित एजेंडा थोपती हैं, देश में एक नए किस्म का उन्माद पैदा करती हैं, विरोधियों का दमन करती हैं, ऐसा इस दौर में दुनिया के बहुत देशों में सरकारें कर रही हैं। पर, भारत दुनिया का अकेला तथाकथित लोकतंत्र है, जहां इन सबके साथ ही अपराधी, आतंकवादी, प्रशासन, सरकार, मीडिया और पुलिस का चेहरा एक ही हो गया है। अब किसी के चहरे पर नकाब नहीं है और यह पता करना कठिन है कि इनमें से सबसे दुर्दांत या खतरनाक कौन है।
पुलिस जिसके साथ अन्याय होता है उसी को धमकाती है, उन्ही का एनकाउंटर करती है, उन्हीं को जेल में बंद करती है और अपराधियों और आतंकवादियों को बचाती है, उनकी रक्षा करती है। फिर प्रशासन और सरकारें उन अपराधी पुलिस वालों को बचाती हैं और उन्हें इनाम भी देती हैं। पुलिस अपराधियों और आतंकवादियों को साफ़ बचाकर प्रशासन और सरकार के सहयोग से जनता के उठते विरोध के स्वर को कभी रास्ता रोककर, कभी महामारी का नाम लेकर, कभी जेल में बंद कर, कभी चरित्र हनन कर, कभी गोलियां चलाकर तो कभी चौराहों पर पोस्टर लगाकर दबाती है।
फिर मीडिया का काम वास्तविक खबरें दबाना, फ़ालतू खबरें महीनों चलाकर जनता का ध्यान भटकाना या फिर वास्तविक पीड़ितों का चरित्र हनन करना और अपराधियों और आतंकवादियों को सच्चे राष्ट्रभक्त घोषित करना रह जाता है। भारतीय मीडिया इस काम में निपुण है, वह समाचार कभी नहीं दिखाती बल्कि सरकार की तरह आपदा में अवसर तलाशता है और कचरे को सुनहरे पैकिंग में डाल कर जनता को सुनहरा भविष्य दिखाता है।
इस कट्टर दक्षिणपंथी सरकार को मीडिया का अपराध और भौंडापन अभिव्यक्ति की आजादी दिखती है और विरोध के स्वर में यह आजादी नदारद हो जाती है और फिर देशद्रोह, षड्यंत्र, टुकडे-टुकडे गैंग का सदस्य और अर्बन नक्सल नजर आने लगता है।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस सरकार को और बीजेपी वाली मानसिकता वाले सभी लोगों को पूरा देश एक बड़ा से कैनवास नजर आता है, जिस पर हरेक समय नए नारे लिखे जाते हैं, और इन्ही नारों से न्यू इंडिया की बुनियाद रखी जा रही है। एक समय इस कैनवास पर बेटी बचाओ, बेटी पढाओ भी लिखा गया था। नारा तो सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया, और धरातल पर महिलाओं पर अत्याचार और अपराध में मामले पहले से अधिक तेज होते चले गए। समाचार चैनलों पर सरकारी नुमाइंदे बलात्कार को छोटी घटना, विदेशों में भारत की छवि खराब करने की साजिश और दुर्घटना बताते रहे।
देश से भी अपने आप को बड़ा समझाने वाले कुछ लोग देश को गूढ़ ज्ञान देने लगे, भारत में रेप नहीं होता बल्कि इंडिया में होता है। बीजेपी के एक प्रवक्ता किसी समाचार चैनल पर बैठकर रात में परिवार वालों को घर में बंद कर पुलिस द्वारा लाश जलाने की घटना को दुर्घटना बता रहे थे। यह केवल उस प्रवक्ता की वीभत्स और कुत्सित सोच नहीं है बल्कि पूरे पार्टी और सरकार की ही मानसिकता है।
इस वर्ष के डेमोक्रेसी इंडेक्स के अनुसार दुनियाभर में लोकतंत्र अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है। इन 167 देशों में से महज 23 देशों में लोकतंत्र जिन्दा है और स्वस्थ है। भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, फ्रांस और बेल्जियम समेत कुल 52 देशों में बीमार लोकतंत्र है। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की केवल 20 प्रतिशत आबादी लोकतंत्र में सांस ले रही है और 38 प्रतिशत आबादी तानाशाही में जी रही है।
अमेरिका ने तो लोकतंत्र को बहाल कर लिया, पर हमारे देश में लोकतंत्र का सरकारी तौर पर खूब माखौल उड़ाया जा रहा है। देश में लोकतंत्र बचाने वाले देशद्रोही करार दिए जा रहे हैं और जो लोकतंत्र की सरेआम हत्या कर रहे हैं वे देशभक्त बताये जा रहे हैं। हमारे देश में एक ऐसा लोकतंत्र है जहां सत्ता में बैठे लोग अपने आप को सरकार नहीं मान रहे, बल्कि देश को अपनी जागीर समझ बैठे हैं।