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जनज्वार विशेष

किसान आंदोलन को कोर्ट में उलझाने की रणनीति पर मोदी सरकार, शाहीनबाग की तरह वार्ताओं में फंसाने की पूरी तैयारी

Janjwar Desk
9 Jan 2021 12:04 PM IST
किसान आंदोलन को कोर्ट में उलझाने की रणनीति पर मोदी सरकार, शाहीनबाग की तरह वार्ताओं में फंसाने की पूरी तैयारी
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शाहीन बाग आंदोलन को कुचलने के लिए मोदी सरकार ने कोर्ट का ही उपयोग किया था और वार्ताओं के नाम पर मुद्दे को लटकाने की साजिश रची थी। एक बार फिर किसान आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस महोदय सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं.....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी

जनज्वार। मोदी सरकार को लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर कोई भरोसा नहीं है। अपने अब तक के कार्यकाल में उसने इस बात को बार.बार साबित किया है। उसने अपनी सुविधा के हिसाब से लोकतंत्र को 'छलतंत्र' में तब्दील कर दिया है। अंबानी-अडानी के सेवक के रूप में सत्ता को हथियाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फर्जी राष्ट्रवाद का मुखौटा लगाकर जहां अंधभक्तों की फौज खड़ी कर ली है, वहीं विरोध में उठने वाली प्रत्येक आवाज को खामोश करने के लिए समूचे तंत्र का इस्तेमाल बर्बरता पूर्वक करते रहे हैं।

देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं में संघ परिवार के पालतू लोगों को बिठाया गया है जो मोदी के आदेश पर कुछ भी करने के लिए तत्पर हैं। चुनाव आयोग, सीबीआई, ईडी आदि का पतन तो शुरू में ही हो गया। अब सुप्रीम कोर्ट के जज भी मोदी के कार सेवक की भूमिका खुलकर निभाने लगे हैं। मोदी जो काम पुलिस और सेना के सहारे नहीं कर सकते, वैसे अन्यायपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।

तीन किसान क़ानूनों के खिलाफ जो ऐतिहासिक किसान आंदोलन चल रहा है, उससे निपटने के लिए मोदी सरकार ने अपने कार सेवक जजों को सुपारी दे दी है। दिल्ली की सीमा पर डेढ़ महीने से जो लाखों किसान आंदोलन कर रहे हैं, उनमें भारी तादाद में महिलाएंए वृद्ध और बच्चे हैं। अगर मोदी उन पर गोलियां बरसाएंगे तो दुनिया भर में नरसंहार के लिए बदनामी होगी।

किसानों की सन्तानें फौज में हैं। जब किसानों की हत्या की जाएगी तो वे विद्रोह कर सकते हैं। देशभर के किसान सड़क पर उतर कर मोदी सरकार के पैरों के नीचे की जमीन खिसका सकते हैं। यही वजह है कि मोदी सरकार किसान नेताओं से इतने दिनों से बातचीत का नाटक कर रही है। वह किसी भी सूरत में अंबानी-अडानी को लाभ पहुंचाने के लिए लाये गए किसान क़ानूनों को वापस नहीं ले सकती। ऐसा करना उसके लिए आत्महत्या करने के समान होगा। अंबानी-अडानी अगर नाराज हो गए तो मोदी सरकार का पतन हो जाएगा।

मोदी सरकार की हालत सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। उसने किसान आंदोलन को कुचलने के लिए तमाम हथकंडों का इस्तेमाल करके देख लिया है। किसानों ने इस्पाती इच्छाशक्ति का परिचय दिया है और दिनों दिन यह आंदोलन अधिक प्रबल होता गया है। अब मोदी ब्रह्मास्त्र के तौर पर सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

शाहीन बाग आंदोलन को कुचलने के लिए मोदी सरकार ने कोर्ट का ही उपयोग किया था और वार्ताओं के नाम पर मुद्दे को लटकाने की साजिश रची थी। एक बार फिर किसान आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस महोदय सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं।

नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्र और किसान यूनियनों के बीच वार्ता शुक्रवार को विफल रही, क्योंकि यूनियनों ने कानूनों को निरस्त करने पर जोर दिया, जबकि सरकार द्वारा 'अन्य विकल्प सुझाने' के लिए कहा गया। दोनों पक्ष 15 जनवरी को फिर से बातचीत के लिए सहमत हुए। इस बीच सभी की निगाहें अब उच्चतम न्यायालय पर हैं जहां याचिकाओं के एक मामले पर सुनवाई 11 जनवरी को होनी है।

यूनियनों के नेताओं ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जाने या दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ एक समिति बनाने के लिए कहा गया।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और राज्य मंत्री सोम प्रकाश, जो खाद्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ किसानों के साथ बातचीत कर रहे हैं, ने कहा कि 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई का संदर्भ बातचीत के दौरान आया।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि किसान समूहों के साथ केंद्र की बातचीत के परिणाम सामने नहीं आए थेए कहा था कि यह केंद्र और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए एक समिति का गठन करेगा और गतिरोध को हल करने की कोशिश करेगा। किसान 26 नवंबर से दिल्ली के द्वार पर डेरा डाले हुए हैं।

दो दिन पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन.न्यायाधीशों की पीठ ने 11 जनवरी को मामले को अदालत में पेश करने के लिए कहा। इससे पहले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दावा किया कि दोनों पक्षों में सहमति बनने की संभावना है।

शुक्रवार को बैठक से बाहर आते हुए तोमर ने कहा, 'आज की चर्चाएं तीन कानूनों से संबंधित थीं, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। सरकार ने बार.बार यूनियनों से कोई अन्य विकल्प सुझाने का अनुरोध किया, लेकिन लंबी चर्चा के बाद भी कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किया गया। इसलिए चर्चा आज स्थगित कर दी गई।'

'वे (किसान नेता) आपस में चर्चा करेंगे। हम आपस में चर्चा भी करेंगे। मुझे उम्मीद है कि हम 15 तारीख को अगली बैठक में इसका समाधान निकाल पाएंगे।'

संवाददाताओं के सवालों के जवाब में तोमर ने कहा कि सरकार ने किसान संघों को सर्वोच्च न्यायालय में मामले को छोड़ने के लिए नहीं कहा था, लेकिन 11 जनवरी की सुनवाई का उल्लेख बातचीत में हुआ।

'हम एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं और हमारे लोकतंत्र में, अगर एक कानून लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित किया जाता है, तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय को स्वाभाविक रूप से विश्लेषण का अधिकार है। नागरिक हो या सरकार, सर्वोच्च न्यायालय के प्रति सबकी प्रतिबद्धता है। इसलिए यह विषय सामने आया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय की है। सरकार उच्चतम न्यायालय के किसी भी निर्णय के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे वह किसी भी दिशा में हो।'

राज्यमंत्री सोम प्रकाश ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 11 जनवरी की सुनवाई का उल्लेख वार्ता के दौरान किया गया था। 'यह चर्चा के दौरान सामने आया, हमने कई चीजों पर चर्चा की। किसान कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े थे।'

अखिल भारतीय किसान सभा के पंजाब प्रांत के महासचिव बलदेव सिंह निहालगढ़ ने वार्ता को 'बहुत निराशाजनक' बताया। उन्होंन कहा, 'मैं सभी आठ बैठकों का हिस्सा रहा हूँ, लेकिन आज की बैठक बहुत निराशाजनक थी। चर्चाएँ बहुत अच्छी तरह से नहीं हुईं। सरकार के पक्ष ने दो सुझाव दिए, सर्वोच्च न्यायालय में जाएं या एक छोटी समिति बनाएं, जिसे हम पहले ही खारिज कर चुके हैं। हम अदालत में नहीं जाएंगे। हमने सरकार से कहा है कि हमारा आंदोलन जारी रहेगा।'

अखिल भारतीय किसान महासंघ के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू ने कहा, 'जैसा कि अपेक्षित थाए आज की बैठक का भी कोई परिणाम नहीं निकला। 4 जनवरी की बैठक में हमें बताया गया कि बातचीत कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया पर शुरू होगी, लेकिन कृषि मंत्री ने हमें फिर से कहा कि कानून बहुत अच्छे हैं और हमें संशोधनों के लिए विचार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का इंतजार करना चाहिए, क्योंकि यह एक संवैधानिक मामला है और किसान भी अपनी मांगों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने कानूनों के लाभों पर बात करना जारी रखा, तो हमने उन्हें बताया कि हम इस विषय पर चर्चा करने के लिए उत्सुक नहीं हैं।'

शुक्रवार 8 जनवरी की विफल वार्ता से यही संकेत मिल रहा है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के अपने कार सेवक को गुप्त आदेश दे दिया है, लेकिन किसान संगठन मोदी सरकार की तमाम धूर्तताओं और साज़िशों को समझते हैं। इस बार तय है कि किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिश करने पर सुप्रीम कोर्ट अपनी प्रासंगिकता और इज्जत को पूरी तरह गंवा देगा। चूंकि देश और संविधान से बड़ा न तो कोई नेता होता है न ही बिका हुआ सुप्रीम कोर्ट।

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