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झारखंड में आदिवासियों के पर्व सोहराय का उल्लास, देखिए खूबसूरत तस्वीरें
झारखंड के दुमका जिले के जामा प्रखंड के कुकुरतोप गांव में सोहराय का एक दृश्य।
आदिवासियों के हर त्योहार की तरह सोहराय भी प्रकृति आधारित है। इन दिनों झारखंड के ग्रामीण इलाकों में उल्लास व उमंग से सोहराय पर्व मनाया जा रहा है। ऐसे में झारखंड के संताल परगना इलाके से सोहराय की ये तसवीरें जनज्वार के एक शुभेच्छु ने भेजी हैं। ये तसवीरें दुमका जिले के जामा प्रखंड के कुकुरतोपा गांव की हैं।
इन तसवीरों में इस पर्व का महत्व और खूबसूरती देखते ही बनती है। सोमवार को सोहराय पर्व का तीसरा दिन है। इसे खूंटव माह कहते हैं। इस दिन ग्रामीण बैल को कुल्हि में खूंटव करते हैं।
इसके लिए सबसे पहले महिलाएं बैल को चुमड़ यानी बैल की आरती करती हैं। उसके बाद पुरुष उसके चारों ओर नाच गाना करते हैं।
कुकुरतोपा गांव में पिछले करीब 40 वर्षाें से खूंटव नहीं किया गया था। अबकी बार दिसोम मरांग बुरू युग जाहेर अखड़ा और एभेंन अखड़ा, कुकुरतोप की पहल पर संस्कृति को बचाये रखने के लिए फिर से खूंटव शुरू किया गया।
बैल के सिंग में तेल सिंदूर और धान का बाली लगायी जाती है। बैल के माथे में कुछ रुपये भी रखे जाते हैं, जिसे पुरुष बैल के चारों ओर नाचने गाने के समय निकालने का कोशिश करते हैं।
इस मौके में ग्रामीण मंगल मुर्मू, लुखीन मुर्मू, सोनोत मुर्मू, संग्राम टुडू, पलटन मुर्मू, लालमुनि हेम्ब्रम, एलिजाबेद हेम्ब्रम, मोनिका हांसदा, जॉब हांसदा, दिलीप मुर्मू, बालेश्वर मुर्मू, बाबुधन टुडू, लुखिराम मुर्मू, सुनील सोरेन, फिलिप सोरेन, सोनेलाल मुर्मू, अविनाश हेम्ब्रम, अशोक मुर्मू, उज्ज्वल मुर्मू आदि उपस्थित थे।
हालांकि इस साल झारखंड में सोहराय पर्व पर जनजातीय शिक्षकों को अवकाश नहीं मिलने पर उन्होंने नाराजगी व्यक्त की है और इस संबंध में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिख कर कहा है कि पूर्व में चार दिनों का अवकाश इस पर्व के दौरान मिलता रहा है। अतः इस साल भी अवकाश दिया जाए।