बसनिया बांध से दर्जनों गांव होंगे तबाह, कांग्रेसी MLA मर्सकोले ने CM शिवराज सिंह चौहान को लिखा निरस्त करो इसका निर्माण
कांग्रेस MLA अशोक मर्सकोले ने शिवराज को पत्र लिख की बसनिया बांध को निरस्त करने की मांग
Madhya Pradesh News, जनज्वार। मध्य प्रदेश में सरदार सरोवर बांध (sardar Sarovar Dam) से मची तबाही पीड़ितों की जिंदगी में झांककर देख सकते हैं, मगर इससे सबक लेने के बजाय सरकार ने एक और बांध बनाने की तैयारी कर दी, जिससे 31 गांव उजड़ेंगे और कई हजार हेक्टेयर डूब क्षेत्र में आ जायेगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं बसनिया बांध (basaniya dam) की, जिसे नर्मदा और गंजाल नदी पर संयुक्त सिंचाई परियोजना के तहत बनाया जाना प्रस्तावित है। इसके विरोध में लंबे समय से ग्रामीण प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें न सिर्फ अपनी जमीन से उजड़ना पड़ेगा, बल्कि सरदार सरोवर बांध से मची तबाही का मंजर भी उनकी आंखों के सामने तैर रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक इस बांध के बनने से तीन जिलों हरदा, होशंगाबाद और बैतूल के 23 गांव प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं लगभग 2371 हेक्टेयर में फैले जंगल भी डूब क्षेत्र में आ जायेंगे। लोगों की भारी तबाही की आशंका को देखते हुए इस बांध का लंबे समय से विरोध हो रहा है। अब मध्य प्रदेश के मंडला जिले की निवास विधानसभा से कांग्रेस विधायक डॉक्टर अशोक मर्सकोले ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर मांग की है कि इस बांध का निर्माण रोक दिया जाये और लोगों के विकास के लिए यहां माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना लागू की जाये।
अपने पत्र में अशोक मर्सकोले (Dr. Ashok Marskole) ने लिखा है, '3 मार्च 2016 को विधायक जितेंद्र गहलोत (Jitendra Gahlot) द्वारा विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में आपने बताया है कि नर्मदा घाटी में 29 प्रस्तावित बांधों में से 10 बांध पूर्ण हो चुका है, 6 बांध का कार्य प्रगति पर है और शेष 13 बांधों में से 7 को नए भू अर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि, अधिक डूब क्षेत्र होने, डूब क्षेत्र में वनभूमि आने से असाध्य होने के कारण निरस्त की गई है। इन निरस्त बांधों की सूची में बसनिया बांध भी शामिल है, जिसे फिर से शुरू करने की कवायद जारी है।
सूचना के अधिकार (Right to information) से प्राप्त जानकारी के अनुसार बसनिया बांध से 8780 हेक्टेयर में सिंचाई होगी, जबकि 6343 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगा। इसमें 31 आदिवासी बाहुल्य गांव की 2443 हेक्टेयर निजी भूमि और 2107 हेक्टेयर घना जंगल डूब में आएगा। नर्मदा घाटी विकास विभाग की 2009-2010 वार्षिक प्रतिवेदन के अनुसार बसनिया बांध से 50 हजार हेक्टेयर सिंचाई और 20 मेगावाट बिजली बनाये जाने का लक्ष्य दर्शाया गया है।
वर्तमान रिपोर्ट के अनुसार सिंचाई रकबा घटाकर जल विद्युत उत्पादन क्षमता 100 मेगावाट कर दी गयी है। यहां यह भी जानना जरूरी है कि मध्य प्रदेश में विद्युत उत्पादन की स्थापित क्षमता लगभग 22 हजार मेगावाट है और वार्षिक औसत मांग 11 हजार मेगावाट है। मध्यप्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट का सौर उर्जा संयत्र से उत्पादन शुरू हो चुका है, जबकि आगर, शाजापुर, नीमच, छतरपुर, ओंकारेश्वर और मुरैना में 5 हजार मेगावाट की सौर उर्जा परियोजनाए निर्माणाधीन हैं। इसीलिए 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन के लिए 2731.17 करोड़ रुपये खर्च करना, घने जंगलों की जैवविविधता डुबाकर खत्म करना और 31 गांव के 2737 परिवारों को विस्थापित करना न्यायसंगत नहीं है। इस बांध का क्षेत्र के लोगों ने भी विरोध करना शुरू कर दिया है। बरगी बांध के कारण मंडला जिले के आदिवासी बाहुल्य 95 गांव पहले ही विस्थापित एवं प्रभावित हो चुके हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे अपने पत्र में अशोक मर्सकोले ने आगे लिखा है, इस बांध के विकल्प में माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना ज्यादा उपयोगी है, जिसमें लागत और समय भी कम लगेगा और सिंचाई रकबा भी बढाया जा सकता है। इसी नर्मदा घाटी की चिंकी-बोरास बांध (नरसिंहपुर) को अत्यधिक डूब क्षेत्र के कारण इसे उदवहन सिंचाई परियोजना में परिवर्तित कर दिया गया है।
तत्कालीन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश्य ने एक अखबार को बताया था कि "हमें वर्ष 2024 तक नर्मदा जल का उपयोग करना है। अब निर्णय किया गया है कि नर्मदा पर बड़े बांध नहीं बनेंगे, बल्कि केवल पानी लिफ्ट करेंगे। इसके लिए पूरी कार्ययोजना तैयार है।इस तरीके से तय लक्ष्य से ज्यादा क्षेत्र में हम सिंचाई क्षमता विकसित कर सकेंगे।" अतः आपसे अनुरोध है कि बसनिया बांध को निरस्त कर माइक्रो लिफ्ट सिंचाई योजना लागू करने की योजना बनाई जाए। यह प्रदेश और मंडला के हित में लिया गया निर्णय होगा।