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हाशिये का समाज

झारखंड के चिरियाबेड़ा के आदिवासी फिर हुए सुरक्षा बलों की हिंसा का शिकार

Janjwar Desk
3 Dec 2022 6:06 PM IST
झारखंड के चिरियाबेड़ा के आदिवासी फिर हुए सुरक्षा बलों की हिंसा का शिकार
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सर्च अभियान के दौरान गाँव की कई महिलाओं समेत निर्दोष आदिवासियों की पिटाई की गयी, एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के उद्देश्य से छेड़खानी की गयी और घरों में रखे समान को तहस-नहस किया गया...

विशद कुमार की रिपोर्ट

11 नवम्बर 2022 को चिरियाबेड़ा गाँव (अंजेड़बेड़ा राजस्व गाँव, सदर प्रखंड, पश्चिमी सिंहभूम) में सर्च अभियान के दौरान फिर से सुरक्षा बलों द्वारा निर्दोष आदिवासियों के साथ हिंसा किए जाने की खबर सामने आ रही है, जबकि 12 नवम्बर को स्थानीय अख़बारों में छपी खबरों में बताया गया था कि यह कोबरा-209/205, झारखंड जैगुआर, सीआरपीएफ की बटालियन व स्थानीय पुलिस का संयुक्त अभियान था। बताया गया कि चिरियाबेड़ा, लोवाबेड़ा व हाथीबुरु में चलाए गए अभियान में जंगलों में लगे सीरीज में बम पाए गये व डिफ्यूज किए गए, तथा भाकपा (माओवादी) के पोस्टर, बैनर समेत कई दैनिक इस्तेमाल का सामान बरामद हुआ था, मगर इन स्थानीय अखबारों में आदिवासियों पर की गई हिंसा का ज़िक्र तक नहीं था।

जानकारी के अनुसार सर्चअभियान के दौरान गाँव की कई महिलाओं समेत निर्दोष आदिवासियों की पिटाई की गयी, एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के उद्देश्य से छेड़खानी की गयी और घरों में रखे समान को तहस-नहस किया गया। वृद्ध विधवा महिला नोनी कुई जोजो के घर में घुसकर सुरक्षलों के जवान घुस द्वारा सामान बिखेरने का आरोप है। साथ ही आरोप है कि उसकी नाबालिग बेटी शांति जोजो के हाथों को दो जवानों ने पकड़ा और तीसरे जवान ने उसके स्तनों को दबाकर यौन हिंसा की। आरोप है कि जवान उसे खींच के झाड़ी के तरफ ले जाना चाहता था, मगर शांति किसी तरह अपने को छुड़ाके भागी और माँ से लिपट गयी।


यह भी आरोप है कि जवानों ने नोनी कुई को डंडे से बुरी तरह पीटा, लेकिन उसने अपनी बेटी को नहीं छोड़ा। शांति जोजो का कहना है कि जवानों द्वारा उसकी बेटी के साथ की गई हरकत से उसको साफ लगा कि वे लोग उसका बलात्कार करने वाले थे। जवानों का यह सर्च अभियान दिन के 11 बजे से शुरू होकर लगभग दो बजे खत्म हुआ।

अन्य कई लोगों के साथ हिंसा की गयी

16 वर्षीय बामिया बहंदा को पेड़ से उतारकर पीटने का आरोप है। जब उसकी माँ कदमा बहंदा उसे बचाने गयी, तो उसे भी पीटा गया। कदमा के दोनों हाथों को जवानों ने पकड़ लिया और फिर आगे-पीछे और कमर में लात—बंदूक के बट से मारकर उन्हें उनके घर तक ले गए। फिर उनके खुले बालों को पकड़ के घुमाया गया। सुरक्षा बलों ने कईओं के घरों में रखे सामान (धान, कपड़े, बर्तन आदि) एवं खलियान में रखे धान को तहस-नहस कर दिया गया।

पूरी घटना के दौरान सुरक्षा बल के जवान हिंदी में पूछताछ कर रहे थे, जबकि ग्रामीण लगातार हो भाषा में बोलकर यह बताने का प्रयास कर रहे थे कि उन्हें हिंदी नहीं आती है, थोड़ी—बहुत हिन्दी समझते हैं, लेकिन सुरक्षा बल के जवान इसे समझने जानने को तैयार नहीं थे कि सामने वाला क्या कह रहा है या कहना चाह रहा है। इससे दुखद और क्या हो सकता है कि अपने ही घर में अपनी ही भाषा पर उन्हें तिरस्कृत किया जाय।

इससे भी दुखद तो यह है कि 11 नवंबर की इस घटना पर 12 नवम्बर को स्थानीय अख़बारों में छपी खबरों में सुरक्षा बलों द्वारा ग्रामीणों के साथ किए बर्ताव की कोई खबर नहीं थी बल्कि अखबार की खबरों के अनुसार यह कोबरा-209 / 205, झारखंड जैगुआर, सीआरपीएफ की बटालियन व स्थानीय पुलिस का संयुक्त अभियान था, जिसके तहत चिरियाबेड़ा, लोवाबेड़ा व हाथीबुरु में चलाए गए अभियान में जंगलों में लगे सीरीज में बम पाए गये व डिफ्यूज किए गए और भाकपा (माओवादी) का पोस्टर, बैनर समेत कई दैनिक इस्तेमाल का समान पाया गया। मीडिया रिपोर्ट्स में आदिवासियों पर की गई हिंसा का ज़िक्र तक नहीं था।


इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े किये हैं। बताना जरूरी हो जाता है कि पिछले 15 जून 2020 को सुरक्षा बल के जवानों ने सर्च अभियान के दौरान इसी गाँव के आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा था। पीड़ितों ने कई बार विभिन्न स्तरों पर लिखित आवेदन दिया, लेकिन आज तक न दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध कार्यवाई हुई और न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला। न्यायालय में भी पीड़ितों का बयान दर्ज करवाने में जांच पदाधिकारी का रवैया नकारात्मक और उदासीन है।

गौरतलब है कि चिरियाबेड़ा व अंजेड़बेड़ा में बुनियादी सुविधाओं व कल्याणकारी सेवाओं की स्थिति दयनीय है। चिरियाबेड़ा में कोई आंगनवाड़ी नहीं है। निकटतम आंगनवाड़ी गाँव से 6 किमी दूर अंजेडबेड़ा में है, जिस कारण से बच्चे आंगनवाड़ी सेवाओं से वंचित हैं। कई वृद्ध व विधवा महिलाएं पेंशन से वंचित हैं। शिकायत के बावज़ूद अंजेड़बेड़ा के आठ अत्यंत वंचित परिवार लगभग एक साल से राशन से वंचित हैं। स्थानीय रोज़गार के अभाव में बड़े पैमाने पर गाँव के युवा पलायन करते हैं।

कहना ना होगा कि अभियान के दौरान आदिवासियों के प्रति ऐसा अमानवीय व गैरकानूनी रवैया पूर्ण रूप से संविधान व लोकतंत्र विरोधी है। ऐसे गावों के ग्रामीणों की विशेष परिस्थिति व समस्याओं को समझने के बजाय सुरक्षा बलों द्वारा संवैधानिक, क़ानूनी व मानवता की सीमाओं को लांघ कर अभियान के नाम पर निर्दोषों पर व्यापक हिंसा की जाती रही है। यह भी देखने को मिल रहा है कि सारंडा क्षेत्र में ग्रामीणों के विरोध के बावज़ूद एवं बिना ग्राम सभा की सहमति के सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। यह 5वीं अनुसूची व पेसा कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। क्षेत्र के निर्दोष आदिवासी-मूलवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं में फ़र्ज़ी रूप से आरोपी बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार का आदिवासी-विरोधी चेहरा तो स्पष्ट है, लेकिन यह दुःख की बात है कि इस मामले में हेमंत सोरेन सरकार का रवैया भी अत्यंत उदासीन है।

आदिवासियों के साथ हुई हिंसा की यह जानकारी तब सामने आयी जब झारखंड का एक जन संगठन झारखंड जनाधिकार महासभा, जो विभिन्न जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का मंच है, द्वारा इस मामले पर फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट तैयार की गयी।

उक्त मामले पर महासभा का प्रतिनिधिमंडल पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त व पुलिस अधीक्षक से 2 दिसम्बर 2022 को मिलकर फैक्ट फाइडिंग सौंपी। जिसमें जोहार, आदिवासी विमेंस नेटवर्क, आदिवासी यंगस्टर यूनिटी, झारखंड किसान परिषद समेत कई संगठन के प्रतिनिधियों में अम्बिका यादव, एलिना होरो, कमल पूर्ति, मिली होरो, नारायण कांडेयांग, रमेश जेराई, रेयांस समाद, सोनल, सिराज दत्त शामिल थे।


अपने इस फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट में महासभा ने सरकार से मांग की है कि 11 नवम्बर 2022 को चिरियाबेड़ा में लोगों पर हिंसा एवं नाबालिक लड़की के साथ छेड़खानी करने के दोषी सुरक्षा बल जवानों के विरुद्ध सुसंगत धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज हो और न्यायसंगत कार्यवाई हो। इस प्रताड़ना के लिए पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जाए।

15 जून 2020 को इस गाँव के लोगों पर हुए हिंसा के लिए दोषी सुरक्षा बल के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई की जाए और पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जाए। केवल संदेह के आधार पर अथवा केवल माओवादियों को महज़ खाना खिलाने के लिए निर्दोष आदिवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में न जोड़ा जाए।

नक्सल सर्च अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए और आदिवासियों पर हिंसा न किया जाए. लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पूर्णतः बंद हो।

5वीं अनुसूची क्षेत्र में किसी भी गाँव के सीमाना में सर्च अभियान चलाने से पहले ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों की सहमती ली जाए। स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए। बिना ग्रामीणों के साथ चर्चा किए व ग्राम सभा की सहमति के कैंप ज़बरदस्ती स्थापित न की जाए।

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