- Home
- /
- हाशिये का समाज
- /
- अस्पताल का बिल नहीं...
अस्पताल का बिल नहीं चुका पाया कोरोना से मरे शख्स का परिवार तो कार को रख लिया गिरवी
प्रतीकात्मक तस्वीर
जनज्वार, गुजरात। देश में कोरोना के मामले और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा चरम पर है और इतने ही चरम पर सामने आ रही है सरकार मशीनरी की अव्यवस्था और अस्पतालों की अमानवीयता।
हमारे देश में कोरोना के रिकॉर्ड मामले जिन राज्यों में दर्ज हो रहे हैं, उनमें से मोदी का गुजरात भी एक है। यह वही राज्य है जहां कोरोना से इतनी ज्यादा पैमाने पर मौतें हो रही हैं कि श्मशान घाटों की चिमनियां तक पिघल रही हैं और लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार खाली पड़े मैदानों में करने को मजबूर हो रहे हैं। इतनी बड़ी त्रासदी के बाद अस्पतालों की अमानवीयता भी कम नहीं है, जो इस महामारी में भी पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठे हैं।
गुजरात के कई अस्पताल कोविड मरीजों और कोरोना से मर चुके लोगों की लाशों से भरे हुए हैं। गंभीर होते हालातों के बीच गुजरात के वलसाड से एक अस्पताल की ऐसी निर्ममता सामने आयी है, जिससे इंसानियत पर से ही भरोसा उठ जाता है। अस्पताल द्वारा कोविड मृतक के परिजनों द्वारा बिल न भर पाने की वजह से उसका शव नहीं दिया गया।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मृतक के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों ने उनके प्रियजन की लाश देने से इसलिए मना कर दिया, क्योंकि वे लोग पूरा बिल चुकाने में असमर्थ थे। लाश ले जाने से पहले अस्पताल ने परिजनों को पूरा बिल भरने को कहा। जब परिवार ने कहा कि उनके पास पैसा नहीं है तो अस्पताल ने उनकी गाड़ी तक को गिरवी रख लिया।
जानकारी के मुताबिक पीड़ित को कोरोना के लक्षण दिखने के बाद वापी के 21 सेंचुरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मरीज का यहां इलाज भी हुआ, लेकिन मंगलवार 13 अप्रैल को उसने दम तोड़ दिया।
इंडिया टुडे में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक कोरोना मृतक के परिवार के पास सिर्फ एक गाड़ी थी और अस्पताल प्रशासन ने उसे भी गिरवी रखकर लाश सौंपी। परिवार ने अस्पताल के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी। जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो परिवार वालों को गाड़ी वापस दे दी गई।
इस मामले में अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर अक्षय नदकरणी का कहना है कि, कुछ दिन पहले भी अस्पताल में ऐसा ही मामला सामने आया था, जब एक कोविड मरीज की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। अस्पताल ने गारंटी के तौर पर परिजनों की गाड़ी रख ली थी और फिर बिल का भुगतान होने पर गाड़ी लौटा दी थी।