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Shameless UP : मिड-डे मील के आहार में जातियों का भेदभाव, इस स्कूल में बच्चों के बर्तन भी रखते हैं जातिगत पहचान
(एक तरफ दलित बच्चों के बर्तन और दूसरी तरफ प्रथा बताने वाली महिला प्रिंसिपल)
Shameless UP (जनज्वार) : उत्तर प्रदेश में जनपद मैनपुरी (Mainpuri Uttar Pradesh) के एक सरकारी स्कूल में दलित बच्चों को मिड डे मील (Mid Day Meal) खाने के बाद अपने-अपने बर्तन भी अलग कमरों में रखने पड़ते हैं। यह इसलिए ताकि ऊंची जाती के बच्चों के बर्तन उनके बर्तनों से छू न जाएं। हालांकि, इसे सदियों पुरानी परंपरा बताने वाली स्कूल की प्रिंसिपल को सरकार ने निलंबित कर दिया।
प्रिंसिपल के निलंबन (Suspension) का विरोध कर रहे गांव में ऊंची जाति के लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। जिसके चलते सोमवार 27 सितंबर को स्कूल के कुल 80 बच्चों में सिर्फ 26 दलित बच्चे ही पढ़ने पहुँचे। अगड़ी जाति वालों का कहना है कि निलंबित प्रिंसिपल वापस आएंगी तभी उनके बच्चे स्कूल जाएंगे।
जानकारी के मुताबिक, घटना प्राथमिक विद्यालय दउदापुर (Primary School Daudapur) की है। जहां सारे बच्चे पढ़ते तो एक साथ ही हैं, लेकिन मिड डे मील का खाना उन्हें अपने बर्तनों में जाति के हिसाब से खाना और अलग-अलग रखना पड़ता है। स्कूल के एक तरफ दलित बच्चों के बर्तन रखने का कमरा है और दूसरी तरफ किचन है, जहां ऊंची जाति और ओबीसी बच्चों से बर्तन रखवाए जाते हैं।
बताया जा रहा है कि, प्रधान पति ने रसोइया से सारे बच्चों के बर्तन धोने को कहा तो उसने नाराज होकर नौकरी छोड़ दी। यूपी के बहुत सारे स्कूलों में अक्षय पात्र जैसी किचन सेवा चलाने वाली संस्था मिड डे मील बनाकर गर्म खाना स्कूलों में सप्लाई करती है। वहां इस तरह की समस्या देखने में नहीं आती है। लेकिन बहुत सारे स्कूलों में जहां रसोइया खाना बनाकर मिड डे मील देता है, बच्चों को वहां दोनों तरह की समस्याएं हैं।
दरअसल, अगर रसोइया दलित है तो बहुत सारे ऊंची जाति के बच्चे उसका खाना खाने से मना करते हैं और अगर रसोइयां ऊंची जाति से है तो वो दलित बच्चों के साथ भेदभाव करता है। मैनपुरी के दउदापुर की आबादी लगभग 15 सौ है। इनमें करीब 65 फीसदी अगड़ी और पिछड़ी जाति के लोग हैं और करीब 35 फीसदी दलित।
स्कूल की शिकायत होने पर शिक्षा विभाग ने रसोइया और उसकी सहायिका को नौकरी से निकाल दिया तथा प्रिंसिपल को सस्पेंड कर दिया। इससे नाराज अगड़ी और पिछड़ी जाति वालों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। दलितों की सियासत में वोट के लिए चाहे जितनी पूछ हो, लेकिन समाज में तो बहुत जगह दउदापुर प्रथामिक विद्यालय जैसे ही हालात हैं।