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Sansad Galikand : हां, मैं ही हूं, मलेच्छ, विधर्मी, आतंकवादी और पंचर पुत्र!
बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने मुस्लिम सांसद दानिश अली के लिए जिस अमर्यादित भाषा का संसद में किया प्रयोग, उससे भाजपा की सोच भी होती है उजागर
संसद में मुस्लिम सांसद के साथ हुए गालीकांड के बाद पत्रकार हुसैन ताबिश की तल्ख टिप्पणी
BJP leader Ramesh Bidhuri’s offensive remarks against MP Danish Ali : बचपन में जब मैं गांव के मिडिल स्कूल में पढ़ता था तो कभी-कभार शाम को छुट्टी के बाद घर जाते वक्त क्लास मेट और दूसरी क्लास के बच्चों से झगड़ा हो जाता था। वो लोग हम लोगों “मियां-टियां, मियां-टियां आपको गांxxx दिया बाप को..' कहकर जोर-जोर से चिल्लाते और फिर अपनी राह पकड़ गांव के दूसरे मोहल्ले की तरफ चले जाते। इधर, हम लोग 'हिंदू जात करम का छोटा हगगे गांxxx और माजे लोटा' कहकर उन्हें चिढ़ाते और अपनी राह पकड़कर घर आ जाते।
तब हममें से ज्यादातर को शायद ही इन शब्दों और गालियों का ज्यादा मतलब पता था। कल सब फिर से स्कूल जाते और शाम वाली बात भूलकर आपस में घुल-मिल कर बैठ जाते थे। हम सभी एक ही गांव के दो मोहल्ले में रहने वाले बच्चे थे।
भारत का मुसलमान किसी हिंदू शख्स या हिंदुओं को उसकी पीठ पीछे आपस में हिंदू या फिर गैर-कौम कहकर संबोधित करता है। गुस्से का इजहार करना हो तो हिंदू-पिंदू कहा जाता है। किसी चौथे शब्द की मुझे जानकारी नहीं है।
हां, कुछ लोग धार्मिक बहस-मुबाहिशों में ’काफिर’ शब्द का प्रयोग करते हैं, लेकिन ये जनभाषा नहीं है। काफिर न सिर्फ हिंदू बल्कि मुस्लिम को छोड़ तमाम मजहब के लोगों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है। ये एक बाउंड्री लाइन है, एक ईश्वर (अल्लाह) को मानने वाला 'मोमिन’ और उस सिद्धांत को न मानने वाला काफिर। इंकार करने को अरबी में कुफ्र कहते हैं, और कुफ्र करने वाला काफिर। इसमें घृणा और तिरस्कार जैसा कुछ नहीं है।
जब कोई मुसलमान धर्म के अनुसार आचरण नहीं करता है, और किसी बड़े गुनाह में लिप्त होता है, तो मुस्लिम समाज उसे भी काफिर कह देता है। हायर एजुकेशन के लिए जब मैं दिल्ली पढ़ाई करने आया तो यहां पहली बार मैंने मुस्लिम छात्रों के लिए मुल्ला और कटुआ संबोधन का इस्तेमाल करते हुआ एक छात्र को सुना, लेकिन कटुआ बोलने वाला वो अकेला छात्र था। शुरू में लगा कि मेरा कटा है, इसलिए ये बोलता होगा!
बहुत बाद में पूछने पर उसने बताया कि ये शब्द शाखा में चलता है। तब तक मैं शाखा से परिचित नहीं था। हालांकि उस वक्त बाकी 99 प्रतिशत छात्र मेरे नाम के साथ भाई भी लगाते थे। वो लड़का कई बार मेरे से ये सवाल भी पूछा करता था कि तुम लोग टोटी वाला लोटा क्यों रखते हो? क्या तुम्हारा विवाह होगा तो तुम अपनी बीवी को भी नकाब पहनवाओगे?
पढ़ाई के दौरान ही क्लास में एक हिंदू लड़की का एक दूसरे मुस्लिम लड़के ने प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इससे आहत होकर उस लड़की ने बयान दिया कि ये सब आतकवादी कॉलेज में आ गए हैं, और एक दिन देखना कोई बड़ा कांड करके यहां से भागेंगे। लड़की के इस बयान को उस वक्त मैंने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद दुनियाभर में मुसलमानों की खराब हुई छवि के संदर्भ में ही देखा और समझा था। कभी दिल पर नहीं लिया। वो लड़की अन्य दोस्तों की तरह आज भी प्रिय है।
भारत का पिछले 10 सालों में जैसे-जैसे विकास हुआ और ये विश्वगुरु बनने की राह पर आगे बढ़ा है, मुसलमानों के संबोधन के लिए और भी नए-नए शब्द गढ़े गए! हमारे राष्ट्रवादी, कट्टर सनातनी, सहिष्णु, हिंदू भाइयों ने हमें कई नए नाम दिए हैं। पुराने और नए नामों को मिलाकर उनका शब्दकोश अब काफी समृद्ध हो गया है। हिंदी में उर्दू और इंगलिश के शब्द से चिढ़ने वाले लोगों ने बड़ी उदारता के साथ अपने शब्दकोष में मुल्ला, मुल्ली, मियां, मियाईंन, गद्दार, अब्दुल और मोमिन जैसे उर्दू के शब्द को जोड़ लिया है, ताकि मियाओं को चिढ़ाया जा सके।
अब हमारे नामों में शामिल है - मुल्ला, मुल्ली, मियां, मियाईंन, कटुआ, उग्रवादी, आतंकवादी, विधर्मी, मलेच्छ, देशद्रोही, गद्दार, अब्दुल, मोमिन, दाढ़ी-टोपी वाला, पंचर पुत्र, ऑटो ड्राइवर, टैक्सी ड्राइवर, शाहीन बाग के फकीर और आजादी गैंग! कुछ छूट रहा हो तो आप अपनी तरफ से जोड़कर पढ़ें।
मुसलमानों के लिए इन नामों का इस्तेमाल करते हुए मैंने, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, सीए, पत्रकार, मास्टर, प्रोफेसर, रिसर्च स्कॉलर, छात्र, कारोबारी, नेता और उनके कार्यकर्ता तक को अपनी कानों से सुना और आंखों से देखा है।
एक बार तो एक आईपीएस अधिकारी ने अनजाने में ही मेरे सामने अपनी कानपुर पोस्टिंग के दौरान कटुए अपराधी का एनकाउंटर करने की वीरगाथा सुना दी। मेरे जाने के बाद जब उसे मेरे हुसैन ताबिश होने का पता चला तो रात में फोन कर उसने सफाई पेश की और सॉरी बोला।
मैंने कई लोगों के सबूत अपने पास संभाल कर रखा है, यह एहसास करने के लिए कि रोज-मिलने जुलने और पीयर ग्रुप्स के सफेदपोश लोग भी एक धार्मिक समूह के लिए कितनी घटिया सोच और विचार रखते हैं।
इसलिए, गुरुवार 21 सितंबर को लोकसभा में जो कुछ हुआ, बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने जब मुस्लिम बीएसपी सांसद कुंवर दानिश अली को भरी लोकसभा में भड़ुआ, कटुआ, उग्रवादी और आतंकवादी कहा, बाहर निकलकर देख लेने की धमकी दी और बिधूड़ी के ठीक पीछे बैठे पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ठहाका लगाकर बिधूड़ी गाली-गलौज और धमकी पर हंसते रहे तो मुझे रत्तीभर भी हैरत नहीं हुई।
रमेश बिधूड़ी अपने इलाके की जनता के सच्चे जन प्रतिनिधि हैं। वो उनकी आवाज हैं। सांसद या जनप्रतिनिधि जनता की आवाज, सोच और विचार का विस्तार होते हैं, और उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। बिधूड़ी अपना काम बड़े ईमानदारी के साथ कर रहे हैं। हमें बिधूड़ी जैसे सच्चे जनप्रतिनिधि पर गर्व है। वो संसद के बाहर और अंदर, सांसद और आम आदमी के बीच भेदभाव नहीं करते हैं। सभी के प्रति अपना व्यवहार एक जैसा रखते हैं।
मियां सांसद को उन्होंने भरी सभा में गलियां दीं तो क्या हुआ? कौन सा पहाड़ टूट गया? मियां तो रोज गलियाए जा रहे हैं। देशभर में बाजाब्ता पब्लिक फोरम पर उन्हें कटुआ, आतंकवादी, मलेच्छ, विधर्मी कहकर संबोधित किया जा रहा है। इसमें कुछ भी नया नहीं है।
आम मुसलमान गालियां खा रहा है, सांसद को भी तो खानी चाहिए, तभी तो रमेश बिधूड़ी की तरह वो भी सच्चे जनप्रतिनिधि बनेंगे। जनता की समस्या समझेंगे। बिधूड़ी और बाकी के भाजपा सांसद भी अगर रोज बाकी के 43 अन्य मिया सांसदों को संसद में ऐसे ही गलियाएं और ललकारे तब मुझे और खुशी होती, क्योंकि बड़ा, पैसे और पहुंच वाला मियां अभी तक टाइट नहीं हुआ है!
विपक्ष बिधूड़ी की सदस्यता रद्द करने की मांग कर रहा है। मोदी जी की इस पर टिप्पणी चाह रहा है। विपक्ष पागल और बुद्धिविहीन है। जब किसी पार्टी में नेता की योग्यता ही इस बात से तय होती हो कि वो अब्दुल को कितना गरिया सकता है, तो फिर उसके खिलाफ कार्रवाई कैसी? जिस प्रधानमंत्री के आगे सांसदों और मंत्रियों की पतलून गीली रहती है, क्या वो बिना उनके मौन सहमति के ऐसा कर सकता है? वो भी उस सूरत में जब प्रधानमंत्री खुद सार्वजनिक तौर पर और सुप्रीम कोर्ट ऐसी भाषणों पर रोक लगाने की बात कर चुका हो।
मुसलमानों को इस पर कोई हायतौबा मचाने या प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है। उन्हें भाजपा से मिले सभी नामों और इल्जामों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए!
देश बेचने, गिरवी रखने, कर्ज तले दबाने, बेरोजगारों की फौज खड़ी करने, नौकरियां खत्म करने और सत्ता के लिए लोगों को लड़ाने-भिड़ाने से कहीं ज्यादा अच्छा है पंचर पुत्र, मलेच्छ और आतंकवादी कहलाने का दाग लेकर देश का आम नागरिक बने रहना। सांसद दानिश अली को अगर गरियाए जाने का सच में दुख है, तो वह चुपचाप संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दें, और दूसरे मुस्लिम सदस्यों को भी इससे सदमा पहुंचा है, तो सभी मिलकर सामूहिक तौर पर इस्तीफा दे दें... इससे अच्छा विरोध का कोई और दूसरा तरीका नहीं है... बहुत जल्द आम चुनाव भी होने वाले हैं... उंगली कटाकर शहीद बनने का उन सभी के पास गोल्डेन चांस है! जिस देश की संसद में 37 प्रतिशत दागी लोग जनप्रतिनिधि बनेंगे और जिस पार्टी की नीव ही मुस्लिम विरोध पर टिकी हो... उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?
बाकी पूरे देशभर का मियां भी भाजपा से लड़कर कुछ हासिल नहीं कर सकता है। आपका हर विरोध उसे मजबूती प्रदान करता है। आप अपने हक की लड़ाई देश के उन करोड़ों सच्चे हिंदुओं और सनातनियों के जिम्मे छोड़ दें... जो हर मौके पर आपके समर्थन में बोलते और खड़े हो जाते हैं। अभी हताश होने का कोई कारण नहीं है। बिधूड़ी की भाषा और सोच देश के सारे हिंदुओं की न भाषा है और न सोच है। हमारे नाम के साथ भाई जोड़कर संबोधन करने वाले देश में अभी करोड़ों हिंदू मौजूद हैं।
दरअसल, ये सब देश और समाज में अब्दुल के खिलाफ घृणा और आक्रोश को मापने का टेस्ट है। कितने हिन्दू अभी तक भक्त बन चुके हैं, और कितने नहीं बन पाए हैं, उसका भी इससे अनुमान लगाया जाएगा। फिर जरूरत पड़ने पर ट्रेनिंग मॉड्यूल में नए नवाचार इंट्रोड्यूस किए जाएंगे... लेकिन आम मुसलमान ज्यादा तनाव न ले... अपना काम करते रहें... ऑटो, पंचर इमानदारी से लगाते रहें।
हमें मुसलमानों से ज्यादा चिंता देश के उन हिंदुओं की है, जो इस्लाम और अब्दुल को कोसते-कोसते खुद कब अब्दुल बन गए उन्हें पता ही नहीं चला, जबकि देश का अब्दुल अब मोहन बन रहा है।