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पर्यावरण

World Water Crisis : 3 साल से नहीं हुई बारिश, हड्डियों के ढांचे में बदलीं गायें, कहानी दुनिया के उस हिस्से की जहां पानी नहीं

Janjwar Desk
18 April 2022 2:00 PM GMT
World Water Crisis
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World Water Crisis : तीन साल से बारिश नहीं हुई, भूखी-प्यासी गायें हड्डियों के ढांचे में बदलीं, कहानी दुनिया के उस हिस्से की जहां पानी नहीं है. फोटो साभार : https://www.dw.com/

World Water Crisis : अफ्रीका के कई देशों में लगातार तीन सालों से बारिश ही नहीं हुई है। अब वहां के लोगों के साथ-साथ मवेशियों के सामने भी जिंदा रहना एक चुनौती बन गयी है...

World Water Crisis : जल ही जीवन (Water is Life) है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है पानी का महत्व लोगों को समझ में आने लगता है, पर अब भी हमारे देश में पानी को लेकर अक्सर लोग लापरवाही बरतते हैं। प्रकृति (Nature) का शुक्र है कि हमारे जरूरत भर का पानी हमें मिल जा रहा है जिससे हमारा जीवन कट रहा है।

वहीं दूसरी ओर एक सच यह भी है कि इसकी बर्बादी को रोकने की दिशा में हम सभी को जागरूक होने की जरूरत है क्योंकि जहां पानी नहीं है वहां के हालात नरक से भी बदतर हैंं। आइए बात करते हैं एक ऐसे ही हिस्से की जहां पानी की कमी से आदमी तो आदमी मवेशी भूखे-प्यासे मरने को विवश हैं।

कई अफ्रीकी देशों में तीन सालों से नहीं हुई है बारिश

डचेज वैले की एक रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका (Africa) के कई देशों में लगातार तीन सालों से बारिश ही नहीं हुई है। अब वहां के लोगों के साथ-साथ मवेशियों के सामने भी जिंदा रहना एक चुनौती बन गयी है। कई गांवों में मरे हुए मवेशियों का ढेर लग गया है। इससे महामारी फैलने का खतरा बढ़ गया है। एक के बाद एक तीन बारिश के मौसम बिना बरसात के ही बीत चुके हैं। हॉर्न ऑफ अफ्रीका कहे जाने वाले सोमालिया, केन्या और अब इथोपिया जैसे देशों में लोग सूखे के कारण मरने की कगार पर पहुंच रहे हैं।


21 लाख लोग भूखमरी के कगार पर

रिपोर्ट के मुताबिक इन इलाकों में लोगों और मवेशियों की दशा सूखे की भयावहता को बयां करती है. सिर्फ केन्या में पानी की कमी के कारण 21 लाख लोग भुखमरी की कगार पर खड़े हैं. ना खेती हो पा रही है ना ही पीने के लिए पानी मिल पा रहा है। ऐसे में लोगों के सामने तिल-तिल कर मरने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। पूरे इलाके में करोड़ों कोरोड़ों की आबादी सूखे की चपेट में है।

सूखे की मार झेल रहे इलाके में रहने वाले सत्तर साल के हुसैन बताते हैं उनकी अहमद की 7 गायें सूखे की इस त्रासदी की भेंट चढ़ चुकी हैं लेकिन अब भी मन में आस है कि कहीं से कोई चमत्कार होगा और वे अपनी बची हुई 16 गायों की जान बचा लेंगे हैं, इन 16 गायों का हाल जान गंवाने वाली सात गायों जैसा नहीं होगा। इसी कोशिश में वे रोज गायों को लेकर तालाबों में पानी की खोज में निकलते है, ताकि गायें अपना पानी पीकर अपना गला तर कर सकें।

मवेशी ​हड्डियों का ढांचा बन गए, उठ-बैठ भी नहीं सकते

इथोपिया के सोमाली इलाके के मवेशियों की खासकर गायों की हालत पानी की कमी के कारण बद से बदतर हो चुकी है. चारा और पानी नहीं मिलने क कारण वे इतनी कमजोर हो गयी हैं कि खुद से उनका उठना-बैठना भी मुश्किल है। स्थानीय उसे राहत और इलाज देने की कोशिश कर रहे हैं। पर पानी का संकट कैसे दूर हो यह लोगों की सबसे बड़ी चिंता है।

स्थानीय दामा मोहम्मद की भी आठ में से दो गायें सूखे की भेंट चढ़ चुकी हैं. बची गायों में से भी कई इस हाल में पहुंच चुकी हैं कि चल-फिर नहीं सकतीं हैं, वे सिर्फ हड्डियों का ढांचा भर बनकर रह गयी हैं। इसलिए वे उन्हें पिलाने के लिए पास के तालाब से पानी भर-भर कर लाती हैं, ताकि उनकी जान बचा सके।

वहीं इथोपिया के सोमाली इलाके के कोराहे जोन में रहने वाली हफ्सा बेदेल का भी वही दर्द है। वह छह बच्चों की मां हैं। सागालो गांव की निवासी हफ्ता बताती हैं कि वे पहले ही उनकी 25 भेड़-बकरियां और 4 ऊंट भूख और प्यास के कारण मर चुके हैं।


इन इलाकों में लोग ऊंटों और अन्य मवेशियों के लिए सरकारी कुएं से पानी का इंतजाम कर रहे हैं. लेकिन सही खाना न मिलने से कमजोर हुए पालतू जानवर आसानी से कई रोगों के शिकार हो जाते हैं जिससे उनकी जान नहीं बच पा रही है।

आपको बता दें कि सूखे के इस जबरदस्त प्रभाव के कारण ही केन्या में राष्ट्रपति उहुरू केन्याटा ने सितंबर में ही सूखे को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया था। वहां भी सूखे की वजह से भोजन और पानी की भारी कमी हो गई है।

पानी की कमी से रोजगार-धंधे सब ठप

पानी की कमी के कारण रोजगार-धंधे सब ठप पड़ गए हैं। लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। क्योंकि आजीविका के लिए छोटी-मोटी खेती या मवेशियों पर निर्भर थे। लोग खुद के लिए ही भोजन नहीं जुटा पा रहे, ऐसे में मवेशियों के लिए भोजन और पानी का प्रबंध करने की कौन फिक्र करे? पानी की कमी के कारण आमदनी छिन गयी है। खुद की जान बचाना ही वहां लोगों के लिए चुनौती है।

आपको बता दें कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के जिन समिनारों और कार्यक्रमों में बदलते मौसम पर चिंता व्यक्त की जाती है वे हमारे लिए महज एक खबर या कार्यक्रम से बढ़कर कुछ नहीं हैं पर वहां जो तथ्य बताए जाते हैं उनका असर फिलहाल इन अफ्रीकी देशों में दिख रहा है जहां लोग पानी और भोजन की कमी से तिल-तिल कर मरने को मजबूर हो रहे हैं।


इन गरीब देशों में लोगों के पास रोज बढ़ रही पर्यावरणीय मुसीबतों से लड़ने के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं और सरकारें भी उनकी मदद कर पाने में अक्षम होती हैं। ऐसे में आम लोगों के पास हड्डी का ढांचा बनकर मरने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।

हमारे देश में लोग नहीं हो रहे जागरूक

हमारे देश में संसाधन फिलहाल मौजूद हैं इसी कारण हमारे पास मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम और अजान-हनुमान चलीसा जैसे तमाम तरह के गैरजरूरी मुद्दों पर बहस करने का समय है और हम उसी में उलझे रहते हैं। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारी भी हालत इन अफ्रीकी देशों की जैसे होते देर नहीं लगेगी।

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