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'किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए सांप्रदायिक रंग देना चाहते हैं मोदी'
महाराष्ट्र किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता विजू कृष्णन से अजय प्रकाश की बातचीत
सरकार के साथ कल किसान संगठनों की हुई बातचीत में क्या हल निकला?
सरकार को इतनी आसानी से कोई हल निकालना नहीं है। संगठनों को सरकार ने इसलिए बुला लिया, क्योंकि बातचीत का एक दिखावा करना था और वह मंत्रियों ने कर लिया।
लेकिन सरकार को किसान संगठनों के साथ वार्ता के दिखावे की जरूरत क्यों पड़ी?
बहुत बड़ी जरूरत थी और रहेगी भी। लाखों की संख्या में दिल्ली बॉर्डर के तीन तरफ से किसान डटे हुए हैं। सरकार को उम्मीद नहीं थी कि इस कदर किसान एकजुट होंगे। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये कि किसी तरह की कोई हिंसा वे नहीं कर रहे। 2 महीने से अधिक हो गए आंदोलन को, कहीं कोई ऐसी खबर नहीं आई कि आंदोलन को अराजक कह सकें। किसान लगातार नारों, गानों और आह्वानों के बीच अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण ढंग से बैठे हुए हैं। ऐसे में सरकार पर एक व्यापक दबाव बन रहा है। न चाहते हुए भी पूरे देश से किसान आंदोलन को समर्थन मिल रहा है और वह लागातार बढ़ता व व्यापक होता जा रहा है। किसानों से मंत्रियों के वार्ता की असल मजबूरी यही थी।
आप खुद बड़े किसान नेता हैं, महाराष्ट्र के किसान आंदोलन को आपने नेतृत्व दिया, फिर आंदोलन में क्यों नहीं दिख रहे?
मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए मैं सक्रिय नहीं हूं। मैं लगातार किसान सभा के साथियों के संपर्क में हूं। मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी से जुड़े सभी संगठन पूरे देश भर में दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में 3 दिसंबर को चक्काजाम यानी रास्ता रोको आंदोलन करेंगे। फिलहाल मैं उसी की तैयारी में जुटा हुआ हूं।
लेकिन पीएम मोदी ने कहा है कि जैसे राममंदिर के बनने पर 'इन लोगों' को अविश्वास था, वैसे ही नए किसान विधेयक पर है?
पीएम मोदी और उनके लोग किसान आंदोलन तोड़ने में नाकाम हो चुके हैं, इसलिए वह आंदोलन की धार को कमजोर करने के हर रास्ते अपना रहे हैं। किसान आंदोलन की बात में राम मंदिर को घुसाना आंदोलन को सांप्रदायिकता की तरफ ले जाना है। पहले सरकार, भाजपा और सत्ता से जुड़े लोगों ने कहा पंजाबियों का आंदोलन है, फिर कहा सिखों का है, फिर खालिस्तानियों का और पीएम खुद राममंदिर से इसका उदाहरण देकर साबित कर रहे हैं कि वह अब इस बेजोड़ आंदोलन को सांप्रदायिक रंग देने की फिराक में हैं।
पीएम मोदी बार-बार कहते हैं किसानों को बरगलाया गया है, मीडिया में भी बहस करायी जाती है कि किसान आए हैं या लाए गए हैं?
प्रधानमंत्री क्या किसानों और उनके बच्चों को बिना बुद्धि के समझते हैं। देश का पेट पाल रहा किसान क्या बिना बुद्धि और समझदारी के करोड़ों लोगों के हलक तक अन्न पहुंचा रहा है। क्या प्रधानमंत्री को लगता है कि बुद्धि सिर्फ जमाखोरों और पूंजीपतियों के पास होती है। देश रोज देख रहा है कि सिंघू बॉर्डर पर बैठे किसान कितनी बारीकी से तीनों किसान विधेयकों पर बात कर रहे हैं। पीएम मोदी को अपनी मीडिया के अलावा जनता की मीडिया के भी वीडियो देखने चाहिए तो उन्हें सही जानकारी मिल पाएगी। रही बात मीडिया में होने वाली गलत बहसों की तो जनता उसका खुद जवाब दे रही है और आंदोलन में 'बिकाऊ मीडिया गो बैक' के नारे लग रहे हैं।
आंदोलन में पहुंचे कुछ किसान कह रहे हैं कि सरकार एमएसपी को कानून में शामिल कर ले तो वह आंदोलन खत्म कर देंगे, क्या आपके संगठन की भी यही मांग है?
किसानों के लिए बनाए गए तीनों नए कानून एक ही पैकेज का हिस्सा हैं। इसमें से कोई अलग नहीं है। यह एक साथ ही खत्म करने होंगे। जो किसान या संगठन यह बात कह रहे हैं उन्हें यह जानना चाहिए कि देश में सिर्फ गेहूं और धान की ही एमएसपी मिलती है, वह भी सिर्फ 6 फीसदी किसानों को। और वह व्यवस्था पहले से चली आ रही थी, लेकिन सरकार ने जो कानून बदला और नया बनाया है, वह एमएसपी तक सीमित नहीं है। वह किसानों को गुलाम बनाने, अपने खेत में मजदूर बनाने, बाजार की मनमानी को लादने और कॉरपोरेट को खुली छूट देने जैसे कई घातक प्रावधान हैं, जिसमें एमएसपी सिर्फ कानून का एक पहलू है।