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ट्रंप के टैरिफ से आगरा का फुटवियर उद्योग संकट में, नए टैरिफ के बाद 100 करोड़ के लेदर फुटवियर भी अमेरिका को बेच पाना नहीं होगा संभव !

Janjwar Desk
29 Aug 2025 1:22 PM IST
ट्रंप के टैरिफ से आगरा का फुटवियर उद्योग संकट में, नए टैरिफ के बाद 100 करोड़ के लेदर फुटवियर भी अमेरिका को बेच पाना नहीं होगा संभव !
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आगरा के जूता व्यवसायी कह रहे हैं अगर हमें अमेरिकी आर्डर नहीं मिला तो हमारे कारखाने बेकार और मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे, चमड़ा उद्योग 12.5 प्रतिशत टैरिफ का बोझ भी सहन नहीं कर सकता, ऐसे में 50 प्रतिशत टैरिफ की तो बात ही छोड़ दें...

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट उत्तर प्रदेश के महासचिव दिनकर कपूर की टिप्पणी

कल से अमेरिका की ट्रंप सरकार द्वारा भारत के ऊपर लगाया गया 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ यानी आयात शुल्क लागू हो गया है। इससे पहले ट्रम्प सरकार ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया हुआ था। रूस से तेल न खरीदने की शर्त का उल्लंघन करने पर दंड स्वरूप 25 प्रतिशत टैरिफ अतिरिक्त लागू कर दिया गया है। इस टैरिफ से आगरा का चमड़ा उद्योग गहरे संकट का शिकार हुआ है। पूरी दुनिया में भारत 2020-21 में चमड़ा उत्पाद का 368.2 करोड़ डॉलर का निर्यात करता था जो 2024-25 में 482.8 करोड़ डॉलर हो गया, यह 31 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। इसमें से अमेरिका को 2020-21 में 64.5 करोड डॉलर का निर्यात हुआ था जो बढ़कर 104.5 करोड डालर हो गया। यह 62 प्रतिशत की बढ़ोतरी है।

2022-23 में भारत ने अमेरिका को एक 1.17 अरब डॉलर के चमड़ा उत्पाद का निर्यात किया था। इसका भी 20 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश के कानपुर-उन्नाव कलस्टर से आता है और 20 प्रतिशत हिस्सा आगरा कलस्टर से आता है। आगरा में चमड़ा उत्पादों के 15 बड़े उद्योग, 30 मध्यम उद्योग, 150 लघु उद्योग और 10000 सूक्ष्म इकाइयां हैं। जिनमें 2 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आगरा से अमेरिका को लेदर फुटवियर में 2022-23 में 370 करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात हुआ था, जो 2023-24 में घटकर 260 करोड़ रुपए के करीब रह गया। नए टैरिफ के बाद 100 करोड रुपए का फुटवियर भी अमेरिका को बेच पाना संभव नहीं होगा।

अमेरिकी टैरिफ से आगरा के चमड़ा उद्यमियों और मजदूरों के बीच बेहद घबराहट का माहौल है। फुटवियर एवं चमड़ा उद्योग विकास परिषद के अध्यक्ष और आगरा फुटवियर निर्माता एवं निर्यातक चैंबर के अध्यक्ष पूरन डावर के अनुसार यह समय आगरा के निर्यात कारखाने का सबसे व्यस्त समय और पीक सीजन है। इस अवधि में शीत और शरद ऋतु के फुटवियर बनते हैं। इस टैरिफ के लग जाने के कारण हमारे माल डम्प पड़े हुए हैं। हमें अमेरिका से जो आर्डर मिले हैं उनकी भी लागत बहुत ज्यादा बढ़ जा रही है। यही स्थिति रही तो हम काम करने में सक्षम नहीं रहेंगे। वह 17000 उत्पाद बनाने वाली कम्पनी के मालिक हैं और 1500 मजदूरों को रोजगार देते है।

1000 करोड़ का वार्षिक कारोबार करने वाली आगरा की कंपनी पार्क एक्सपर्ट्स के मालिक नजीर अहमद के अनुसार अमेरिकी टैरिफ एक आपदा है। वह 400 से 500 डिजाइन बनाते हैं और उनके यहां 800 कर्मचारी कार्यरत हैं। उनका कहना है कि अगर हमें अमेरिकी आर्डर नहीं मिला तो हमारे कारखाने बेकार और मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे। उनके अनुसार चमड़ा उद्योग 12.5 प्रतिशत टैरिफ का बोझ भी सहन नहीं कर सकता। ऐसे में 50 प्रतिशत टैरिफ की तो बात ही छोड़ दें। उनका यह भी कहना है कि अमेरिकी टैरिफ दर बढ़ाने के फैसले के कारण बहुत सारे खरीदार अब कम टैरिफ दर वाले चीन, वियतनाम, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरफ जा रहे हैं।

इस टैरिफ संकट के कारण उद्यमियों के सामने नए आर्डर का संकट पैदा हो गया है। इस उद्योग में रोजगार पर खतरा मंडरा रहा है। उन्हें माल खपाने की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है और लेनदेन विवाद भी है। क्योंकि जो माल उन्होंने तैयार कर लिया है उसे वे कहां बेचे इस पर उनकी चिंता गहराती जा रही है। पहले 25 प्रतिशत और अब 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने से पूर्व उनको आर्डर मिले थे उन पर इस टैरिफ के लगा देने के बाद लेनदेन का भी बड़ा विवाद पैदा होगा।

लेदर सेक्टर सर्किल काउंसिल के अध्यक्ष मुख्तारुल अमीन के अनुसार यह बड़ी लेबर इंटेंसिव इंडस्ट्री है। इसमें कई प्रोडक्ट बनाने से लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। उनका तो यहां तक कहना है कि यह इंडस्ट्री देश में रोजगार देने वाली सबसे बड़ी इंडस्ट्री के बतौर मौजूद है। काउंसिल फॉर लेदर एंड एक्सपोर्ट के मुताबिक भारत चमड़ा उत्पादन उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अहम जगह रखता है।

आगरा एफ्रमेक के अध्यक्ष गोपाल गुप्ता कहते हैं कि मिनिमम ब्याज दर पर फंड की उपलब्धता और ऑर्डर के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को प्रोत्साहन स्कीम लानी चाहिए। इस संबंध में आगरा समेत देश के चमड़ा उद्योग कारोबारियों का एक प्रतिनिधिमंडल भी पीयूष गोयल से मिला था और उनसे इस संकट में सरकार की मदद की गुहार लगाई थी। उद्यमियों की मांग है कि नए बाजार की तलाश में सरकार उनका सहयोग करे, ब्रांडिंग के लिए प्रोत्साहन स्कीम बनाएं, टैरिफ घाटे की भरपाई सरकार करे, कच्चे माल की लागत में कमी लाई जाए और डिजाइनिंग एवं कुशलता के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाए ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वह टिक सकें।

यही नहीं आगरा क्षेत्र में जो अन्य उद्योग हैं जैसे फिरोजाबाद का कांच उद्योग, स्टोन हस्तशिल्प और गलीचा, दरी, जरदोजी वह सब भी अमेरिकन टैरिफ से बड़े संकट के शिकार हो रहे हैं। फिरोजाबाद का कांच उद्योग 2000 करोड़ का निर्यात करता था जिसमें 50 प्रतिशत ग्लास के आइटम अमेरिका को निर्यात होते थे। नए टैरिफ के बाद इससे लगभग 1000 करोड़ का कारोबार प्रभावित होगा। इसी तरह स्टोन हस्तशिल्प, गलीचा और दरी उद्योग में 85 प्रतिशत अमेरिका को निर्यात होता था। कालीन और दरी में 300 करोड़ के उत्पाद निर्यात होते थे और जरदोजी व हस्तशिल्प में भी 300 करोड़ का निर्यात होता था जो संकट का शिकार होगा।

कुल मिलाकर कहा जाए तो आज भारतवर्ष में अमेरिकन टैरिफ और दादागिरी के दौर में यह सवाल उभर कर आया है कि हमें अपनी आंतरिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। पहले से ही नोटबंदी और जीएसटी के शिकार छोटे-मझोले उद्योगों को सरकार द्वारा हर सम्भव मदद देनी होगी। साथ ही साथ हमें अपने उत्पादों की बिक्री के लिए अमेरिकी या यूरोप के बाजार पर निर्भर होने की जगह, जिसमें हम अपनी आर्थिक संप्रभुता तक को दांव पर लगाते हैं, हमें अपने बाजार को भी समृद्ध करने के लिए लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने की आर्थिक दिशा लेनी होगी।

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