Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

Azamgarh news : एक्सप्रेस वे में गयी जमीन के मुआवजे से बनाये मकान पर मंडरा रहा है योगी के बुल्डोजर का खतरा !

Janjwar Desk
28 April 2023 10:53 PM IST
Azamgarh news : एक्सप्रेस वे में गयी जमीन के मुआवजे से बनाये मकान पर मंडरा रहा है योगी के बुल्डोजर का खतरा !
x

file photo

Azamgarh news : विकास के इस कड़वे स्वाद ने जो हकीकत सामने लाई है, उसको देखते हुए इन गांव के लोगों ने तय किया है कि वह धरती माता का सौदा नहीं करेंगे। कई ऐसे किसान मजदूर हैं जिनकी जमीनें एक्सप्रेस वे में गई और जो मुआवजा उनको मिला उससे उन्होंने जो मकान बनाए आज फिर उन पर बुलडोजर चलने की नौबत आ गई है...

Azamgarh farmer protest : पिछले 6 महीने से अक्टूबर 2022 से खिरिया बाग, आजमगढ़ में किसान मजदूर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर 670 एकड़ जमीन में छीने जाने के विरोध में धरने पर बैठे हैं। जमीन न देने वाले शर्त के साथ चल रहे इस आंदोलन में देशभर के किसान नेता आ चुके हैं। आज जब पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे औद्योगिक क्षेत्रध्पार्क के नाम पर दर्जनों गांव निशाने पर हैं तो उसी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे के किसान जिन्होंने कुछ वर्षों पहले अपनी जमीन एक्सप्रेस वे में दे दी थी, वह भी आज जमीन नहीं देने की जिद के साथ 25 से अधिक दिनों से धरने पर बैठे हैं।

दूर से देखने पर आपको लग सकता है कि अंततः किसान मुआवजे पर समझौता कर लेगा, लेकिन खिरिया बाग किसान आंदोलन ने जमीन नहीं देने के सवाल पर अपनी शर्तों पर वार्ता की है और वही प्रशासन जो किसी कीमत पर जमीन लेने की बात करता था वह आज परियोजना स्थगित करने की बात कर रहा है।

पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का किसान मजदूर एक बार जमीन देकर विकास का कड़वा रसास्वादन कर लिया है कि सदियों से जिन गांवों से उसका संपर्क था न सिर्फ वो कटा, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के एक किनारे उसकी जमीन है तो दूसरी तरफ उसका मकान है। एशिया की बड़ी भूमि अधिग्रहण परियोजनाओं में से एक इस परियोजना ने बहुफसली जमीनों को नेस्त‌‌नाबूद कर दिया। गांव वालों को नौकरी का झूठा दिलासा दिया। जिन बकरियों को पाल पोस करके वह चार पैसा कमा लेते थे, आज अगर वह एक्सप्रेस वे के कटीले तारों को पार कर जाती हैं तो न सिर्फ एक्सप्रेस वे अथॉरिटी वाले उसको उठा ले जाते हैं, बल्कि गांव वालों से धन उगाही भी करते हैं।

विकास के इस कड़वे स्वाद ने जो हकीकत सामने लाई है, उसको देखते हुए इन गांव के लोगों ने तय किया है कि वह धरती माता का सौदा नहीं करेंगे। कई ऐसे किसान मजदूर हैं जिनकी जमीनें एक्सप्रेस वे में गई और जो मुआवजा उनको मिला उससे उन्होंने जो मकान बनाए आज फिर उन पर बुलडोजर चलने की नौबत आ गई है।

विकास से विस्थापन और विनाश की प्रक्रिया यूपी में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जिसमें 35 लाख करोड़ के निवेश का प्रस्ताव है, गांव किसानों को खत्म करने वाली सरकारी दावे के अनुसार चौथी औद्योगिक क्रांति के निशाने पर पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के किनारे पड़ने वाले गांव हैं।

आजमगढ़ के सुमाडीह, खुरचंदा, बखरिया, सुलेमापुर, अंडीका, छजोपट्टी, वहीं सुलतानपुर के कलवारीबाग, भेलारा, बरामदपुर, सजमापुर के किसान अंडिका बाग में आंदोलनरत हैं। ऐसा न सोचिए कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के गांव ही संकट में हैं, यूपीसीडा ;उप्र राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरणद्ध ने ग्राम सभाओं की जमीनों पर औद्योगिक क्षेत्र/पार्क बनाने के लिए प्रथम चरण में 30 हजार एकड़ जमीन लेने की बात कही है। सरकार जिस तरह से ग्राम सभा की जमीनों को अपनी जागीर कहकर अधिग्रहण का फरमान जारी कर रही है, कल की तारीख में गांव में चारागाह नही रहेंगे तो लोग पशु कहां चराएंगे, घूर गड्ढा नहीं रहेगा तो घूर कहा फेंका जाएगा, खेल के मैदान नहीं रहेंगे तब बच्चे कहा खेलेंगे, सौर स्थान, शमसान यानी की पूरे गांव के जीवन को शहरों के नारकीय जीवन की तरह तब्दील करने की साजिश है।

इसका सीधा प्रभाव देश की सबसे बड़ी आबादी दलितों और अति पिछड़ी जातियों पर पड़ेगा जो भूमिहीन हैं और बमुश्किल कुछ जमीन इनके पास बची है। आज उत्तर प्रदेश में 73 फीसदी दलित भूमिहीन हैं जिनके आशियाने योगी बाबा के बुलडोजर के निशाने पर हैं। जब बंजर, तालाब, कुएं पर हम घर बनाएं तो अपराध है। हम पर्यावरण को खत्म करने वाले हैं, तो विकास के नाम पर इन पेड़ों और खेत खलिहानों पशु पक्षियों को खत्म करने का अपराध क्या सरकार नहीं कर रही? अगर कर रही है तो इन विनाशकारी नीतियों को बनाने वाले शासन प्रशासन के लोगों पर क्यों न बुलडोजर चले।

देश में करोड़ों लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। जिन्होंने अपनी जमीन विकास परियोजनाओं को दे दी और खुद सड़कों पर बंजारे की जिंदगी जी रहे हैं। अभी हाल में आई फिल्म भीड़ जिसमें डॉ सागर अपने गीत में कहते हैं कि भटके सहरिया में ए भैया जेकर, खेत-खरिहनवा छिनाइल बा, विस्थापन की सच्चाई को बयां करता है।

आज शहरों के किनारे दलितों के पास जो बची खुची जमीन है, उसको छीनने के लिए नई टाउनशिप योजना में जिलाधिकारी की अनुमति के बिना दलितों को जमीन बेचने के अधिकार देने की बात करने वाली योगी सरकार अगर सचमुच अनुसूचित जाति/जनजाति की इतनी हितैषी है तो भूमि के अधिकार से वंचित दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियों को आबादी अनुसार जमीन का अधिकार दे दे। इन मांगों पर सरकार का कहना होता है कि उसके पास जमीन नहीं है तो सवाल है कि पूंजीपतियों के लिए जमीन कहां से आती है?

Next Story

विविध