UP के गन्ना किसानों पर दोहरी मार, 3 साल से योगी सरकार ने न मूल्य में वृद्धि की और न ही हो रहा बकाए का भुगतान
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वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में अब एक साल से कुछ ही ज्यादा समय बाकी रह गया है। ऐसे में गन्ना के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान राजनीति भी तेज होने की भूमिका बननी शुरू हो गई है। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन से प्रदेश सरकार पर गन्ना मूल्य बढ़ाने का दबाव बनाने की रणनीति किसान संगठनों ने बनाई है।
उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य है। देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद एवं उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है। देश में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं। करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं।
यूपी का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है। प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी संख्या होने के नाते राजनीतिक रूप से यह बेहद संवेदनशील फसल है। वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी। इसमें सामान्य प्रजाति के गन्ने का मूल्य 315 रुपये और अग्रिम प्रजाति का मूल्य 325 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था। इसके बाद से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है। अब जबकि अगला विधानसभा चुनाव नजदीक है, किसान संगठनों ने प्रदेश सरकार पर गन्ना का दाम नहीं बढ़ाने पर आंदोलन को तेज करने का ऐलान किया है।
मोदी सरकार के तीन नये कृषि कानूनों खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के तीसरे महीने में प्रवेश करने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने लगातार तीसरे साल गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है।
रविवार 14 फरवरी देर शाम मिली सूचना के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य पिछले पेराई सीजन के बराबर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। पेराई सत्र 2020-21 में भी सामान्य प्रजाति के गन्ने का भाव 315 रुपये प्रति क्विंटल, अगेती प्रजाति के गन्ने का भाव 325 रुपये प्रति क्विटंल और अस्वीकृत प्रजाति के गन्ने का भाव 310 रुपये प्रति क्विंटल रहेगा। यह लगातार तीसरा साल है, जब गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाया गया है।
दिल्ली-यूपी सीमा पर गाजीपुर में चल रहे प्रदर्शन में यूपी के कई गन्ना किसान पहुंचे हैं। 2019-20 के चीनी सीजन में बहुत से किसानों को अभी तक बकाए का भुगतान नहीं किया गया।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बागपत जिले से आंदोलन में पहुंचे एक किसान राकेश तोमर ने कहा कि उन्होंने रमाला सहकारी चीनी मिल को 2019-20 के सत्र में 2 जून को 15 पर्चियों के लिए गन्ने की सप्लाई की थी, लेकिन अभी तक उनके 4 पर्चियों का भुगतान नहीं हो पाया है। वहीं अब उन्होंने 6 पर्चियों के लिए मौजूदा सत्र में सप्लाई की है। 3 जनवरी को शामली में अपर दोआब शुगर मिल को 20.05 क्विंटल गन्ना सप्लाई करने वाले अनुज कलखंडी भी गाजीपुर आए हैं। उनके मुताबिक उन्होंने पिछले साल 2400 क्विटंल गन्ना चीनी मिल पहुंचाया था, लेकिन 6 अप्रैल के बाद से कोई भुगतान नहीं मिला।
जब यूपी में बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार थी, तो गन्ने का दाम 125 से 240 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। इसके बाद समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो ये दाम 240 से 305 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। वहीं योगी सरकार ने 2017-18 के बाद से एसएपी नहीं बढ़ाया।
अक्टूबर से गन्ने का 2020-21 का नया सीजन शुरू हो गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश में किसानों का बकाया खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। यूपी की मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 8447 करोड़ रुपये बकाया है। किसानों ने 2019-20 में जो गन्ना चीनी मिलों को बेचा था, उसका अभी तक पूरा भुगतान नहीं हो पाया है।
पिछले सीजन में अक्टूबर से सितंबर के दौरान प्रदेश की चीनी मिलों ने 1118 लाख टन गन्ने की पेराई की थी। राज्य सरकार द्वारा तय की गई कीमत (एसएपी) 315-325 रुपये क्विंटल के आधार पर चीनी मिलों ने करीब 35898 करोड़ रुपये की गन्ना खरीद किसानों से की थी, लेकिन उन्होंने अभी तक किसानों के केवल 27451.05 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है। अहम बात यह है कि चीनी मिलों पर किसानों का बकाया घटने की जगह बढ़ गया है। पिछले सीजन में 4941.83 करोड़ रुपये का बकाया था। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार बार-बार गन्ना किसानों के बकाए को जल्द से जल्द देने की बात दोहराती रहती है।a
जानकारी के अनुसार 8448 करोड़ रुपये में से 90 फीसदी से ज्यादा रकम निजी मिलों पर बकाया है। निजी चीनी मिलों पर 7707 करोड़ रुपये का बकाया है, जबकि कॉरपोरेशन और कोऑपरेटिव पर शेष राशि बकाया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2019-20 के सीजन के लिए केंद्र सरकार द्वारा तय की गई एफआरपी की तुलना में एसएपी 40-55 रुपये ज्यादा तय किया था। केंद्र सरकार ने गन्ने पर पर जहां 275 प्रति क्विंटल एफआरपी तय की थी, वहीं प्रदेश सरकार ने 315-325 रुपये एसएपी तय की थी।