Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

Narendra Modi : नरेंद्र मोदी से 'ब्रांड मोदी' बनने तक का 20 साल का सफर

Janjwar Desk
7 Oct 2021 4:39 PM GMT
Narendra Modi : नरेंद्र मोदी से ब्रांड मोदी बनने तक का 20 साल का सफर
x

नरेंद्र मोदी का मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक का 2 दशक का सफर

मोदी के आलोचक और समर्थक दोनों एक मत से मानते हैं कि भाजपा में मोदी का कद अब इतना ऊंचा हो गया है कि अब मोदी भाजपा और भाजपा मोदी हो गए हैं....

राजेश पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। लगातार दो बार प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को आज गुरुवार, 7 अक्टूबर को संवैधानिक पद पर रहते हुए 20 साल पूरे हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2001 को वे पहली बार किसी संवैधानिक पद पर आए थे। इस दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल (Keshubhai Patel) से इस्तीफा लेने के बाद नरेंद्र मोदी को अचानक गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि, तब से लेकर अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है और बीजेपी के लिए 'मोदी मैजिक' सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे देश में दिखाई देने लगा।

मोदी का 20 साल का यह संवैधानिक सफर उपलब्धियों और आलोचनाओं का मिलाजुला सफर है। यह उनका नरेंद्र मोदी से 'ब्रांड मोदी' बनने का सफर है। यह वैसा सफर है जिसके दौरान अब कहा जाने लगा है कि मोदी भाजपा और भाजपा मोदी हो गए हैं। कभी स्वर्गीय इंदिरा गांधी के लिए 'इंडिया इज इंदिरा ऐंड इंदिरा इज इंडिया' कहा जाता था।

नरेंद्र मोदी पहली बार संवैधानिक पद पर उस वक्त आए जब तत्कालीन बीजेपी (BJP) नेतृत्व द्वारा केशुभाई पटेल से गुजरात की कमान लेकर उन्हें सौंपी गई। उस वक्त कच्छ और भुज में भूकंप से भारी नुकसान हुआ था और आम समझ थी कि केशुभाई पटेल उससे ठीक तरीके से निपट नहीं पाए।

कहा यह भी जाता है कि सीएम चुने जाने से कुछ देर पहले तक भी नरेंद्र मोदी को यह जानकारी नहीं थी कि उनकी ताजपोशी मुख्यमंत्री के तौर पर की जा रही है। उन्हें अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने फोन किया और उस समय मोदी एक दाह संस्कार के लिए श्मशान में खड़े थे। वह जब अटल बिहारी वाजपेयी से मिले तो बताया गया कि उन्हें गुजरात वापस जाना है। मोदी समझ चुके थे कि उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की तैयारी है।

सिर्फ 18 महीने के लिए सीएम पद मिलने की वजह से अधिकांश लोगों को मानना था कि मोदी गुजरात में जीत दिलवा पाने में शायद कामयाब न रहें। तब तक उसी दौरान दौरान बहुचर्चित गोधरा कांड हुआ। इस कांड में 58 लोग मारे गए थे। इस कांड के बाद गुजरात में हुई हिंसा में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। खुद नरेंद्र मोदी पर दंगे भड़काने तक के आरोप लगे। ये आरोप अब भी विपक्ष यदा-कदा दुहराता रहता है और यह आरोप कुछ इस तरह का है जो किसी की इमेज के साथ ही चस्पां हो जाता है।

हालांकि, तमाम संशयों को पीछे छोड़ते हुए उस वक्त नरेंद्र मोदी एक बार फिर से गुजरात के सीएम बन गए थे। इसके बाद साल 2007 और 2012 में भी मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने गुजरात में प्रचंड जीत दर्ज की।

इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ी और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाया। उस दौरान मोदी '50 साल बनाम 5 साल' की बात कह वोट मांगा करते थे। देश ने नरेंद्र मोदी को पांच साल नहीं बल्कि 10 साल के लिए जनमत दे दिया और वे भाजपा का चेहरा और ब्रांड बनते चले गए। अब हर चुनाव उनके नाम है और हर जीत उनको समर्पित। जैसे मोदी और भाजपा कैसे एक-दूसरे के पर्याय हो गए हैं।

जब मोदी देश के शक्तिशाली नेता के तौर पर उभर रहे थे तब न तो कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी थी और न मीडिया जिसने मोदी पर हमला नहीं किया हो। लेकिन तमाम राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी इन हमलों से और ताकतवर होते चले गए। मोदी के आलोचक और समर्थक दोनों एक मत से मानते हैं कि भाजपा में मोदी का कद अब इतना ऊंचा हो गया है कि अब अक्सर ये कहा जाने लगा है कि मोदी भाजपा और भाजपा मोदी हो गए हैं।

राजनीति के जानकार कहते हैं कि मोदी की ताकत पॉलिटकल मार्केटिंग हैं और इसकी बदौलत वे चुनाव में जीत दिलवाने वाले 'मोदी ब्रांड' हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के सात साल पूरे हो चुके हैं और मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा साल भी 30 मई को पूरा हो चुका है। मोदी जैसे ही केंद्र की सत्ता पर आसीन हुए भाजपा के अच्छे दिन आ गए।

मोदी का चेहरा आगे करके भाजपा एक-एक करके कई राज्यों में चुनाव जीतती गई और उसका सियासी ग्राफ बढ़ता गया। 2014 में मोदी के आने के बाद 2018 तक देश के 21 राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार थी। इस समय भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार वाले प्रदेशों की संख्या 18 है। इससे पहले इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस की 17 राज्यों में सरकार थी।

नरेंद्र मोदी और विवादों के बीच भी खूब रिश्ता है। उनकी शख्शियत से विवाद हमेशा जुड़े रहे। कभी डिग्री को लेकर विवाद उठा तो कभी शादी को लेकर। कभी उनके 'चाय बेचने' के स्वघोषित दावे को लेकर तो कभी हिंदूवादी क्षवि को लेकर।

इसके साथ ही उनकी कई नीतियों की भी खूब आलोचना हुई। नोटबन्दी को लेकर काफी बवाल मचा। उनका दावा था कि इससे काले धन का सिंडिकेट ध्वस्त होगा और आतंकियों की फंडिंग बंद हो जाएगी। हालांकि, देश का विपक्ष अब लगातार सवाल उठाता है कि काले धन के सिंडिकेट और आतंकियों की फंडिंग बंद होने के दावे फेल हो गए। नोटबन्दी के दौरान देश के लोगों को भारी परेशानी हुई, खासकर गरीब तबके के लोगों को। घोषणा के कई दिनों बाद तक बैंकों में लोगों की कतारें लगी रहीं।

एक ऐसा ही आरोप नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन के फैसले को लेकर लगता है। कोरोनाकाल के दौरान अचानक लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद देश की सड़कों पर गरीबों-मजदूरों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था। ये वो लोग थे जो सबकुछ बंद हो जाने के कारण अब अपने घरों को लौटना चाहते थे, लेकिन बस ट्रेन सब बंद हो जाने म कारण बाल बच्चों के साथ सैकड़ों किलोमीटर दूर के पैदल सफर पर निकलना पड़ा था। ये तस्वीरें उस वक्त देश-विदेश की मीडिया की सुर्खियां बनीं थीं।

हालांकि, बीजेपी और सरकार द्वारा उनके कुछ फैसलों को लेकर ये दावे किए जाते हैं कि इन फैसलों ने देश के गरीबों की तकदीर और तदबीर बदल दी। इनमें कथित 'गुजरात मॉडल' को गिनाया जाता है। जनधन खाते को उपलब्धि बताते हुए कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने उन लोगों को बैंकों से जोड़ा जिन्‍होंने पहले इस तरफ रुख नहीं किया था। इसके अलावा उनको इंश्‍योरेंस की सुविधा दी गई और गरीबों को काम शुरू करने के लिए सहज ऋण उपलब्‍ध करवाया। गांव- कस्‍बे को बिजली और सड़कों से जोड़ने और खुले में शौच के खिलाफ मुहिम, गरीबों के घरों में शौचालय बनवाने, हर घर में पीने का साफ पानी पहुंचाने, देश के गरीबों को एलपीजी कनेक्‍शन, किसानों को फसलों के इश्‍योरेंस को उनकी उपलब्धियों में शुमार किया जाता है।

नरेंद्र मोदी की शख्सियत का एक और पहलू है। राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि मोदी चुपचाप काम करने वाले नहीं रहे हैं। वे काम भी पूरी ताकत के साथ करते हैं और उसकी मार्केटिंग भी। राजीनतिक जानकारों के मुताबिक एक नेता को बड़ा बनने के लिए तीन जरूरी बातें हैं, विपरीत परिस्थितियों में खुद को मजबूती से खड़ा करने के लिए पूरी तैयारी, तकनीक और साधन। विपरीत परिस्थितियों में खड़ा रखने के लिए संघ का संगठन उनकी पूरी मदद करता है और अब उनके पास सोशल मीडिया की भी ताकत है और मोदी के पास सत्ता तक पहुंचने की बेहतर राजनीतिक समझ है।

उनका मानना रहा कि मोदी चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। मोदी पॉलिटिक्स का मतलब सिर्फ पावर समझते हैं और पावर के लिए जरूरी है चुनावों में जीत और जीत बेहतर इमेज से बनती है। मोदी ने यह इमेज बना ली है इसलिए वे अक्सर भाजपा को जीत दिला देते हैं।

हालांकि 2019 के दौरान भाजपा को कुछ झटके भी लगे। लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हुए। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में तो पिछली बार से ज्यादा सीटें लाकर आलोचकों का मुंह बंद करा दिया, लेकिन विधानसभा चुनावों में वह सिर्फ अरुणाचल प्रदेश को ही फतह कर पाई। भाजपा को दूसरा बड़ा झटका 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगा जहां भाजपा ने जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से जीत नही सकी।

तीसरा बड़ा झटका भाजपा को इस साल अप्रैल-मई में हुए पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर लगा है जहां उसने सरकार बनाने की उम्मीदें पाली हुई थीं, लेकिन टीएमसी ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हालांकि पार्टी के प्रदर्शन में यहां जबरदस्त उछाल आया और वो 3 से 74 सीटों पर पहुंच गई।

Next Story

विविध