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हाशिये का समाज

मीटिंग में वाइस प्रेसीडेंट ने दलित महिला पंचायत अध्यक्ष को जबरन बिठाया फर्श पर, वीडियो वायरल

Janjwar Desk
10 Oct 2020 10:46 AM GMT
मीटिंग में वाइस प्रेसीडेंट ने दलित महिला पंचायत अध्यक्ष को जबरन बिठाया फर्श पर, वीडियो वायरल
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दलित पंचायत अध्यक्ष को फर्श पर और अन्य बोर्ड सदस्यों को कुर्सी पर बिठाये जाने का यह फोटो हो रहा सोशल मीडिया पर वायरल

पंचायत बोर्ड की मीटिंग में जबरन फर्श पर बिठायी गयी दलित महिला ने कहा क्या इसीलिए चुना गया पंचायत अध्यक्ष, 15 अगस्त को भी बोर्ड वाइस प्रेसीडेंट पर भेदभाव का लगाया आरोप, कहा नहीं फहराने दिया था झंडा...

जनज्वार। इक्कीसवीं सदी में जी रहा आदमी आज भी अपने दिमाग से जात पात के भेद को मिटा नहीं पा रहा है, बल्कि यूं कहें कि जाति पहले से भी ज्यादा हावी होती जा रही है।

दलितों से दुर्व्यवहार की खबरें मीडिया में रोज छायी रहती हैं। कुछ यही मामला तमिलनाडु के कुड्डलोर में देखने को मिला, जिसमें एक बैठक के दौरान पंचायत बोर्ड के वाइस प्रेसीडेंट ने महिला पंचायत अध्यक्ष को फर्श पर इसलिए बैठा दिया क्योंकि वह दलित थी। बात मीडिया में पहुंची तो पंचायत अध्यक्ष के लिए मुश्किल हो गई। अब पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है।

जानकारी के मुताबिक तलिनाडु के कुड्डालोर में पंचायत बोर्ड की बैठक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था। वीडियो में साफ तौर पर नजर आ रहा था कि बैठक के दौरान एक पिछड़ी जाति की पंचायत अध्यक्ष जोकि दलित महिला थी, को पंचायत बोर्ड ने नीचे फर्श पर बैठा दिया, जबकि बाकी लोग कुर्सियों पर बैठे हुए थे।

बैठक का वीडियो सोशल मीडिया में इस कदर वायरल हुआ कि पंचायत वाइस प्रेसीडेंट मोहनराजन की मुश्किल बढ़ गई। इसी वायरल वीडियो को देखने के बाद सीपीएम पार्टी ने पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करवा दी। सीपीएम की शिकायत के बाद पुलिस इस मामले में मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच में जुट गई है, हालांकि पीड़ित दलित पंचायत अध्यक्ष ने भी इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी है।

गौरतलब है कि हमारे देश में ऐसी घटनायें तब सामने आती हैं जबकि 20 मार्च 2018 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।

इसके बाद संसद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। इसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब पहले के मुताबिक ही एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति लेनी जरूरी नहीं होगी।

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा न्यायालय खुद ही असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकते हैं।

दलित महिला के साथ पंचायत बोर्ड के दौरान नीचे फर्श पर बिठा देने की यह घटना जुलाई 2020 की है। इस बैठक के दौरान जहां पंचायत बोर्ड के अन्य सदस्य कुर्सियों पर बैठे हैं, वहीं दलित पंचायत अध्यक्ष राजेश्वरी को फर्श पर बैठाया गया है। साफ है कि वह वहां सिर्फ खानापूर्ति के लिए हैं।

खबरों का संज्ञान लेते हुए और राजेश्वरी द्वारा दायर शिकायत के आधार पर, कुड्डालोर पुलिस ने कार्रवाई की और वाइस प्रेसीडेंट मोहनराजन समेत पंचायत सचिव पर मामला दर्ज कराया गया है। जिला कलेक्टर ने दलित उत्पीड़न की इस घटना सामने आने के बाद पंचायत सचिव को भी निलंबित कर दिया है और विस्तृत जांच के आदेश दिए गए हैं।

पीड़ित दलित पंचायत अध्यक्ष राजेश्वरी ने मीडिया को बताया कि इस साल जनवरी में उन्हें पंचायत अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के बाद से उनके साथ भेदभाव शुरू हो चुका था। जुलाई में हुई उस मीटिंग में उन्हें फर्श पर बैठने को मजबूर किया गया था। यही नहीं राजेश्वरी ने यह भी कहा कि उन्हें पंचायत अध्यक्ष के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से भी रोका गया था। क्या मुझे इसलिए पंचायत अध्यक्ष चुना गया है कि सार्वजनिक रूप से ऐसे अपमानित किया जाये।

राजेश्वरी ने मीडिया को बताया कि उन्हें वाइस प्रेसीडेंट मोहनराजन और अन्य लोगों द्वारा किसी भी बैठक के दौरान बात नहीं करने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा कि वे लोग चर्चा करेंगे और सभी समस्याओं का हल करेंगे और मुझे चुप रहने के लिए कहा। मैंने बोलने का फैसला किया, क्योंकि चीजें खत्म हो रही थीं, मैं सिर्फ डमी पंचायत अध्यक्ष साबित हो रही थी। पंचायत अध्यक्ष के रूप में मेरे पद का सम्मान पाने के लिए मैंने इस मामले में आवाज उठाने का फैसला किया।

दलित पंचायत अध्यक्ष राजेश्वरी का यह भी आरोप लगाया कि उन्हें 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं दी गयी, उनके स्थान पर मोहनराजन के पिता ने ध्वज फहराया, क्योंकि वे उंची जाति से ताल्लुक रखते हैं।

गौरतलब है कि पंचायत बोर्ड में छह वार्ड सदस्य होते हैं, उनमें से चार जाति हिंदू हैं और उनमें से दो आदि-द्रविड़ समुदाय से हैं। राजेश्वरी के अनुसार, अन्य दलित वार्ड सदस्य सुगंती को भी बैठकों के दौरान फर्श पर बैठने के लिए निर्देश दिया जाता था।

यह पहला मामला नहीं है जब दलित बड़ी जगहों पर भी इस तरह उत्पीड़न का शिकार होते हों। दो महीने पहले चेन्नई के पास तिरुवल्लुर जिले में भी जातिगत भेदभाव का एक मामला सामने आया था। एथुपक्कम गाँव के पंचायत अध्यक्ष वी अमुर्थम को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोक दिया गया, क्योंकि वह एससी समुदाय से थे। इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर दलितों ने सार्वजनिक आक्रोश व्यक्त किया, जिसके बाद जिला प्रशासन ने हस्तक्षेप किया और स्वतंत्रता दिवस के पांच दिन बाद वी अमुर्थम ने झंडा फहराया।

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