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Sri Adi Shankaracharya: जिस आदि शंकराचार्य की मूर्ति का मोदी ने किया अनावरण, उनका क्या है हिंदू धर्म में योगदान
Sri Adi Shankaracharya: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) शुक्रवार, 5 अक्टूबर को केदारनाथ धाम पहुंचे। उत्तराखंड के मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारनाथ धाम(Kedarnath Dham) में मोदी ने भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने श्री आदि शंकराचार्य की 13 फीट ऊंची और करीब 35 टन की मूर्ति का अनावरण किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने श्री आदि शंकराचार्य के समाधि स्थल का भी लोकार्पण किया जो 2013 की प्राकृतिक आपदा में क्षतिग्रस्त हो गया था। गौरतलब है कि हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य को शंकर भगवान का मानव रूपी अवतार माना जाता है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार किया और हिन्दूओं को एकजुट करने में अहम योगदान निभाया। उन्होंने भारत के चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना भी की। आइए जानते है हिन्दू धर्म में श्री आदि शंकराचार्य के अहम योगदान के बारे में-
शंकर से आदि शंकराचार्य बनने की कहानी
हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार, आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya)का जन्म सन 788 में केरल राज्य के कालड़ी गांव में हुआ था। उनके माता पिता ने सालों तक भगवान शिव की तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें शंकराचार्य के रूप में एक बालक की प्राप्ति हुई। बच्चे को भगवान शिव का आशीर्वाद मानकर माता पिता ने उनका नाम शंकर रखा जो बाद में श्री आदि शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।
अपने माता पिता की तरह ही आदि शंकराचार्य भी भगवान शिव की अराधना में लीन रहते थे। वे अपने उम्र के अन्य बच्चों से काफी अलग थे। मात्र दो साल की उम्र में उन्हें सारे वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत समेत सभी शास्त्रों का पूरा ज्ञान हो गया था। 7 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्याग कर सन्यास ले लिया। लेकिन इसके बाबजूद उन्होंने अपनी मां का दाह संस्कार किया और बेटे होने का फर्ज अदा किया।
17 साल की उम्र में की 100 ग्रंथों की रचना
सन्यास लेने के बाद आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत की यात्रा की। कहा जाता है कि उन्होंने काशी में रहकर जीवन का व्यवहारिक और आध्यात्मिक पक्ष के पीछे की सत्यता को समझा। आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन का अधिंकाश समय उत्तर भारत में बिताया। महज 17 साल की उम्र में उन्होंने 100 से भी ज्यादा ग्रंथों की रचना की। इनमें भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएं बहुत लोकप्रिय हैं।
4 मठों की स्थापना के पीछे एकता का उद्देश्य
8वीं शताब्दी के आध्यात्मिक गुरू आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के विभिन्न मतों में बंटे लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया। उनके द्वारा भारत के चार दिशाओं में स्थापित चार मठों की स्थापना के पीछे का उद्देश्य भारत में हिन्दू धर्म के लोंगों को एक धागे पिरोना था। जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ, उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ, गुजरात के द्वारका में शारदा मठ और उत्तराखंड में ज्योतिर मठ हिन्दूओं के एकता का प्रतिक माना जाता है।
केदारनाथ में शंकराचार्य के प्रतिमा का अनावरण
भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन का अधिकतर समय उत्तर भारत में बिताया। हिमालय की गोद में बसे केदारनाथ मिंदर का उन्होंनें जिर्णोंद्धार किया था। 35 साल की उम्र में शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर के पीछे समाधि ली थी, जहां बाद में उनकी प्रतिमा का निर्माण कराया गया।
साल 2013 में आई प्राकृतिक बाढ़ और त्रासदी में आठवीं शताब्दी के धर्म गुरू की प्रतिमा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसी मूर्ती का अनावरण आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केदारनाथ पहुंचकर किया। श्री आदि शंकराचार्य की मूर्ति के लिए लगभग 130 टन एक विशाल शिला का चयन किया गया था। मूर्ति को तराशने के बाद इसका वजन अब लगभग 35 टन रह गया है।