सेंचुरी खरगोन के मजदूरों से मुंबई में जानवरों जैसा बर्ताव, धरना दे रहे कर्मचारियों को किया पुलिस ने गिरफ्तार
VRS के खिलाफ मेधा पाटकर की अगुवाई में सेंचुरी श्रमिकों का प्रदर्शन
जनज्वार। सेंचुरी मिल के कर्मचारियों को जबरन वीआरएस देने का मामला कंपनी के मुख्य प्रबंधक डालमिया के घर तक पहुंच चुका है। शुक्रवार 9 जुलाई को नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ीं मेधा पाटकर की अगुवाई में सेंचुरी श्रमिक प्रतिनिधि डालमिया के मुंबई स्थित घर पर पहुंची, जहां उनको गिरफ्तार किया गया।
श्रमिकों का आरोप है कि 9 जुलाई को मध्य प्रदेश के सेंचुरी मिल्स के 50 श्रमिक प्रतिनिधि जब सेंचुरी भवन, मुंबई के सामने पहुंचकर चेतावनी उपवास पर बैठे तो बातचीत के बाद तय हुआ कि 10 प्रतिनिधियों के समूह की सेंचुरी कंपनी के पदाधिकारियों के साथ बातचीत होगी।
जब सेंचुरी मिल के कर्मचारी मेधा पाटकर की अगुवाई में डालमिया के मुंबई स्थित घर यानी सेंचुरी भवन में जाने लगे तो पुलिस प्रशासन की ओर से वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक मृत्युंजय हीरेमठ ने प्रतिनिधियों को छोड़कर बाकी सभी सत्याग्रहियों को तत्काल धरनास्थल छोड़ने का आदेश दिया। कहा कि कोविड के इस काल में आपदा व्यवस्थापन अधिनियम का उल्लंघन हुआ है। सेंचुरीकर्मियों की सभी बातों को अनसुना कर पुलिस ने बलपूर्वक धरनास्थल से हटाया गया।
प्रदर्शनकारियों ने मीडिया को जारी रिलीज में बताया कि इस दौरान जबरन खींचातानी और पुलिस द्वारा खुद कोरोना के नियमों को पूर्ण रूप से ताक पर रखकर सेंचुरी कर्मचारियों की गिरफ्तारी की गयी। इस दौरान महिलाओं के साथ जानवर जैसा बर्ताव किया गया। पुलिस ने उन्हें जबरन वैन में ठूंसा गया।
सेंचुरी कर्मचारियों का आरोप है कि यह सब एनरॉन विरोधी संघर्ष में भी हो चुका था, यह हम भूल नहीं सकते। श्रमिक जनता संघ के पदाधिकारी जगदीश खैरालिया, संजय चौहान, सैंचुरी कामगार एकता संघ के नेता नंदू पारकर और हेमंत गोसावी तथा सेंचुरी श्रमिक और उनके परिवारों की महिलायें, समर्थन में आए घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन के प्रतिनिधियों को मेधा पाटकर समेत गिरफ्तार किया गया।
प्रदर्शनकारियों का यह भी आरोप है कि 144 की धारा जाहिर भी नहीं करते हुए 188 की धारा भी लगा कर गिरफ्तारी के पूर्व की प्रक्रिया के बिना कार्यवाही की गई। कार्यवाही किसके आदेश पर हुई और क्यों, का जवाब मांगने पर श्रमिक अपना संघर्ष नारों के साथ पुलिस स्टेशन के अंदर भी जाहिर करते रहे। पुलिस स्टेशन में पत्रकारों को भी प्रवेश करने से रोक दिया गया।
आरोप है कि वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक ने पुणे से आए कष्टकरी समाज के साथ संघर्षरत बाबा आढाव, चंदन कुमार को धकेलते हुए एक कमरे में ले जाकर घंटों तक बिठाया गया। प्रशासन की अगुवाई में ही 10 प्रतिनिधियों को सेंचुरी भवन जाने का प्रस्ताव रखा था।
श्रमिकों के प्रतिनिधि राजेश खेते, दुर्गेश खवसे, संजय चौहान, नवीन मिश्रा और नंदू पारकर ने कहा कि जिन्होंने सालो तक पसीना बहाया है, आपकी तिजोरी भरी है, उन्हें कुछ लाख रुपए देकर आपने बेरोजगार कर दिया है, जोकि सरासर अन्याय है।
ज्योति ने कहा कि चंद लाख रुपए के VRS में हमारे बच्चों की शिक्षा भी नहीं हो सकती है। वहीं मेधा पाटकर ने कहा, सेंचुरी के पदाधिकारी उनकी लाखों रुपए की मासिक आय होकर मात्र कुछ हजार रुपए में कार्यरत श्रमिको का योगदान नहीं मानते और उनके साथ धोखा देकर अन्याय करते हैं। 2019 तक 6/700 करोड़ और उसके बाद 2019 से लॉकडाउन में भी 350/400 करोड़ रुपए नगद मुनाफा कंपनी कमाने वाली क्या मिल्स नहीं चला सकती?