श्रमिकों की मांगों और आंदोलनों को कुचलना मोदी सरकार के न्यू इंडिया की बन गयी है परम्परा
(मोदी सरकार गरीबों के लिए कई योजनाएं चलाने के दावे करती है लेकिन भुखमरी सूचकांक में भारत और नीचे चला गया है)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। मोदी सरकार की नीतियों ने पूंजीवाद को बढ़ाया है और श्रमिकों के अधिकारों को छीन लिया है। हाल में ही एक अध्यादेश के तहत आयुध निर्माणी उद्योगों में श्रमिकों के हड़ताल को गैर-कानूनी करार दिया है। श्रमिकों की मांगों और आन्दोलनों को कुचलना मोदी सरकार के न्यू इंडिया की एक परम्परा बन गयी है।
फरवरी के महीने में जब विश्व बैंक ने डूइंग बिज़नस इंडेक्स प्रकाशित किया था, तब देश के मीडिया में इसकी खूब चर्चा की गयी थी। बीजेपी प्रवक्ता हरेक समाचार चैनल पर मोदी जी को उद्योग और व्यापार जगत का मसीहा बता रहे थे। इस इंडेक्स में भारत 14 स्थानों की उछाल के साथ कुल 190 देशों की सूचि में 63वें स्थान पर पहुँच गया था। हालांकि उद्योग शुरू करने के सन्दर्भ में भारत 136वें, प्रॉपर्टी के पंजीकरण के सन्दर्भ में 154वें, कॉन्ट्रैक्ट्स को लागू करने के सन्दर्भ में 163वें और टैक्स भरने के सन्दर्भ में 113वें स्थान पर था।
दूसरी तरफ अनेक इंडेक्स ऐसे भी हैं, जिसका केंद्र श्रमिकों के अधिकार और रोजगार हैं, उन सभी इंडेक्स में हमारा देश सूचि में अंत में खड़ा था और इनकी चर्चा नहीं की गयी। ऑक्सफैम द्वारा प्रकाशित कमिटमेंट टू रीड्युसिंग इनइक्वलिटी इंडेक्स 2020 में हमारा न्यू इंडिया कुल 158 देशों की सूचि में 141वें स्थान पर था।
यह इंडेक्स समाज से हरेक तरीके की असमानता दूर करने के लिए सरकारों की प्रतिबद्धता के सन्दर्भ में तैयार किया जाता है। इसी इंडेक्स में श्रमिकों के अधिकारों और सुनिश्चित रोजगार के सन्दर्भ में भारत कुल 158 देशों की सूची में 151वें स्थान पर है। यह इंडेक्स सरकारी नीतियाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, टैक्स की दरें और श्रमिकों के अधिकारों के आधार पर तैयार किया जाता है। इन 158 देशों में स्वास्थ्य पर बजट प्रावधान के संगर्भ में भारत का स्थान अंतिम स्थान से महज 4 सीढ़ी ऊपर है।
https://wageindicator.org नामक वेबसाईट सेंटर फॉर लेबर रिसर्च के साथ मिलकर हरेक वर्ष लेबर राइट्स इंडेक्स प्रकाशित करती है। वर्ष 2020 के इंडेक्स में कुल 115 देशों का आकलन श्रमिकों के अधिकारों के सन्दर्भ में किया गया है। इस इंडेक्स में देशों को क्रमवार नहीं, बल्कि व्यापक समूहों में विभाजित किया जाता है। भारत जिस समूह में है, उसका शीर्षक है सम्मानजनक रोजगार के सन्दर्भ में सीमित अधिकार।
इंटरनेशनल ट्रेड यूनियंस कॉन्फ़ेडरेशन पिछले सात वर्षों से ग्लोबल राइट्स इंडेक्स प्रकाशित करता है। वर्ष 2020 के इंडेक्स में कुल 138 देशों की सूचि में श्रमिकों के अधिकारों के सन्दर्भ में भारत सबसे अंत से पांच स्थान ऊपर है। भारत से नीचे सूची में केवल ब्राज़ील, फिलीपींस, होंडुरास और बांगलादेश हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह भारत में श्रमिकों के शांतिपूर्ण आन्दोलनों पर पुलिस लाठियां बरसाती है और आंसू गैस के गोले छोड़ती है, श्रमिकों के संगठनों द्वारा आयोजित प्रदर्शनों का दमन किया जाता है और बिना किसी पूर्व नोटिस के ही श्रमिकों को नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि श्रमिकों को पहले से अधिक अधिकार और सुविधाएं देने के नाम पर लाये गए नए क़ानून श्रमिकों के अधिकार और सभी सुविधाएं छीन रही हैं।
शायद ही किसी को पता होगा कि इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन ने एक अन्तराष्ट्रीय समझौता श्रमिकों के यूनियन या संगठन बनाने की आजादी के सन्दर्भ में तैयार किया है, इस पर भारत में आज तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं। अपने उफान पर पूंजीवाद देशों की सरकारों पर नियंत्रण करता है, हमारे देश में मोदीमय न्यू इंडिया में यही हो चूका है। पूंजीवाद हमेशा प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के साथ ही श्रमिकों के अधिकारों को कुचलने का काम सरकारों के साथ मिलकर करता है, हमारे देश में तो यह स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा है। हमारे देश में व्यापार आसान होता जा रहा है, और श्रमिकों की जिन्दगी दूभर।